नई दिल्ली।
लंबी अवधि के बाद भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) समेत कई सरकारी और निजी बैंकों ने कर्ज की ब्याज दरों में बढ़ोतरी शुरू की है। बैंकों ने उधारी दरों में अभी पांच से 10 आधार अंकों की बढ़ोतरी की है। इसके बाद अन्य बैंकों के लिए भी ब्याज में बढ़ोतरी का रास्ता साफ हो गया है। इसका असर आम आदमी से लेकर कंपनियों के बही-खाते पर होगा। जानकारों का कहना है कि ब्याज दरों में बढ़ोतरी से सबसे ज्यादा असर कंपनियों पर पड़ेगा। कंपनियों को अपने दैनिक कामकाज के लिए कार्यशील पूंजी जुटाने पर ज्यादा ब्याज देनी पड़ेगी। यानी कंपनियों की कार्यशील पूंजी जुटाने की लागत बढ़ जाएगी। इससे उनका मार्जिन यानी मुनाफा भी प्रभावित होगा। इसके अलावा जिन सीमांत लागत आधारित ऋण दर (एमसीएलआर) के आधार पर किसी भी प्रकार का लोन ले रखा है, उनकी मासिक किस्त (ईएमआई) बढ़ जाएगी।
महंगाई में तेज वृद्धि को देखते हुए संभावना जताई जा रही है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) जून में होने वाली मौद्रिक नीति समिति की बैठक में रेपो दर में बढ़ोतरी कर सकता है। यदि ऐसा होता है तो बैंक कर्ज की ब्याज दरों में और बढ़ोतरी करेंगे। इससे कंपनियों और खुदरा ग्राहकों पर बोझ पड़ेगा। इसके अलावा बैंक अपना शुद्ध ब्याज मुनाफा बनाए रखने के लिए भी ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर सकते हैं।
आम उपभोक्ताओं की जेब पर असर
कंपनियों को उच्च लागत और ऊंची ब्याज की दोहरी मार का सामना करने की संभावना है, क्योंकि बैंकों ने उधार दरों में बढ़ोतरी शुरू कर दी है। दूसरी ओर थोक महंगाई भी 14 फीसदी से ऊपर पहुंच गई है। थोक महंगाई को खुदरा महंगाई के अग्रदूत के रूप में देखा जाता है क्योंकि निर्माता बढ़ती लागत ग्राहकों पर डालते हैं। ऐसे में ऊंचे ब्याज और थोक महंगाई की मार भी अंतत: उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ेगी।
घर-कार खरीदारों पर दोहरी मार
जिन उपभोक्ताओं ने घर या कार खरीदने के लिए कर्ज ले रखा है वह यदि एमसीएलआर के पुराने मानक पर है तो उनकी ईएमआई बढ़नी तय है। वहीं रेपो रेट के आधार पर कर्ज लेने वाले ग्राहकों को फिलहाल राहत है लेकिन आरबीआई यदि रेपो दरों में इजाफा करता है तो बैंक उससे जुड़े कर्ज की दरें बढ़ाएंगे। इससे उन ग्राहकों पर भी असर होगा। दूसरी ओर जो लोग अभी कर्ज लेने की योजना बना रहे हैं उन्हें महंगा कर्ज मिलेगा।
रिजर्व बैंक की चुनौती
महंगाई बढ़ने पर रिजर्व बैंक के लिए दोहरी चुनौती बढ़ जाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि दरें बढ़ाने पर कर्ज महंगा होने से आर्थिक विकास पर असर होता है क्योंकि कंपनियां महंगे कर्ज की वजह से कारोबार के विस्तार से परहेज करती हैं। वहीं ब्याज दरें घटाने से उपभोक्ताओं की खरीद क्षमता में इजाफा होता है और बाजार में मांग बढ़ जाती है जिससे अर्थव्यवस्था को लाभ होता है। लेकिन इस कदम से महंगाई के और बढ़ने का खतरा होता है जिसका सबसे अधिक असर गरीबों पर होता है