नई दिल्ली।
थोक महंगाई एक साल से दहाई अंक में है। यह इस साल मार्च में बढ़कर 14.55 फीसदी पर पहुंच गई जो इसका चार माह की उच्चतम स्तर है। जबकि मार्च में खुदरा मुद्रास्फीति 6.95 फीसदी पर पहुंच गई, जो भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के लक्ष्य से काफी ऊपर है। थोक महंगाई में थोक विक्रेताओं के बिंदु पर कीमतों में वृद्धि को मापा जाता है और केवल वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि को ध्यान में रखता है, जबकि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) यानी खुदरा महंगाई में खुदरा विक्रेता के बिंदु पर मूल्य वृद्धि को मापा है और इसमें वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में बदलाव को शामिल किया जाता है।
मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल ग्राहकों को देगा महंगाई का तगड़ा झटका
विनिर्मित वस्तुओं के लिए थोक महंगाई का अधिकतम भारांक 64.23 फीसदी है, जबकि सीपीआई का अधिकतम भारांक 45.86 फीसदी खाद्य और पेय पदार्थों को दिया गया है। इसकी वजह से थोक महंगाई से खुदरा महंगाई का आकलन करना मुश्किल हो जाता है क्योंकि दोनों के आंकड़ों का पैमाना अलग-अलग है। इसको लेकर कई बदलाव किए जा रहे हैं जिससे थोक महंगाई के आंकड़ों के आधार पर खुदरा महंगाई का आकलन करना आसान हो सकता है।
किस वजह से भड़की थोक महंगाई
थोक महंगाई के आकलन में प्राथमिक वस्तुओं, ईंधन और बिजली, और विनिर्मित वस्तुओं के लिए क्रमशः 22.62 फीसदी, 13.15फीसदी, और 64.23 फीसदी का भारांश है। मुद्रास्फीति में वृद्धि वैश्विक आपूर्ति शृंखला में व्यवधान के कारण हुई है, जिसके परिणामस्वरूप कच्चे तेल, प्राकृतिक गैस, खनिज तेल और मूल धातुओं की कीमतों में वृद्धि हुई है। ईंधन और बिजली की कीमतों में 34.52 फीसदी की वृद्धि हुई। मार्च में प्राथमिक और विनिर्मित दोनों प्रकार के खाद्य उत्पादों की कीमतों में 8.71 फीसदी की वृद्धि हुई, जबकि प्राथमिक वस्तुओं में खाद्य पदार्थों के खंड में मार्च में 8.06 फीसदी की वृद्धि हुई।
आंकड़े जुटाने का तरीका बदलेगा
थोक महंगाई सूचकांक का उद्देश्य व्यापारियों द्वारा थोक खरीद में गतिशील मूल्य वृद्धि को मापना है। अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक परिवर्तनों को समायोजित करने के लिए आधार वर्ष को 2011-12 से बदलकर 2017-18 करने और औषधीय पौधों, पेन ड्राइव, व्यायामशाला उपकरण जैसे उत्पादों को शामिल करने के लिए मदों की संख्या को 697 से संशोधित करके 1,176 करने का प्रस्ताव किया जा रहा है।
क्यों पड़ रही बदलाव की जरूरत
वस्तुओं का प्रतिनिधित्व अब अधिक विश्वसनीय और वर्तमान उत्पादन प्रवृत्तियों के लिए प्रासंगिक होगा। थोक महंगाई सूचकांक ज्यादातर मध्यवर्ती वस्तुओं या कच्चे माल के मूल्य परिवर्तन में प्रवृत्ति को बेहतर ढंग से प्रतिबिंबित करेगा और उत्पादन की लागत पर इसके प्रभाव को प्रकट करेगा, जो लागत-आधारित मुद्रास्फीति में संभावित परिवर्तन को दर्शाता है। इस प्रकार थोक महंगाई के संदर्भ में मुद्रास्फीति संबंधी दबाव को विनियोजित राजकोषीय नीतियों के माध्यम से बेहतर ढंग से निपटाया जा सकता है जिसका प्रबंधन प्राथमिक रूप से सरकार के आपूर्ति प्रबंधन के माध्यम से किया जाता है।
क्यों मेल नहीं खाते दोनों महंगाई के आंकड़े
थोक महंगाई का रुझान आदर्श रूप से खुदरा महंगाई में भी दिखना चाहिए। लेकिन हाल ही में थोक महंगाई को खुदरा महंगाई की दर से दोगुने से अधिक की दर से बढ़ता हुआ पाया गया है। क्या इसका मतलब यह है कि खुदरा विक्रेता उत्पादों की की बढ़ती कीमत का बोझ उपभोक्ताओं पर नहीं डाल रहे हैं? इसका मतलब यह भी हो सकता है कि कुछ उत्पादों की कीमतें खुदरा महंगाई सूचकांक में प्रतिबिंबित नहीं हो रही हैं।