शासन में ‘सुशासन’ का भाव भारत की संस्कृति की विशिष्टता है। सुशासन, अर्थात लोक मंगल की कामना से किया जाने वाला शासन। भगवान श्रीराम के रामराज्य के आदर्श शासन से प्रेरणा लेकर हर युग में सुशासन के अनेक उदाहरण रहे हैं, जिनमें शासक लोक कल्याण के लिए कार्य करते रहे। यह भारतीय संस्कृति का सौंदर्य ही है कि शासन में ‘सुशासन’ सदैव प्राथमिकता में रहा। विदेशी शासकों के आ जाने से कालांतर में विस्मृ्त हुए इस भाव को पुन: जागृति एवं ऊर्जा तब मिली जब पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार ने लोक कल्याण के लिए सुशासन की दिशा में सतत कार्य किए। इसीलिए अटलजी के सम्मागन में 2014 से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्वश में प्रतिवर्ष 25 दिसंबर को सुशासन दिवस मनाने की घोषणा की गई।
केवल ग्राम सड़क योजना ही नहीं उन्होंने राष्ट्रीय राजमार्गों का उन्नयन कर आधुनिक ढंग से निर्माण पर बल दिया। ‘स्वर्णिम चतुर्भुज’ परियोजना भारत के चार प्रमुख शहरों दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, और कोलकाता को जोड़ने वाला राजमार्ग नेटवर्क तैयार करने की ऐसी ही परियोजना है। अटलजी ने सामाजिक समरसता के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए। समाज के हर वर्ग का ध्यान रखते हुए अपनी नीतियों का निर्धारण किया। देश के जनजाति समाज के कल्याण के लिए उन्होंने अलग से जनजाति कार्य मंत्रालय बनाया। पेयजल एवं सिंचाई के लिए उन्होंने नदियों को जोड़ने की परियोजना का भी प्रस्ताव रखा। अटलजी की 100वीं जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज इस परियोजना में मध्य प्रदेश की केन-बेतवा नदी जोड़ो राष्ट्री य परियोजना की आधारशिला रखेंगे। अटल जी ने देश की प्रगति के लिए कार्य करते हुए हर दिशा में राष्ट्र को सबल बनाने का संकल्प लिया था। यही कारण है कि किसानों को सेठ-साहूकारों के कर्जों से बचाने के लिए उन्होंने ‘किसान क्रेडिट कार्ड’ जैसी लाभदायक योजना प्रारंभ की तो वहीं दूरसंचार के क्षेत्र में नई नीतियों को अपनाया जिसका सुफल आज संचार क्रांति के रूप में दिखाई देता है। राष्ट्र रक्षा का कार्य सदैव उनकी प्राथमिकता में रहा। इसीलिए विपरीत वैश्विक परिस्थितियों में भी पूरे साहस के साथ पोखरण में 11 मई 1998 को पांच परमाणु परीक्षणों से उन्होंने भारत को परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्रों की सूची में शामिल कराया। इस अवसर पर उन्होंने “जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान” का नारा दिया। भारत की सामरिक शक्ति मजबूत करने के लिए उन्होंने विशेष निर्णय लिए। वहीं धोखे से कारगिल में घुस आई पाकिस्तानी सेना को खदेड़ देने के लिए सेना का मनोबल बढ़ाते हुए सैन्य एवं कूटनीतिक मोर्चे पर दृढ़ता से कार्य किया और भारत के हाथों परास्त होकर पाकिस्तान को एक बार फिर मुंह की खानी पड़ी। राष्ट्र, धर्म और संस्कृति से वे गहनता से जुड़े रहे। विदेश मंत्री के रूप में संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी में दिया गया उनका भाषण ऐतिहासिक रहा। 1996 में पहली बार 13 दिनों के लिए भारत के 10वें प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। पीएम के रूप में उनका दूसरा कार्यकाल 1998 से 1999 तक 13 महीने का था। उन्होंने तीसरी बार 1999 से 2004 तक पीएम के रूप में पूर्ण कार्यकाल के लिए पदभार संभाला। 2018 में 93 वर्ष की आयु तक वे समाज के मार्गदर्शक की भूमिका में रहे। अटलजी भारतीय राजनीति में आदर्श, शिष्टता और नैतिकता का प्रतीक बने। उनके विचार प्रगतिशील, लोकतांत्रिक और समावेशी थे। उन्होंने महिला सशक्तिकरण, सामाजिक समानता और विज्ञान-प्रौद्योगिकी के विकास को देश की प्रगति के लिए महत्वपूर्ण माना। वे लोकमंगल का भाव लिए सुशासन करने के लिए सदैव याद किए जाएंगे।
(लेखक भारतीय जनता पार्टी मध्यप्रदेश के प्रदेश संगठन महामंत्री है)