
सुमित राठौर
मेरे मित्र ने दुकानदार से सवाल किया कि आपने इन कुर्सियों पर जो लिखा है, वह वैसा काम करती है यह कैसे माना जाए। तो दुकानदार ने मित्र को आमंत्रित किया कि आप दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन जी की इस कुर्सी पर बैठकर देखिए। मेरा मित्र जैसे ही उस कुर्सी पर बैठा तो उसे लगा कि उससे सीबीआई और ईडी जैसे अधिकारी सवाल कर रहे हैं। थोड़ी देर बाद उसकी याददाश्त चली गई। उसने मुझे ही पहचानने से इनकार कर दिया। मैंने दुकानदार से निवेदन किया तब उसने मित्र को कुर्सी से उतारा। अब हमें पूरा विश्वास हो गया था कि कुर्सी वाकई में चमत्कारी है। हमने सवाल किया कि आपने इन कुर्सियों में चमत्कारी गुण डाले तो उसका जवाब था कि कुछ नहीं साहब, मैंने इन कुर्सियों को बनाते समय इन नेताओं के चित्र दिखा दिए थे। कुर्सियों को बनाते समय मैं इन नेताओं के चरित्र भी बताते जाता था। ऐसा करते-करते इन कुर्सियों ने अपना चमत्कार दिखाना शुरू कर दिया। हमने देखा उसकी दुकान पर अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसौदिया, संजय सिंह, सत्येन्द्र जैन, पंजाब के स्वास्थ्य मंत्री विजय सिंगला, सोमनाथ भारती, ताहिर हुसैन, अमानतुल्ला खान जैसे नेताओं के चित्र लगे हुए थे। मेरे मित्र ने सवाल किया आपके पास इनके अलावा कुछ और विशेष कुर्सियां भी हो तो बताइए। दुकानदार भीतर से दो और कुर्सियां लेकर आया। उसने कहा- यह कुर्सी ले लो साहब! इस पर बैठते से ही आप अपने आपको महाराणा प्रताप का वंशज तक समझने लगेंगे। भारत रत्न मिले ऐसे प्रयास शुरू हो जाएंगे।
दूसरी कुर्सी दिखाते हुए बोला- यह वाली ले लो!
आप इस पर बैठकर थूक कर चाट सकते हैं। पहले आप लोगों पर आरोप पर आरोप लगाना। जब आप पर मानहानी केस लगे तो आप बाद में माफी मांग लेना। इस पर बैठकर आप अपनी तुलना प्रधानमंत्री से कर सकते हैं। प्रधानमंत्री बनने के सपने देख सकते हो। सत्ता के स्वार्थ के लिए किसी भी हद तक गिर सकते हैं। रेवड़ी बांटने का मन करेगा। इस कुर्सी पर बैठकर आपका मन उतरने का नहीं करेगा। फैविकोल जैसे चिपक जाओगे साहब!
हम इतनी चमत्कारी कुर्सियां देखकर दंग थे। हमें लगा कि इन कुर्सियों में कुछ न कुछ तो गड़बड़ है। मेरे मित्र ने सवाल किया कि आपने कोई ऐसी कुर्सी नहीं बनाई जिस पर बैठकर सच बोला जा सके, जिस पर बैठकर महंगाई, बेरोजगारी, कुपोषण, हिंसा, भेदभाव, धार्मिक कट्टरता, आतंकवाद, अशिक्षा, महिला सुरक्षा, भ्रष्टाचार, भुखमरी, रोटी, कपड़ा, मकान जैसी समस्याएं समाप्त की जा सकें।
इस पर दुकानदार मायूस होकर बोला- साहब! 75 साल से मैं ऐसी ही कुर्सी बनाने की कोशिश आज तक कर रहा हूं, लेकिन अभी तक बना नहीं पाया।
– लेखक स्वंत्रत पत्रकार हैं।