नई दिल्ली।
तीनों सेनाओं में भर्ती के लिए शुरू की गई नई योजना ‘अग्निपथ’ पर अलग-अलग तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। लेकिन इस योजना का क्रियान्वयन यदि सफल होता है तो कम से कम दो दशक के बाद पूर्व सैनिकों के पेंशन पर व्यय में 75 फीसदी तक की कमी आ सकती है। हालांकि, चीन एवं पाकिस्तान से दोहरे मोर्चे पर कायम खतरे के बीच योजना के नतीजों पर आने वाले वर्षों में सबकी नजर रहेगी। देश में अभी तकरीबन 24-25 लाख पूर्व सैनिक होने का अनुमान है। हर साल तीनों सेनाओं से 60-70 हजार जवान रिटायर होते हैं। आमतौर पर 38-42 साल की उम्र में ज्यादातर जवान रिटायर हो जाते हैं जिसके बाद उनकी निर्भरता पेंशन पर रहती है। रक्षा क्षेत्र को होने वाले आवंटन का एक बड़ा हिस्सा पूर्व सैनिकों की पेंशन पर खर्च होता है। उदाहरण के लिए इस साल 5.25 लाख करोड़ के कुल रक्षा बजट में 1.19 लाख करोड़ रुपये पूर्व सैनिकों की पेंशन पर आवंटित हुए हैं। पूर्व में यह राशि 1.33 लाख करोड़ तक पहुंच चुकी थी। यह राशि करीब-करीब उतनी ही है जितनी अभी तीनों सेनाओं के वेतन-भत्तों एवं संचालन पर खर्च होती है। इसलिए पेंशन के बढ़ते बजट को थामना सरकार के लिए चुनौती है। इस लिहाज से यह दूरगामी फैसला कहा जा सकता है।
अभी पुरानी व्यवस्था
सेना में अभी भी पुरानी पेंशन व्यवस्था लागू है जिसमें पेंशन पूरी तरह से सरकार द्वारा अदा की जाती है जबकि 2004 के बाद केंद्र कर्मियों के लिए नई पेंशन योजना लागू हो चुकी है। नई पेंशन योजना में कार्मिकों के वेतन से राशि की कटौती होती है और उससे ही बाद में पेंशन मिलती है। हालांकि, कुछ आलोचक कहते हैं कि इस योजना को लाने से बेहतर था कि सेनाओं को नई पेंशन योजना के दायरे में लाया जाता।
पेंशन घटाने के पक्ष में थे रावत
पूर्व सीडीएस जनरल बिपिन रावत पेंशन खर्च घटाने के लिए चाहते थे कि 35-40 फीसदी जवानों को 55 साल की उम्र में रिटायर किया जाए। युद्ध के मोर्चे के लिए 60-65 फीसदी कम उम्र के जवान तब भी उपलब्ध रहेंगे। अब साफ है कि वह फार्मूला अब खारिज हो चुका है।
संख्या घटनी शुरू हो जाएगी
अग्निपथ योजना में भर्ती होने वाले सैनिकों में से अधिकतम 25 फीसदी को ही नियमित सैनिकों के रूप में भर्ती किया जाएगा। यह प्रक्रिया सतत जारी रहने से पेंशनरों की संख्या घटनी शुरू हो जाएगी। यह चक्र यदि चलता रहेगा तो 18-20 साल के बाद एक समय ऐसा आएगा जब सेनाओं में पेंशन पाने के योग्य सैनिकों की संख्या महज 25 फीसदी रह जाएगी और 75 फीसदी जवान अग्निपथ योजना के दायरे में होंगे। क्योंकि सरकार ने अभी कोई ऐसी घोषणा नहीं की है कि अग्निवीर और नियमित सैनिकों का कोई निश्चित अनुपात कायम रखा जाएगा या नहीं। हो सकता है कि बाद में सेनाओं में अग्निवीरों की अधिकतम प्रतिशत सुनिश्चित कर दी जाए। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि नई योजना में सेनाओं में युवाओं की भागीदारी बढ़ेगी। चार साल का सेवाकाल तय होने से ज्यादा संख्या में युवाओं को सेना में जाने का मौका मिलेगा।