राजौरी गार्डन के सुभाष आर्य के संघर्ष से डिस्पेंसरी को तब्दील कर बना था बड़ा अस्पताल

नई दिल्ली
आजादी के बाद 23 वर्षो तक पश्चिमी दिल्ली का पूरा इलाका एक-दो डिस्पेंसरी पर ही निर्भर रहा। छोटी-मोटी बीमारियों का इलाज तो हो जाता था, लेकिन जब कोई गंभीर बीमारी होती थी तो यहां के लोगों को नई दिल्ली स्थित अस्पतालों की ओर रुख करना पड़ता था। साधन की कमी और स्वास्थ्य सुविधाओं की सीमित व्यवस्था का दंश लोगों को लंबे अर्से तक झेलना पड़ा। इस इलाके में हरि नगर में एक छोटी सी डिस्पेंसरी थी। लोगों की इस परेशानी को देखते हुए राजौरी गार्डन निवासी सुभाष आर्य ने इलाके में एक अस्पताल बनवाने की ठानी और इसके लिए पत्र व्यवहार के माध्यम से अपनी बात रखी। सुभाष आर्य ने बताया कि उस दौरान दिल्ली में मुख्यमंत्री नहीं हुआ करते थे। दिल्ली की कार्यप्रणाली चीफ एग्जीक्यूटिव काउंसलर के हाथ में होती थी। प्रो. विजय कुमार मल्होत्र उस समय चीफ एग्जीक्यूटिव काउंसलर थे। उन्होंने कहा कि ‘मैंने विजय कुमार मल्होत्र के पास हरि नगर में डस्पेंसरी को अस्पताल का स्वरूप देने के लिए योजना प्रस्तुत की।’

टीन शेड में डीडीयू अस्पताल की हुई थी शुरुआत
वर्ष 1970 में हरि नगर में डीडीए की जमीन पर सबसे पहले टीन शेड में दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल की शुरुआत 50 बेड से की गई। धीरे-धीरे इलाके की आबादी बढ़ती गई और वर्ष 1987 में नई इमारत बनाकर इस अस्पताल को पांच सौ बेड का किया गया। इस दौरान आपातकालीन विभाग भी खोला गया, लेकिन तबतक यह विभाग 24 घंटे काम करना शुरू नहीं किया था। वर्ष 1998 में इस अस्पताल में 24 घंटे इमरजेंसी सेवा शुरू कर दी गई और यह दिल्ली के बड़े अस्पतालों में शुमार हो गया। अस्पताल का विस्तार यहीं नहीं रुका और वर्ष 2008 में नए ट्रामा सेंटर का निर्माण होने के साथ ही बेड की संख्या 640 हो गई। सुभाष आर्य ने कहा कि प्रो. विजय कुमार मल्होत्र का हमें भरपूर साथ मिला और उनके निश्चय का ही यह परिणाम है कि आज भी दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल पश्चिमी दिल्ली इलाके में स्वास्थ्य व्यवस्था की रीढ़ बना हुआ है।

केंद्र सरकार ने बजट देने से कर दिया था मना, नया कर लगाने का दिया था सुझाव
उस समय पैसे का अभाव था। बिना बजट के काम कैसे हो सकता था। लोगों की परेशानी को देखते हुए केंद्र सरकार से बजट की मांग की गई, लेकिन केंद्र ने इस प्रस्ताव पर विचार करने से पूरी तरह मना कर दिया। इसके बाद भी हम लोग पत्र व्यवहार में लगे रहे। प्रो. विजय कुमार मल्होत्र के साथ बैठक कर संभावित रास्तों की तलाश करने लगे। अंत में केंद्र सरकार इस बात पर राजी हुई कि अगर आप कोई नया टैक्स लगाकर इन कार्यो को कर सकते हैं तो केंद्र इसमें कोई दखलअंदाजी नहीं करेगा। सुभाष आर्य ने कहा कि लोगों की समस्याओं को देखते हुए हमने जो प्रस्ताव प्रो. मल्होत्र को दिया था उसपर वो काम करना चाहते थे और पूरी शिद्दत के साथ वे इसमें जुटे रहे। केंद्र ने जब नया टैक्स लगाने की बात कही तो प्रो. मल्होत्र ने दो-तीन चीजों पर टैक्स बढ़ाया, जिसमें औद्योगिक क्षेत्रों में बिजली बिल पर प्रति यूनिट एक पैसे की बढ़ोतरी शामिल थी। धीरे-धीरे टैक्स के पैसे आने लगे और इलाके में अस्पताल बनाने का सपना साकार होने लगा। उस दौरान टैक्स बढ़ने का लोगों ने विरोध भी नहीं किया था। उन्हें पता था कि टैक्स के पैसों से उनके लिए सुविधाएं बढ़ाई जाएंगी।