अहमदाबाद। गुजरात का हेमल श्रीमाली अभी 18 साल का है. लेकिन उसकी चर्चा उसकी उम्र से ज्यादा है. उसने अभी फरवरी के महीने में ही एनडीए, खड़कवासला, पुणे में दाखिला लिया है. देश की सेनाओं में शामिल होने के लिए स्कूल स्तर के तुरंत बाद ली जाने वाली यह प्रतिष्ठित परीक्षा हेमल ने बीते साल के आखिर में पास की थी. और अब एनडीए (NDA) में उसके सपनों को आकार दिया जाने वाला है. वैसे, देखा जाए तो एनडीए में पास होना और उसमें दाखिल होना एक सामान्य प्रक्रिया है. लेकिन हेमल के मामले में बात थोड़ी अलग है, इसीलिए वह सुर्खियों में है. क्या है वह? जवाब आगे…
पिता ऑटो ड्राइवर और पढ़ाई का खर्च शहीद के पिता ने उठाया
जो बात हेमल को दूसरों से अलग करती है, वह ये कि उसके पिता मुकेश श्रीमाली एक ऑटो ड्राइवर हैं. उनकी कमाई इतनी नहीं है कि वे बेटे को महंगी पढ़ाई करा सकें या एनडीए जैसी परीक्षा के लिए उसकी तैयारी का खर्च उठा सकें. ऐसे में, यहां से भारतीय सेना के शहीद मेजर ऋषिकेश रमानी के पिता वल्लभ रमानी की भूमिका शुरू होती है. वे हेमल की पढ़ाई का खर्च उठाते हैं. भारतीय सेना की तरफ उसका रुझान देखकर उसे सैनिक स्कूल में दाखिला लेने के लिए प्रेरित, प्रोत्साहित करते हैं. हेमल ने भी उन्हें निराश नहीं किया. वह सैनिक स्कूल में दाखिला लेने में सफल तो होता ही है. आगे चलकर एनडीए (NDA) की प्रवेश परीक्षा में कामयाबी हासिल कर सेना में दाखिल होने का रास्ता भी पुख्ता कर लेता है.
मां ने सुनाईं शहीदों की कहानियां और नाना से मिली प्रेरणा
मुकेश श्रीमाली बताते हैं, ‘हेमल का रुझान शुरू से ही सेना और भारतीय सैनिकों की ओर रहा. उसकी मां उसे बचपन से ही भारतीय सैनिकों, शहीदों की कहानियां सुनाया करती थीं. उसके नाना राज्य पुलिस में नौकरी करते थे. इस सबसे वह इतना प्रेरित हुआ और केजी में जब उसके स्कूल में उससे पूछा गया कि बड़े होकर क्या बनोगे? तो उसने बिना देर किए बस एक ही उत्तर दिया- सैनिक. मतलब बचपन से उसकी दिशा स्पष्ट थी.’
साबित किया, सही मौका मिले तो गुजराती भी सेना के लिए तैयार
एक अन्य शहीद कैप्टन नीलेश सोनी के भाई जगदीश कहते हैं, ‘गुजराती लोग आम तौर पर सेना में नहीं जाते. लेकिन हेमल ने साबित किया है कि अगर सही मौका और मार्गदर्शन मिले तो गुजराती भी सेना में शामिल होकर देशसेवा के लिए तैयार हैं.’ मेजर ऋषिकेश के पिता वल्लभ रमानी भी कुछ ऐसी ही बात करते हैं, ‘जब हेमल छोटा था, तब हमने उसे अन्य प्रतिभावान बच्चों के साथ चुना था. वह सेना के बारे में लगातार सवाल पूछता रहता था. जैसे, उसे सब जानना हो. फिर जब बालाचड़ी के सैनिक स्कूल में उसका दाखिला हो गया, तब भी वह हमारे पास लगातार आता रहता था. ऋषिकेश की वर्दी, उसके मैडल और अन्य चीजों को बड़े चाव से देखता था. उनके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारियां लेने की कोशिश किया करता था.’ इसी तरह मुकेश बताते हैं, ‘हेमल ने पांचवीं कक्षा तक गुजराती भाषा माध्यम से पढ़ाई की. इसलिए सैनिक स्कूल में उसे शुरुआत में सीबीएसई पाठ्यक्रम के साथ तालमेल बनाने में काफी दिक्कत हुई. पर सेना के लिए उसका रुझान इतना अधिक था कि उसने हर बाधा को पार कर लिया.’