पुणे
एंटीबायोटिक दवाओं के अत्यधिक और बेजा इस्तेमाल के कारण जीवाणुओं में प्रतिरोधक क्षमता पैदा हो रही है और अक्सर इससे नये सुपरबग या माइक्रो आर्गेनिज्म भी उत्पन्न हो रहे हैं, जो मरीजों में नया संक्रमण फैलाते हैं। देश भर में इसके मामले बढ़ रहे हैं। इसके चलते अस्पताल में इलाज की कीमत में भारी इजाफा हो रहा है। एक अध्ययन में दावा किया गया है कि एंटी माइक्रोबियल रेसिस्टेंस (एएमआर) के चलते सरकारी अस्पतालों में इलाज की कीमत 40.4 फीसदी तक बढ़ चुकी है।
आईसीएमआर की पुणे स्थित प्रयोगशाला नेशनल एड्स रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनएआरआई) ने अनेक अस्पतालों में भर्ती मरीजों पर यह अध्ययन किया है। अध्ययन में पाया गया कि सरकारी अस्पतालों में इलाज कार रहे मरीजों के खर्च में इससे 40.4 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई। निजी अस्पतालों में भी कमोबेश यही स्थिति पाई गई है। एनएआरआई की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. मेघा मामुलवार ने बताया कि यह अध्ययन जल्द ही क्लीनिकल इंफेक्शियस डिजीज जर्नल में प्रकाशित होने जा रहा है। उन्होंने बताया कि अध्ययन में आईसीएमआर नेटवर्क के सात बड़े अस्पतालों को शामिल किया गया तथा वहां भर्ती मरीजों पर 2018-19 के दौरान यह अध्ययन किया गया।
उन्होंने कहा कि अस्पताल में भर्ती रहने के कारण लोगों में एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेंट के मामले बढ़ रहे हैं जिसके कारण नये पेथोजन एवं बग उत्पन्न होते हैं जो मरीजों को संक्रमित करते हैं। इन संक्रमणों के कारण मरीजों को ज्यादा समय तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ता है। जिस बीमारी का इलाज चल रहा होता है, उसके अलावा नये संक्रमण के उपचार के लिए अतिरिक्त दवाएं देनी पड़ती हैं। इसके अलावा कंज्यूमेबल मेडिकल उपकरण जैसे मास्क, गल्व्ज, सीरिंज आदि का इस्तेमाल भी बढ़ जाता है। उपरोक्त अवधि के दौरान संक्रमित हुए मरीजों के खर्च के आकलन में यह पाया गया कि इलाज का खर्च 40.4 फीसदी तक बढ़ गया था। बता दें कि एंटीबायोटिक दवाएं जो बीमारी फैलाने वाले जीवाणुओं को मारती हैं, कभी-कभी जीवाणुओं में इनके खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता पैदा हो जाती है। इतना ही नहीं इससे जीवाणुओं से कुछ नये माइक्रो आर्गेनिज्म उत्पन्न होकर नये सुपरबग का रुप धारण कर लेते हैं।