नई दिल्ली
एनडीए के उम्मीदवार जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति चुनाव में जबरदस्त जीत दर्ज की है। धनखड़ ने विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेटअल्वा को बड़े अंतर से मात दी है। जगदीप धनखड़ ने मार्गरेट अल्वा को 346 वोटों से मात दी है। जगदीप धनखड़ को जीत के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, संसदीय कार्यमंत्री प्रहलाद जोशी, विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा सहित तमाम शीर्ष नेताओं ने बधाई दी। धनखड़ को कुल 74.36 फीसदी वोट मिले, जोकि पिछले 6 उपराष्ट्रपति चुनाव में सर्वाधिक है।
वरिष्ठ वकील रहे
जगदीप धनखड़ के व्यक्तिगत जीवन की बात करें तो उनका जन्म 1950 में जाट समुदाय में हुआ था। राजस्थान के एक छोटे से गांव खिताना में एक किसान परिवार में धनखड़ का जन्म हुआ था। जगदीप धनखड़ का विवाद सुदेश धनखड़ से 1979 में हुआ था, उनकी एक बेटी है जिसका नाम कामना है। जगदीप धनखड़ ने अपना करियर बतौर वकील शुरू किया था। वह राजस्थान हाई कोर्ट में और सुप्रीम कोर्ट में वकील रह चुके हैं। इसके बाद 1990 में उन्हें वरिष्ठ वकील नियुक्य किया गया, इसके एक साल बाद वह सक्रिय राजनीति में आए।
कई बड़े केस में की पैरवी
बतौर वकील उन्होंने कई केस पर बहस की। उन्होंने 2016 में सतलज नदी के पानी के विवाद पर हरियाणा सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में बहस की। वह राजस्थान हाई कोर्ट बार असोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष भी रह चुके हैं। वह आरएसएस के नेताओं के खिलाफ भी कोर्ट में पेश हो चुके हैं। आरएसएस नेता इंद्रेश कुमार के खिलाफ भी वह कोर्ट में खड़े हो चुके हैं।
देश के पूर्व उपप्रधानमंत्री चौधरी देवील लाल के वह करीबी थे और उनके साथ काफी नजदीकी संबंध था। जब वीपी सिंह सरकार से चौधरी देवीलाल ने बाहर आने का फैसला लिया तो जगदीप धनखड़ ने भी उनका साथ दिया। इसके बाद चंद्रशेखर की सरकार में धनखड़ केंद्रीय मंत्री बने। इसके बाद वह कांग्रेस में शामिल हुए। जब पीवी नरसिम्हा राव की सरकार बनी तो उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया। लेकिन जिस तरह से राजस्थान में अशोक गहलोत का उदय हुआ उसके बाद जगदीप धनखड़ भाजपा के साथ हो लिए।
पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहे
जगदीप धनखड़ को जुलाई 2019 में पश्चिम बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया गया। अपने कार्यकाल में जगदीप धनखड़ और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच लगातार तनातनी का माहौल बना रहा। राजस्थान में ओबीसी के मुद्दों को उठाने के लिए जगदीप धनखड़ को याद किया जाता है। उन्होंने जाट समुदाय को ओबीसी की श्रेणी में लाने की वकालत की थी।