‘दोस्त’ ममता बनर्जी से मार्गरेट अल्वा निराश, कहा- मैं उनके लिए लड़ी, हर जंग में साथ दिया

 नई दिल्ली
 
उपराष्ट्रपति चुनाव में तृणमूल कांग्रेस के वोट नहीं देने के फैसले से मार्गरेट अल्वा 'निराश' हैं। वह पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को अपना अच्छा दोस्त बताती हैं और उनके इस कदम पर हैरानी भी जाहिर कर रही हैं। एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने बताया कि बनर्जी उनका फोन भी नहीं उठा रही हैं। भारत के उपराष्ट्रपति के लिए शनिवार को मतदान होगा। बातचीत में अल्वा ने कहा कि उपराष्ट्रपति चुनाव विपक्षी दलों के लिए भी चुनौती हैं। उन्होंने कहा, 'मैं इस बात से सहमत हूं कि अगर और ज्यादा पार्टियां साझा उम्मीदवार का समर्थन करतीं, तो यह ज्यादा संतुष्टि देने वाला होता। लेकिन जो भी कारण हों, कुछ विपक्षी गुट में शामिल होने को लेकर संकोच कर रहे हैं।'

ममता बनर्जी को लेकर उन्होंने कहा, 'वह यूथ कांग्रेस के दिनों से मेरी अच्छी दोस्त रही हैं। मैंने उनके लिए लड़ा है, समर्थन किया है और हर जंग में उनके साथ रही हूं… जब टीएमसी ने दूर रहने का फैसला किया, तो मैं हैरान और निराश थी। इस चुनाव में कोई व्हिप नहीं होता और यह एक गुप्त बैलेट होता है। अगर आप व्हिप जारी नहीं कर सकते, तो आप अपने सांसदों को वोट नहीं देने के लिए कैसे कह सकते हैं? यह एक नेगेटिव व्हिप जारी करने जैसा है।' उन्होंने टीएमसी के विचार बदलने की उम्मीद जताई है। साथ ही कहा है कि यह सभी विपक्षी दलों की तरफ से भारतीय जनता पार्टी को चुनौती देने का समय है।

फोन पर नहीं हो रही बात!
सीएम बनर्जी से बातचीत को लेकर अल्वा कहती हैं, 'वह फोन नहीं उठातीं। मैंने उन्हें लिखा है और लोगों ने उनसे बात की है। हमारे सभी फोन टैप हैं… इसलिए बातचीत में थोड़ा संकोच है।' उन्होंने आगे कहा, 'लेकिन बड़ा सवाल यह है कि भाजपा की मदद करना टीएमसी के लिए कैसे मददगार होगा? ममता सभी भाजपा विरोधी दलों से मुलाकात का प्रयास कर रही हैं, इसलिए मुझे समझ नहीं आ रहा कि वह ऐसा क्यों कर रही हैं।'

विपक्षी नेतृत्व पर उठा दिए सवाल
विपक्ष के नेतृत्व को लेकर अल्वा ने साफ कर दिया है कि संसद में सबसे ज्यादा सीटें वाली पार्टी को ही नेतृत्व मिलेगा। उन्होंने कहा, 'कोई नहीं कह रहा कि किसे अगुवाई करनी चाहिए । सभी कह रहे हैं कि मतभेदों के बाद भी हर राज्य में किसी तरह का समझौता होना चाहिए।' उन्होंने कहा, 'साथ ही हो सकता है कि कोई बंगाल में बहुत मजबूत हो, लेकिन क्या आपकी पूरे भारत में पहुंच है? लेफ्ट केरल में मजबूत हो सकता है, लेकिन वे त्रिपुरा और बंगाल में हार गए।' उन्होंने कहा कि कोई भी अगुवाई के लिए किसी को खारिज नहीं कर रहा है, लेकिन 'यह संभव है कि भले ही आप सबसे बड़ी पार्टी न हों, लेकिन सभी चाहते हैं कि आप नेतृत्व करें।'