नागपुर। किसान आंदोलन की वजह से वापस लिए गए तीन कृषि कानूनों को लेकर केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने फिर विवादित बयान देकर राजनीतिक बहस तेज कर दी है। महाराष्ट्र के नागपुर में तोमर ने कहा कि हम फिर से नए सिरे से कृषि कानूनों को लेकर आएंगे। कृषि मंत्री ने कहा कि तीन कृषि कानून – पिछले महीने सरकार द्वारा लाखों किसानों द्वारा उग्र विरोध प्रदर्शन के बाद वापस ले लिए गए हैं लेकिन बाद की तारीख में फिर से पेश किए जा सकते हैं।
श्री तोमर ने विवादास्पद कानूनों को खत्म करने के लिए कुछ लोगों को दोषी ठहराया। उन्होंने कहा कि संसद में बहस और चर्चा के बाद उसे लागू किया गया था और फिर उसी प्रक्रिया को अपनाकर उसे निरस्त भी किया गया। हालांकि, उन कानूनों को फिर लागू करने के लिए बाद में पेश किया जाएगा। कृषि मंत्री ने कहा कि हम कृषि संशोधन कानून लाए। लेकिन कुछ लोगों को ये कानून पसंद नहीं आए, जो आजादी के 70 साल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक बड़ा सुधार थे।
पिछले महीने प्रधान मंत्री मोदी ने यूपी और पंजाब में चुनाव से ठीक तीन महीने पहले एक आश्चर्यजनक घोषणा करते हुए यह ऐलान किया कि तीन कृषि कानूनों को वापस ले लिया जाएगा। पीएम मोदी के ऐलान के बाद केंद्र सरकार ने आश्चर्यजनक रूप से यू-टर्न लेते हुए शीतकालीन सत्र में तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का प्रस्ताव पेश कर इसे वापस ले लिया।
दरअसल, तीन कृषि कानूनों के खिलाफ देश के किसानों ने जोरदार विरोध प्रदर्शन किया। करीब एक साल तक किसानों ने दिल्ली के बार्डर्स पर कानूनों को निरस्त करने के लिए डेरा डाले रखा। किसानों ने ऐलान किया था कि वह तबतक नहीं जाएंगे जबतक कानून वापस नहीं होंगे। विरोध में, पंजाब और यूपी (साथ ही हरियाणा और राजस्थान) के हजारों किसानों ने पिछले साल नवंबर से दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाला था। किसानों के आंदोलन के दौरान लखीमपुर खीरी में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी के बेटे आशीष मिश्र के काफिले ने आंदोलित किसानों पर गाड़ियां चढ़ा दी जिसमें चार किसानों सहित कई लोग मारे गए। किसानों के गुस्से और मतदाताओं के विरोध को देखते हुए सरकार झुकी और तीनों कानून वापस ले ली।
किसानों ने कृषि कानूनों का विरोध किया क्योंकि उनका मानना था कि यह उन्हें बड़ी कॉर्पोरेट फर्मों की दया पर छोड़ देगा क्योंकि अनुबंध-आधारित खेती में बदलाव और इन अनुबंधों पर सरकारी नियंत्रण नहीं रहेगा। सरकार ने इन चिंताओं के खिलाफ आश्वासन दिया था, लेकिन किसान कानूनों को खत्म करने की अपनी मांग पर अड़े रहे।