पुणे
महाराष्ट्र में कोल्हापुर जिले के एक गांव ने एक बड़ा फैसला लिया है। अगर गांव की रहने वाली किसी महिला के पति की मृत्यु हो जाती है तो अंतिम संस्कार के बाद उसके अपनाई जाने वाली उन प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाया गया है। पति की मौत के बाद महिलाओं को अब चूड़ियां तोड़ने, माथे से 'कुमकुम' (सिंदूर) पोंछने और विधवा के मंगलसूत्र को हटाने की प्रथा पर रोक लगाई गई है। इसका प्रस्ताव चार मई को पारित किया गया।गांव के लोगों से इस फैसले पर समर्थन भी मांगा गया है।
यह गांव हेरवाड़ आता है शिरोल तहसील में ग्राम पंचायत के सरपंच सुरगोंडा पाटिल है। पाटिल ने कहा कि उन्होंने बताया कि सोलापुर की करमाला तहसील में महात्मा फुले समाज सेवा मंडल के संस्थापक अध्यक्ष प्रमोद जिंजादे ने यह पहल की है। उन्होंने कहा कि महिलाओं को इस प्रथाओं से गुजरना पड़ता है, जो बहुत अपमानजनक होता है।
गांव बना मिसाल
पाटिल ने कहा, 'हमें इस प्रस्ताव पर बहुत गर्व महसूस हो रहा है क्योंकि इसने हेरवाड़ को अन्य ग्राम पंचायतों के लिए एक मिसाल के तौर पर पेश किया, खासकर जब हम समाज सुधारक राजा राजर्षि छत्रपति साहू महाराज के 100वें पुण्यतिथि वर्ष मना रहे हैं, जिन्होंने महिलाओं के उद्धार के लिए काम किया।'
ऐसे आया यह फैसला
सरपंच ने कहा, 'कोविड-19 की पहली लहर में, हमारे एक सहयोगी की दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई। उनके अंतिम संस्कार के दौरान, मैंने देखा कि कैसे उनकी पत्नी को चूड़ियां तोड़ने, मंगलसूत्र हटाने और सिंदूर पोंछने के लिए मजबूर किया गया था। इससे महिला का दुख और अधिक बढ़ गया। यह दृश्य हृदयविदारक था।'
सरपंच ने खुद भी तैयार की वसीहत
जिंजादे ने बताया कि इस तरह की प्रथा को रोकने का फैसला करते हुए उन्होंने इस पर एक पोस्ट लिखने के बाद गांव के नेताओं और पंचायतों से संपर्क किया और कई विधवाओं से इस पर अच्छी प्रतिक्रिया मिलने पर उन्हें खुशी हुई। उन्होंने ने कहा, 'अपनी ओर से एक उदाहरण स्थापित करने के लिए, मैंने स्टाम्प पेपर पर घोषणा की कि मेरी मृत्यु के बाद, मेरी पत्नी को इस प्रथा के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। दो दर्जन से अधिक पुरुषों ने मेरी इस घोषणा का समर्थन किया। तब हेरवाड़ ग्राम पंचायत मेरे पास पहुंची और कहा कि वे इस पर एक प्रस्ताव पारित करेंगे।'
कोविड में विधवा हुई महिलाओं के बच्चों की पढ़ाई के लिए मदद
हेरवाड़ के सरपंच सुरगोंडा पाटिल ने कहा, 'हमने उन महिलाओं के कल्याण के लिए कई कदम उठाए हैं, जिन्होंने अपने पति को कोविड से खो दिया है। हमने उनके प्रत्येक बच्चे की शिक्षा के लिए 5,000 रुपये की आर्थिक मदद दी है। अब, हमें लगा यह विधवाओं के बहिष्कार को समाप्त करने का समय था। हमने युवा महिलाओं को कारावास का जीवन जीने के लिए मजबूर करना, या अपवित्र या कोई ऐसा व्यक्ति जो दुर्भाग्य लाता है, को मजबूर करना सही नहीं समझा।"
विधानसभा से कानून बनाने की मांग
महिला स्वयं सहायता समूह के साथ कार्यरत अंजलि पेलवान (35) का कहना है कि विधवा होने के बावजूद वे समाज में स्वतंत्र रूप से गहने पहनकर घूमती हैं। उन्होंने बताया 'हमने राज्य के मंत्री राजेंद्र यद्राकर को विधवाओं के हस्ताक्षर वाला एक ज्ञापन सौंपा है, जिसमें विधवा प्रथा पर प्रतिबंध लगाने के लिए कानून बनाने की मांग की गई है।'