तीन सब-वैरिएंट में बंटकर और ताकतवर हुआ ओमिक्रॉन, पर यह राहत भी

नई दिल्ली

कोरोना का ओमिक्रॉन स्वरूप अब नए रूपों में बंटकर ज्यादा ताकतवर बनता जा रहा है। ओमिक्रॉन (बी.1.1.529) स्वरूप के तीन उपरूप( सब-वेरिएंट) बीए.1, बीए.2 और बीए.3 विकसित हो गए हैं। ओमिक्रॉन के फैलाव पर नजर रखने वाले भारतीय वैज्ञानिकों का कहना है कि देश में बीए.1 उपरूप ने तेजी से फैलकर डेल्टा स्वरूप की जगह लेनी शुरू कर दी है। हालांकि वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी ऐसे प्रमाण नहीं मिले हैं जिससे यह कहा जा सके कि ओमिक्रॉन के मुकाबले उसके उपरूप ज्यादा घातक संक्रमण फैलाते हैं।

महाराष्ट्र में तेजी से फैल रहा बीए.1
जीनोम सीक्वेंसिंग करने वाले भारतीय वैज्ञानिक का दावा है कि बीए.1 उपरूप बहुत तेजी से महाराष्ट्र व कई अन्य राज्यों में फैल रहा है। साथ ही इस उपरूप ने डेल्टा स्वरूप की जगह लेनी शुरू कर दी है जो कि दूसरी लहर के लिए जिम्मेदार था।

ओमिक्रॉन से भी तेज फैलते इसके उपरूप
डिपार्टमेंट ऑफ इंडियन सार्स-कोव-2-जिनोमिक कंसोर्टियम से जुड़े एक प्रमुख वैज्ञानिक के हवाले से बताया गया है कि देश में ओमिक्रॉन से भी ज्यादा तेजी से बीए.1 उपरूप फैल रहा है। वैज्ञानिक ने बताया कि संस्थान देशभर में जितने नमूनों की जीनोम सीक्वेंसिंग कर रहा है, उसमें ओमिक्रॉन के बजाय बीए.1 उपरूप मिल रहे हैं। चूंकि यह ओमिक्रॉन का ही एक उपरूप है इसलिए इसके ज्यादातर गुण मूल स्वरूप जैसे ही हैं। इस वजह से बीए.1 उपरूप के नमूनों को भी ओमिक्रॉन संक्रमित ही माना जा रहा है।
 

बंगाल में बीए.2 उपरूप फैला
ओमिक्रॉन के दूसरे उपरूप बीए.2 के सबसे ज्यादा मामले कोलकाता में सामने आ रहे हैं। स्थानीय अधिकारी के हवाले से प्रकाशित मीडिया रिपोर्टों में यह दावा किया गया है। बताया गया है कि कोलकाता से जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए भेजे जा रहे 80% नमूनों में ओमिक्रॉन का दूसरा उपरूप मिल रहा है। चिंता की बात यह है कि इस उपरूप का आरटीपीसीआर जांच से पता नहीं लगाया जा सकता। अहम बात यह भी है कि बीए.2 उपरूप से संक्रमित जितने भी मरीज मिले हैं, उनमें से किसी ने भी विदेश यात्रा नहीं की है। जबकि बीए.1 उपरूप वाले ज्यादातर लोगों की विदेश में यात्रा का इतिहास है।

तीसरे उपरूप के प्रमाण नहीं
कोरोना के ओमिक्रॉन स्वरूप के दो उपरूप तो देश में तेजी से फैल रहे हैं पर अबतक हुई एक भी जीनोम सीक्वेसिंग से तीसरी उपरूप का पता नहीं लग पाया है। इस मामले में महामारी वैज्ञानिकों का कहना है कि वायरस तेजी से अपना रूप बदलते रहते हैं इसलिए जीनोम सीक्वेंसिंग बढ़ाने की जरूरत है।