नई दिल्ली । केंद्र ने महंगाई को थामने के लिए गेहूं, आटे, चीनी के बाद चावल के निर्यात पर भी रोक लगा दी है। मोदी सरकार ने कहा है कि अगर कोई निर्यातक अपना उत्पाद देश के बाहर भेजना चाहता है, तब उस 20 फीसदी ज्यादा शुल्क का भुगतान करना होगा। इसके बाद सवाल उठता है कि आखिर सरकार ने यह कदम क्यों उठाया है?
दरअसल भारत दुनिया में चावल का सबसे बड़ा निर्यातक है, जबकि उत्पादन में वह चीन के बाद दूसरे नंबर पर आता है। भारत कुल वैश्विक निर्यात का 40 फीसदी शिपमेंट करता है। भारत के पास चावल का पर्याप्त भंडार भी है, घरेलू बाजार में अभी चावल की कीमत करीब 5 साल के निचले स्तर पर चल रही है। इतनी सारी अनुकूल परिस्थितियों के बावजूद सरकार को चावल निर्यात पर बैन लगाना पड़ रहा है, जिसका सबसे बड़ा फैक्टर एक बार फिर महंगाई बन रही है।
इस साल देश के प्रमुख चावल उत्पादक राज्यों में प्री-मानसून और मानसून की बारिश काफी कम रही है। यूपी, बिहार, पश्चिम बंगाल जैसे चावल उत्पादक राज्यों में औसत से भी 25 फीसदी काफी कम बारिश हुई। कृषि मंत्रालय ने बताया है कि खरीफ के चालू सत्र में देश का धान बुआई का रकबा 5.62 फीसदी कम हैं, इस बार सिर्फ 383.99 लाख हेक्टेयर में धान की बुआई हुई। बारिश कम होने से एक रकबा पहले ही घट गया है, ऊपर से पैदावार में भी गिरावट की आशंका है। इसके बाद मोदी सरकार को चिंता है कि आने वाले समय में घरेलू खपत के लिए चावल का संकट न पैदा होने पाए। दूसरी ओर, खुदरा महंगाई की दर कई महीनों से लगातार 6 फीसदी के ऊपर बनी हुई है। रिजर्व बैंक ने भी चालू वित्तवर्ष में इसके कंफर्ट जोन में आने की संभावनाओं से इनकार किया है। इसका सीधा मतलब है कि बढ़ती महंगाई खाने-पीने की वस्तुओं का बोझ बढ़ा सकती है और भारत में चावल की खपत दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले सबसे ज्यादा है। लिहाजा चावल के दाम बढ़ने से रोकने के लिए भी निर्यात पर काबू पाने का कदम उठाया गया है।
धान का बुआई रकबा घटने के साथ कम बारिश की वजह से पैदावार पर भी असर पड़ने की आशंका है। नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में बाढ़ की वजह से इस खरीफ सीजन में चावल पैदावार 10 से 15 फीसदी घट सकती है।अगर परिस्थितियां अनुकूल हो जाती हैं, तब पिछले साल जितनी ही पैदावार की संभावना होगी। अगर पिछली साल जितनी ही पैदावार रहती है, तब 2022-23 में चावल का उत्पादन 11.18 करोड़ टन रहेगा। अगर इसमें 10 फीसदी की गिरावट आई, तब उत्पादन 10.06 करोड़ टन होगा और अगर 15 फीसदी की गिरावट आई, तब 9.5 करोड़ टन चावल की ही पैदावार हो सकेगी। इसके बाद चिंताजनक बात ये है कि 2022-23 में भारत में चावल की कुल खपत 10.9 करोड़ टन रहने का अनुमान है, जबकि पैदावार उससे कम होने की आशंका जताई जा रही है।
भारत के चावल निर्यात पर रोक लगाने का सबसे ज्यादा असर पड़ोसी और एशियाई देशों पर होगा। दरअसल, दुनिया में कुल चावल उत्पादन में एशियाई देशों की हिस्सेदारी भी 90 फीसदी है और उसकी खपत भी 90 फीसदी है। चावल निर्यातक संगठन के अध्यक्ष बीवी कृष्ण राव का कहना है कि चावल की जिस वैराइटी पर सरकार ने शुल्क लगाया है, उसकी कुल निर्यात में 60 फीसदी हिस्सेदारी है। इसके बाद ग्लोबल मार्केट में चावल की कमी और उसकी कीमतें बढ़ना तय है। उन्होंने बताया कि अभी ग्लोबल मार्केट में चावल का रेट 350 डॉलर प्रति टन है, जो बढ़कर 400 डॉलर पहुंच सकता है।