हर हिन्दुस्तानी के दिल में हमेशा रहेंगे सुभाष चंद्र बोस

नई दिल्ली
'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा। खून भी एक दो बूंद नहीं इतना कि खून का महासागर तैयार हो जाए और उसमें ब्रिटिश साम्राज्य को डूबो दूं।' 'एक व्यक्ति एक विचार के लिए मर सकता है, लेकिन वह विचार उसकी मृत्यु के बाद, एक हजार जीवन में खुद का अवतार लेगा'। 'इतिहास गवाह है कि कोई भी वास्तविक परिवर्तन चर्चाओं से कभी नहीं हुआ'। इन महान विचारों से युवाओं में देशभक्ति का संचार करने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस हमेशा हम सभी के दिलों में रहेंगे।

सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक में एक संपन्न बंगाली परिवार में हुआ था। 1919 में उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा पास की। वह स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं से अत्यधिक प्रभावित थे और उन्हें अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे। उनके राजनीतिक गुरु चितरंजन दास थे। उन्होंने 1930 में नमक सत्याग्रह में सक्रिय रूप से भाग लिया। जुलाई 1943 में उन्होंने अपना प्रसिद्ध नारा ‘दिल्ली चलो’ दिया और 21 अक्तूबर 1943 को ‘आज़ाद हिंद सरकार’ तथा ‘भारतीय राष्ट्रीय सेना’ के गठन की घोषणा की। नेताजी का ऐतिहासिक भाषण रंगून के 'जुबली हॉल' में दिया गया। यह सदैव के लिए इतिहास के पन्नों में अंकित हो गया, जिसमें उन्होंने कहा था स्वतंत्रता बलिदान चाहती है। आपने आज़ादी के लिए बहुत त्याग किया है, किन्तु अभी प्राणों की आहुति देना शेष है। सुभाष चंद्र बोस स्वतंत्रता की लड़ाई के दौरान कुल 11 बार जेल गए। उनका मानना था कि स्वतंत्रता हासिल करने के लिए कूटनीति और सैनिकों का साथ होना भी आवश्यक है। जापान का साथ पाकर उन्होंने आजाद हिंद फौज और जापानी सेना को एकजुट कर भारत में अंग्रेजों पर आक्रमण किया और अंग्रेजी हुकूमत से अंडमान और निकोबार द्वीप को आजाद कराया। सुभाष चंद्र बोस ने गांधीजी को सर्वप्रथम राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया। महात्मा गांधी ने भी उन्हें नेताजी कहकर सम्मान दिया तभी से सुभाष चंद्र बोस को नेताजी की उपाधि मिली।