नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका के दौरान सुनवाई में रोमियो जूलियट एक्ट की पैरवी में अहम मुद्दा उठा। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से प्रतिक्रिया मांगी है कि क्या किशोरावस्था में सहमति से सेक्स को अपराध की श्रेणी से बाहर किया जा सकता है। दरअसल एक जनहित याचिका में यह दावा किया गया है कि भारत में लाखों नाबालिग और किशोर सहमति से सेक्स के संबंध में हैं, लेकिन किशोरी के गर्भवती हो जाने या संबंधों की जानकारी हो जाने पर किशोरी के अभिभावक किशोर के खिलाफ दुष्कर्म का मामला दर्ज कराते हैं और जिंदगियां बर्बाद होती हैं।
क्या है विरोध
भारत में पॉक्सो एक्ट 2012 में प्रावधान है कि 18 साल से कम उम्र के किसी भी बच्चे के साथ अगर कोई गलत हरकत करता है तो वह सेक्सुअल हेरासमेंट की श्रेणी में आता है और इस एक्ट में इसे गंभीर अपराध माना गया है। इधर आईपीसी की धारा 375 में प्रावधान है कि किसी भी 16 साल से कम उम्र की बालिका के साथ कोई संबंध बनाता है, भले ही इसमें बालिका की सहमति हो तो भी इसे बलात्कार माना जाएगा। याचिका में रोमियो जूलियट एक्ट भारत में भी लागू किए जाने की मांग करते हुए कहा गया है कि कई देश इस कानून को स्वीकार कर चुके हैं। इसमें नाबालिग और किशोरवय में सहमति से संबंध बनाने को अपराध नहीं माना जाता है। अगर किसी नाबालिग लडकी से संबंध बनाने वाले लडके की उम्र उससे चार साल से ज्यादा नहीं है तो उसे गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।
संबंधों को अपराध न माना जाए
याचिकाकर्ता और अधिवक्ता हर्ष विभोरे सिंघल ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड के समक्ष सुनवाई में अपील की कि 16 वर्ष से अधिक आयु में सहमति से शारीरिक संबंध बनाने वाले युवाओं को अपराध की श्रेणी से बाहर किया जाना चाहिए। सीजेआई की अगुवाई वाली बेंच ने मामले पर केंद्र सरकार से जवाब तलब किया है।