राजनीतिक

पंजाब के संकटमोचक हरीश रावत अपने ही राज्य में फंसे

नई दिल्ली देहरादून
उत्तराखंड में जब चुनाव में कुछ सप्ताह का ही वक्त बचा है, तब हरीश रावत की बगावत ने कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। बुधवार को रावत ने कई ट्वीट्स कर हाईकमान पर इशारों में ही निशाना साधा और कहा कि जिनके आदेश पर मुझे तैरना है, उनके ही कुछ नुमाइंदे मेरे हाथ-पैर बांध रहे हैं। उन्होंने अपने ट्वीट्स में किसी पर भी सीधे तौर पर निशाना नहीं साधा, लेकिन इशारों में ही सब कुछ कह गए। रावत के इन ट्वीट्स ने उत्तराखंड से पंजाब तक उनके विपक्षियों को बड़ा मौका दे दिया। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने रावत की टिप्पणियों पर कहा- आपने जो बोया था, वही काट रहे हैं। दरअसल हरीश रावत की कैप्टन को सीएम पद से हटाने की मुहिम में अहम भूमिका मानी जा रही थी।

प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव से नाराज हैं हरीश रावत?
हरीश रावत ने अपने ट्वीट में नुमाइंदों का जिक्र किया है। उनके करीबियों का कहना है कि हरीश रावत का इस शब्द के जरिए देवेंद्र यादव पर निशाना था, जो प्रदेश के प्रभारी हैं। हरीश रावत के एक करीबी नेता ने कहा, 'पार्टी के प्रभारी देवेंद्र यादव 2 से 3 लोगों के जरिए सब चीजें चला रहे हैं। दरबारियों को तवज्जो मिल रही है और राज्य के नेताओं को किनारे लगा दिया गया है। समस्या की जड़ यही है।' रावत के समर्थकों का कहना है कि लंबे समय से उन्हें साइडलाइन करने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने कहा कि रावत की इच्छा के बिना ही उन्हें पंजाब का प्रभारी बना दिया गया, जबकि उत्तराखंड और पंजाब में एक साथ ही चुनाव होने वाले हैं।

क्यों रावत ने चुनाव से ठीक पहले खोला मोर्चा
रावत के गुट के एक नेता ने कहा कि पंजाब के संकट को जिस तरह से रावत ने संभाला था, उसे देखते हुए उन्हें अपने गृह राज्य में अधिक ताकत देनी चाहिए थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। रावत कैंप का कहना है कि उनके समर्थकों को टिकट बंटवारे में तवज्जो न मिलने का डर है। ऐसे में पहले ही दबाव बनाने की रणनीति के तहत हरीश रावत ने लीडरशिप के खिलाफ मोर्चा खोला है। रावत को लगता है कि यदि उनके समर्थकों को टिकट कम मिले तो जीत के बाद उनके सीएम बनने की राह में रोड़ा अटक सकता है। यही वजह है कि वह अपने समर्थकों के लिए लामबंदी करने में जुटे हैं।

पहले भी दो बार झटके झेल चुके हैं हरीश रावत
हरीश रावत हमेशा से कांग्रेस और गांधी परिवार के वफादार रहे हैं, लेकिन उन्हें दो झटके झेलने पड़े हैं। 2002 में भी वह पहली बार सीएम बनने की रेस में थे, लेकिन तब पार्टी ने सीनियर लीडर एनडी तिवारी को मौका दिया था। इसके बाद 2012 में उन्हें एक बार फिर से सीएम बनने की उम्मीद जगी थी, लेकिन तब काफी जूनियर और कम जनाधार वाले नेता विजय बहुगुणा को मौका दिया गया। हालांकि 2013 की बाढ़ के संकट से सही ढंग से निपट पाने के आरोपों के बाद बहुगुणा को हटा दिया गया था। तब जाकर रावत को सत्ता मिल पाई थी। उस कार्यकाल में हरीश रावत काफी लोकप्रिय रहे, लेकिन 2017 में सत्ता से ही पार्टी बाहर हो गई। इस बार जीत की स्थिति में वह पूरे 5 साल के कार्यकाल की उम्मीद लगाए बैठे थे, लेकिन फिर से हालात उनके हाथ से बाहर जाते दिख रहे हैं।

 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button