नई दिल्ली । कांग्रेस को अब पूर्णकालिक अध्यक्ष पद का नेतृत्व जल्द ही मिलने वाला है। 17 अक्टूबर को कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव होगा। एक से अधिक उम्मीदवार होने की स्थिति में यह चुनाव कराए जाएंगे। नतीजे 19 अक्टूबर को आएंगे। 24 से 30 सितंबर के बीच नामांकन दाखिल किए जाएंगे। सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद शशि थरूर भी चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी में है। माना जा रहा है कि शशि थरूर ने सोनिया गांधी के समक्ष चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी। सोनिया गांधी ने गेंद को उनके पल्ले में ही डाल दिया। सोनिया गांधी ने साफ तौर पर कहा कि हर किसी को चुनाव लड़ने का अधिकार है। वह भी चुनाव लड़ने के लिए स्वतंत्र हैं। दूसरी ओर खबर यह भी है कि अशोक गहलोत भी चुनावी मैदान में उतरेंगे। अशोक गहलोत 26 से 28 अक्टूबर के बीच नामांकन दाखिल कर सकते हैं।
अब तक के खबरों को देखें तो ऐसा लगता है इस बार कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव होंगे। अगर ऐसा होता है तो 22 साल बाद फिर से इतिहास को दोहराया जाएगा। 22 साल पहले भी कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुए थे। बात वर्ष 2000 की है। सोनिया गांधी और जितेंद्र प्रसाद के बीच कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए मुकाबला हुआ था। जितेंद्र प्रसाद को इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। आपको बता दें कि जितेंद्र प्रसाद जितिन प्रसाद के पिता थे। पिछले साल जितिन प्रसाद ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने का निर्णय लिया था। उससे पहले कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए 1997 में चुनाव हुए थे। यह मुकाबला भी बेहद दिलचस्प था जब सीताराम केसरी, शरद पवार और राजेश पायलट आमने-सामने थे। इस चुनाव में सीताराम केसरी को जीत मिली थी।
माना जा रहा है कि शशि थरूर से मुलाकात के दौरान सोनिया गांधी ने इस बात को भी पूरी तरह से खारिज कर दिया कि इस चुनाव में गांधी परिवार से कोई अधिकृत उम्मीदवार होगा। दरअसल, 2019 के चुनाव में कांग्रेस को मिली हार से निराश होने के बाद राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। तब से कांग्रेस का अध्यक्ष पद खाली है। हालांकि, अंतरिम अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी अपनी जिम्मेदारी को निभा रही हैं। दूसरी ओर कई राज्यों की कांग्रेस कमेटी की ओर से राहुल गांधी को फिर से अध्यक्ष बनाने के प्रस्ताव को पारित किया गया है। हालांकि, हाल में ही राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर कहा था कि वह अपनी तरफ से साफ है की उन्हें क्या करना है। अगर वह अध्यक्ष पद का चुनाव नहीं लड़ेंगे तो भी कारण बता देंगे। गहलोत की उम्मीदवारी को लेकर कहा जा रहा है कि राजनीतिक तजुर्बे और गांधी परिवार के भरोसेमंद होने की कारण उन्हें आगे बढ़ाया जा रहा है।