बुद्धि का अर्थ है नीर-क्षीर विवेक करने वाली शक्ति और ज्ञान का अर्थ है आत्मा तथा पदार्थ को जान लेना। ज्ञान का अर्थ है आत्मा तथा भौतिक पदार्थ के अन्तर को जानना। आधुनिक शिक्षा में आत्मा के विषय में कोई ज्ञान नहीं दिया जाता, केवल भौतिक तत्वों तथा शारीरिक आवश्यकताओं पर ध्यान दिया जाता है। फलस्वरूप शैक्षिक ज्ञान पूर्ण नहीं हैं। असम्मोह अर्थात संशय तथा मोह से मुक्ति तभी प्राप्त हो सकती है, जब मनुष्य झिझकता नहीं और दिव्य दर्शन को समझता है। वह धीरे-धीरे निश्चित रूप से मोह से मुक्त हो जाता है। क्षमा का अभ्यास करना चाहिए। मनुष्य को सहिष्णु होना चाहिए और दूसरों के छोटे अपराध क्षमा कर देना चाहिए।
सत्यम का अर्थ है तथ्यों को सही रूप में अन्यों के लाभ के लिए प्रस्तुत किया जाए। तथ्यों को तोड़ना-मरोड़ना नहीं चाहिए। सामाजिक प्रथा के अनुसार कहा जाता है कि वही सत्य बोलना चाहिए, जिससे दूसरे लोग समझ सके कि सच्चाई क्या है। कोई चोर है और यदि लोगों को सावधान कर दिया जाये कि अमुक व्यक्ति चोर है, तो यह सत्य है। यद्यपि सत्य कभी-कभी अप्रिय होता है, किन्तु कहने में संकोच नहीं करना चाहिए। सत्य की मांग है कि तथ्यों को यथारूप में लोकहित के लिए प्रस्तुत किया जाए। यही सत्य की परिभाषा है।
दम का अर्थ है इन्द्रियों को व्यर्थ विषयभोग में न लगाया जाए। अनावश्यक इन्द्रियभोग आध्यात्मिक उन्नति में बाधक है। मन पर भी अनावश्यक विचारों के विरुद्ध संयम रखना चाहिए। इसे शम कहते हैं। मनुष्य धन-अर्जन के चिन्तन में ही सारा समय न गवाए। यह चिन्तन शक्ति का दुरुपयोग है। मन का उपयोग मनुष्यों की मूल आवश्यकताओं को समझने के लिए किया जाना चाहिए। साधुपुरुषों, गुरुओं महान विचारको की संगति में रहकर विचार-शक्ति का विकास करना चाहिए। जो कुछ कृष्णभावनामृत के विकास के अनुकूल हो, उसे स्वीकार करे और जो प्रतिकूल हो, उसका परित्याग करे।