देवउठनी एकादशी को देवोत्थान एकादशी और देव प्रबोधिनी एकादशी भी कहते हैं। देव उठनी ग्यारस इस दिन देव यानी श्रीहरि विष्णु उठ जाते हैं। इस दिन से चातुर्मास समाप्त हो जाता है। इसके बाद से सभी तरह के मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं। इस बार इस एकादशी का व्रत 23 नवंबर गुरुवार के दिन रखा जा रहा है। इसके बाद विवाह कार्य प्रारंभ हो जाएंगे। बालाजी ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र सीहोर के ज्योतिषाचार्य पंडित सौरभ गणेश शर्मा ने बताया कि इस वर्ष विवाह के निम्न मूहर्त रहेंगे-
नवंबर 2023 विवाह मुहूर्त : 23, 24, 27, 28 और 29 नवंबर को विवाह के शुभ मुहूर्त हैं। यानी कुल 5 शुभ दिन उपलब्ध हैं।
दिसंबर-2023 विवाह मुहूर्त : 5 , 6, 7, 8, 9, 11 और 15 दिसंबर को विवाह के शुभ मुहूर्त हैं। यानी कुल 7 शुभ दिन उपलब्ध हैं।
जनवरी-2024 विवाह मुहूर्त : 16, 17, 20, 21, 27, 28, 30 और 31 जनवरी को विवाह के शुभ मुहूर्त हैं। यानी कुल 8 शुभ दिन उपलब्ध हैं।
फरवरी-2024 विवाह मुहूर्त : 4, 6, 7, 8, 12, 13, 17, 24, 25, 26 और 29 फरवरी को विवाह के शुभ मुहूर्त हैं। यानी कुल 11 शुभ दिन उपलब्ध हैं।
मार्च 2024 विवाह मुहूर्त : 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 10, 11 और 12 मार्च को विवाह के शुभ मुहूर्त हैं यानी कुल 10 शुभ दिन उपलब्ध हैं।
अप्रैल-2024 विवाह मुहूर्त : 18, 19 और 20 अप्रैल को विवाह के शुभ मुहूर्त हैं। यानी कुल 3 शुभ दिन उपलब्ध हैं।
मई-2024 विवाह मुहूर्त : कोई दिन उपलब्ध नहीं है।
जून-2024 विवाह मुहूर्त : कोई दिन उपलब्ध नहीं है।
जुलाई-2024 विवाह मुहूर्त : 9, 11, 12, 13, 14 और 15 जुलाई को विवाह के शुभ मुहूर्त हैं। यानी कुल 6 शुभ दिन उपलब्ध हैं।
जुलाई में देव सो जाएंगे।
पंडित सौरभ गणेश शर्मा ज्योतिषाचार्य ने बताया कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी देवउठनी एकादशी के दिन देवता जागृत हो जाते हैं। इस दिन श्रीहरि विष्णु चार माह की योगनिद्रा से जाग जाते हैं। इस दिन से सभी तरह के मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं। इस दिन तुलसी माता और शालिग्राम का विवाह होता है एवं उनकी पूजा होती है। कहते हैं कि देवोत्थान एकादशी का व्रत करने से हजार अश्वमेघ एवं सौ राजसूय यज्ञ का फल मिलता है। तुलसी विवाह के अधिकतर जगहों पर कार्तिक शुक्ल एकादशी और कुछ जगहों पर कार्तिक शुक्ल द्वादशी के दिन होगा। यानी 23 नवंबर को यह विवाह होगा। माता तुलसी का विवाह शालिग्राम के साथ तब होगा जब देव उठ जाएंगे।
ऐसे करें तुलसी विवाह –
जिन्हें कन्यादान करना होता है वे व्रत रखते हैं और शालिग्राम की ओर से पुरुष वर्ग एकत्रित होते हैं। शाम के समय सारा परिवार इसी तरह तैयार हो जैसे विवाह समारोह के लिए होते हैं।
अर्थात वर पक्ष और वधू पक्ष वाले अलग-अलग होकर एक ही जगह विवाह विधि संपन्न करते हैं। कई घरों में गोधुली वेला पर विवाह होता है या यदि उस दिन अभिजीत मुहूर्त हो तो उसमें भी विवाह कर सकते हैं। जिन घरों में तुलसी विवाह होता है वे स्नान आदि से निवृत्त होकर तैयार होते हैं और विवाह एवं पूजा की तैयारी करते हैं। इसके बाद आंगन में चौक सजाते हैं और चौकी स्थापित करते हैं। आंगन नहीं हो तो मंदिर या छत पर भी तुलसी विवाह करा सकते हैं। तुलसी का पौधा एक पटिए पर आंगन, छत या पूजा घर में बिलकुल बीच में रखें। तुलसी के गमले के ऊपर गन्ने का मंडप सजाएं। इसके बाद साथ ही अष्टदल कमल बनाकर चौकी पर शालिग्राम को स्थापित करके उनका श्रृंगार करते हैं। अष्टदल कमल के उपर कलश स्थापित करने के बाद कलश में जल भरें, कलश पर सातीया बनाएं, कलश पर आम के पांच पत्ते वृत्ताकार रखें, नारियल लपेटकर आम के पत्तों के ऊपर रख दें तुलसी देवी पर समस्त सुहाग सामग्री के साथ लाल चुनरी चढ़ाएं। गमले में शालिग्राम जी रखें। अब लाल या पीला वस्त्र पहनकर तुलसी के गमले को गेरू से सजाएं और इससे शालिग्राम की चौकी के दाएं ओर रख दें। तुलसी और शालिग्राम के आसपास गन्ने से मंडप बनाएं। मंडप पर उस पर लाल चुनरी ओढ़ा दें। अब तुलसी माता को सुहाग का प्रतीक साड़ी से लपेट दें और उनका वधू (दुल्हन) की तरह श्रृंगार करें।
शालिग्राम जी पर चावल नहीं चढ़ाते हैं। उन पर तिल चढ़ाई जा सकती है। तुलसी और शालिग्राम जी पर दूध में भीगी हल्दी लगाएं। शालिग्रामजी को पंचामृत से स्नान कराने के बाद उन्हें पीला वस्त्र पहनाएं। कोई पुरुष शालिग्राम को चौकी सहित गोद में उठाकर तुलसी की 7 बार परिक्रमा कराएं। इसके बाद तुलसी और शालिग्राम को खीर और पूड़ी का भोग लगाएं।
विवाह के दौरान मंगल गीत गाएं। तुलसी जी का विवाह विशेष मंत्रोच्चारण के साथ करना चाहिए। इसके बाद दोनों की आरती करें और इस विवाह संपन्न होने की घोषणा करने के बाद प्रसाद बांटें।
पंडित सौरभ गणेश शर्मा, ज्योतिषाचार्य, सीहोर
संपर्क : 9229112381