पितरों के आर्शीवाद पाने का पर्व श्राद्ध पक्ष

हिन्दू पंचांग के अनुसार इस बार पितृ पक्ष यानी श्राद्ध महालय भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से आरंभ हो रहे हैं। इस वर्ष पितृ पक्ष 18 सितंबर 2024 से शुरू हो रहे हैं और इसका समापन 2 अक्टूबर 2024 को अश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर होगा। बालाजी ज्योतिष अनुसंधान एवं परामर्श केंद्र के ज्योतिषाचार्य पंडित सौरभ गणेश शर्मा ने बताया कि धार्मिक शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध पक्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से अश्विन कृष्ण अमावस्या तक चलता है। इसमें श्राद्ध का पहला दिन और आखिरी दिन बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। पूर्णिमा और प्रतिपदा यानी पहले श्राद्ध में क्या करते हैं। पूर्णिमा के श्राद्ध को ऋषि तर्पण भी कहा जाता है। इस दिन मंत्रदृष्टा ऋषि मुनि अगस्त्य का तर्पण किया जाता है। इन्होंने ऋषि मुनियों की रक्षा के लिए समुद्र को पी लिया था और दो असुरों को खा गए थे। इसी के सम्मान में श्राद्ध पक्ष की पूर्णिमा तिथि को इनका तर्पण करके ही पितृ पक्ष की शुरुआत की जाती है। श्राद्ध की 16 तिथियां होती हैं। किसी भी एक तिथि में व्यक्ति की मृत्यु होती है चाहे वह कृष्ण पक्ष की तिथि हो या शुक्ल पक्ष की। श्राद्ध में जब यह तिथि आती है तो जिस तिथि में व्यक्ति की मृत्यु हुई है उस तिथि में उसका श्राद्ध करने का विधान है। जिनकी मृत्यु पूर्णिमा को हुई है उनका श्राद्ध पूर्णिमा को करते हैं। इनका श्राद्ध केवल भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा अथवा आश्विन कृष्ण अमावस्या को किया जाता है। इसे प्रोष्ठपदी पूर्णिमा भी कहा जाता है। जिस तिथि पर पूर्वजों की मृत्यु हुई थी, उस तिथि पर घरों में विशेष पूजा-अर्चना के साथ नदी, तालाब आदि स्थानों पर वैदिक मंत्रोच्चार के साथ तर्पण किया जाता है। इस दिन भाद्रपद पूर्णिमा की तिथि पर यानी पितृ पक्ष के पहले दिन ब्राह्मणों को दान-पुण्य और भोजन भी कराया जाता है। यह केवल भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा अथवा आश्विन कृष्ण अमावस्या को किया जाता है। गाय, काले कुत्ते और कौए के लिए अलग से ग्रास निकालकर उन्हें खिलाना चाहिए।

ये कार्य नहीं करें –
पितृपक्ष के दौरान शुभ व मांगलिक कार्य जैसे कि शादी-विवाह, सगाई, गृह प्रवेश, मुंडन या नई चीजों की खरीदारी भी वर्जित होती है। इसमें केवल पितरों का श्राद्ध करने की परंपरा है। पितृपक्ष में तिथि अनुसार ही पितरों का श्राद्ध किया जाता है। पितृपक्ष में लोग पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, पिंडदान और अन्य धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। लोग अपने पूर्वजों की तृप्ति के लिए भोजन और जल अर्पित करते हैं। ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं, उन्हें दान-दक्षिणा देकर पितरों की आत्मा की शांति की प्रार्थना करते हैं। यह भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से लेकर अश्विन महीने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि तक रहता है। पंडित शर्मा ने बताया कि पितृपक्ष के दौरान शुभ व मांगलिक कार्य जैसे कि शादी-विवाह, सगाई, गृह प्रवेश, मुंडन या नई चीजों की खरीदारी भी वर्जित होती है। इसमें केवल पितरों का श्राद्ध करने की परंपरा है। पितृपक्ष में तिथि अनुसार ही पितरों का श्राद्ध किया जाता है।

पितृ पक्ष की श्राद्ध तिथियां –
– बुधवार, 18 सितंबर- पूर्णिमा प्रतिपदा श्राद्ध
– गुरुवार, 19 सितंबर- द्वितीया श्राद्ध
– शुक्रवार, 20 सितंबर- तृतीया श्राद्ध
– शनिवार, 21 सितंबर- चतुर्थी श्राद्ध
– रविवार, 22 सितंबर- पंचमी श्राद्ध
– सोमवार, 23 सितंबर- षष्ठी श्राद्ध और सप्तमी श्राद्ध
– मंगलवार, 24 सितंबर- अष्टमी श्राद्ध
– बुधवार, 25 सितंबर- नवमी श्राद्ध
– गुरुवार, 26 सितंबर- दशमी श्राद्ध
– शुक्रवार, 27 सितंबर- एकादशी श्राद्ध
– शनिवार, 29 सितंबर- द्वादशी श्राद्ध
– रविवार, 30 सितंबर- त्रयोदशी श्राद्ध
– सोमवार, 1 अक्टूबर- चतुर्दशी श्राद्ध
– मंलगवार, 2 अक्टूबर- सर्व पितृ अमावस्या श्राद्ध

किस समय करना चाहिए श्राद्धकर्म –
शास्त्रों के अनुसार, पितृपक्ष में सुबह और शाम के समय देवी-देवताओं की पूजा होती है, जबकि दोपहर का समय पितरों को समर्पित होता है। इसलिए पितरों का श्राद्ध दोपहर के समय करना ही उत्तम होता है। पितृपक्ष में आप किसी भी तिथि पर दोपहर 12 बजे के बाद श्राद्धकर्म कर सकते हैं। इसके लिए कुतुप और रौहिण मुहूर्त सबसे अच्छे माने जाते हैं। इस दौरान पितरों का तर्पण करें। गरीब ब्राह्मणों को भोज कराएं। उन्हें दान-दक्षिणा दें। श्राद्ध के दिन कौवे, चींटी, गाय, कुत्ते को भोग लगाएं।

पंडित सौरभ गणेश शर्मा
ज्योतिषाचार्य, बालाजी ज्योतिष अनुसंधान एवं परामर्श केंद्र शास्त्री कॉलोनी स्टेशन रोड सीहोर
संपर्क 9229112381