चीन के सम्राट हुआन शी को पढ़ने का शौक था। उनका पुस्तकालय और सोने का कमरा दुनियाभर की किताबों से भरा रहता था। वह अपना अधिकतर समय पढ़ने में ही लगाते थे।
एक दिन सम्राट ने अपने मंत्री शान ची से कहा, ''मैं अब सत्तर वर्ष का हो चला हूं। मगर पढऩे की लालसा मन से जाती नहीं है। पर लगता है कि अब इस उम्र में पुस्तकों को अधिक समय नहीं दे पाऊंगा।''
मंत्री ने जवाब दिया, ''राजन, आप इस देश के सूर्य हैं। आपके ज्ञान के प्रकाश से ही देश का शासन सफलतापूर्वक चलता रहा है। अगर आप सूर्य नहं बने रहना चाहते तो कृपया दीपक बन जाइए।''
सम्राट को लगा कि मंत्री ने सूर्य से दीपक बनने को कहकर उन्हें उनके स्तर से गिराया है। उन्होंने नाराजगी भरे स्वर में कहा, ''शान ची, मैं गंभीर होकर यह बात कह रहा हूं और तुम इसे मजाक में ले रहे हो। मैं तो तुमसे मार्गदर्शन की अपेक्षा कर रहा था।''
शान ची ने हाथ जोड़ कर कहा, ''आपने मेरी बात ठीक से समझी नहीं शायद। कोई किशोर या युवा जब अध्ययन कर रहा होता है तो उसका भविष्य सूर्य के समान होता है, जिसमें अपार संभावनाएं छिपी होती हैं।प्रौढ़ावस्था में यही सूर्य दीपक के समान हो जाता है। दीपक में सूर्य जितना प्रकाश तो नहीं होता, फिर भी उसका उजाला अंधेरे में रोशनी दिखाकर भटकने से बचाता है। इसी प्रकार आप भी पढ़ने की अपनी रुचि का पूर्ण त्याग न करके इसमें मन लगाए रखें।''सम्राट को बात समझ में आ गई।