दु:खी होने की बजाय दुख का उपचार करें 

लोगों से अपने सुना होगा कि संसार में दु:ख ही दु:ख है। असफलता मिलने पर कई बार आप भी यही सोचते होंगे, जबकि वास्तविकता इससे भिन्न है। संसार में दु:ख इसलिए है क्योंकि संसार में सुख है। अगर सुख नहीं होता तो दु:ख का अस्तित्व भी नहीं होता है। ईश्वर हमें दु:ख की अनुभूति इसलिए करवाता है ताकि हम सुख का एहसास कर पाएं, सुख के महत्व को समझें। श्रीमद्भागवद् में कहा गया है कि हमारा हर कर्म सुख पाने के लिए होता है। इसके बावजूद भी जीवन में कई बार हमें दु:ख और कष्ट की अनुभूति होती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि सुख और दु:ख धूप-छांव एवं दिन और रात की तरह हैं। हम चाहें न चाहें दु:ख को आना है। भगवान राम, श्री कृष्ण, बुध और महावीर को भी दु:ख उठाना पड़ा। लेकिन इन महापुरूषों ने दु:ख को गले लगाकर नहीं रखा बल्कि दु:ख का उपचार किया।    
दु:ख रात के समान है। रात के अंधेरे को दूर करने के लिए सूर्य जिस तरह निरंतर प्रयास करता रहता है और नियत समय पर रात के अंधकार को पराजित करके दिन का प्रकाश ले आता है, इसी तरह हमें भी दु:ख को दूर करने के लिए निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए। दु:ख से दु:खी होकर बैठने से दु:ख और बढ़ता है लेकिन जब हम समाधान के लिए प्रयास करने लगते हैं तो दु:ख का अंधेरा छंटने लगता है।   
दु:ख से हम जितना डरते हैं दु:ख हमें उतना ही डराता है। अगर कोई यह सोचता है कि मृत्यु के बाद दु:ख का अंत हो जाता है तो गरूड़ पुराण उसे जरूर पढ़ना चाहिए। गरूड़ पुराण में मृत्यु के बाद प्राप्त होने वाले कष्टों का वर्णन किया गया है। मृत्यु के बाद जीव को और भी कष्ट उठाना पड़ता है क्योंकि वहां तो शरीर भी नहीं होता है जिससे अपने दु:ख का उपचार किया जा सकता है। सीता का हरण करके रावण ने राम को दु:ख दिया। राम जी ने धैर्य से काम लिया और रावण जो उनके कष्ट का कारण था उसका पता लगाकर उसका अंत किया। पाण्डवों का सारा राज्य कौरवों ने छल से छीन लिया। पाण्डव अगर हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाते और दु:ख का उपचार नहीं करते तो इतिहास में उनकी वीरता और साहस का बखान नहीं मिलता। इसलिए दु:ख से दु:खी होने की बजाय दु:ख का उपचार करना चाहिए।