पद्म पुराण के अनुसार द्वापर युग का प्रारंभ कार्तिक शुक्ल नवमी के दिन हुआ था। इसी दिन भगवान श्रीहरि विष्णु ने कुष्माण्डक या कूष्माण्ड नाम के दैत्य का वध किया था। इसी वजह से Akshaya Navami को कूष्माण्ड नवमी भी कहा जाता है।
कूष्माण्ड दैत्य के शरीर से ही कूष्माण्ड (कद्दू) की बेल उत्पन्न हुई थी, इसलिए कूष्माण्ड नवमी के कद्दू दान करने से अनंत कोटि फल की प्राप्ति होती है। इतना ही नहीं यदि कोई व्यक्ति कद्दू के अंदर स्वर्ण, चांदी आदि रखकर गुप्त दान करता हैं तो उसे मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
कार्तिक शुक्ल नवमी या अक्षय नवमी के दिन आंवले के वृक्ष से अमृत की बूंदें टपकती हैं अत: इस दिन हर मनुष्य को आंवला वृक्ष का पूजन अवश्य करना चाहिए तथा इस दिन कद्दू का दान करना चाहिए।
धार्मिक मान्यता के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि से पूर्णिमा तक आंवले के वृक्ष में भगवान लक्ष्मीनारायण का वास होता है। इस दिन आंवले और पीपल का विवाह कराने से अधिक पुण्य फल की प्राप्ति होती है तथा इसका पुण्य फल करोड़ों जन्मों तक नष्ट नहीं होता।
अक्षय नवमी अक्षय फल देने वाली मानी गई है। तथा राक्षस कूष्मांड का वध इसी दिन होने के कारण इसे kushmaand navami कहते हैं। इस तरह आंवला नवमी को अक्षय नवमी, कूष्मांड नवमी तथा आंवला नवमी के नाम से भी जनमानस में जाना जाता है।