मेरठ
राज्यसभा चुनाव के बहाने सपा ने तीन निशाने साधे हैं। नाराज चल रहे आजम खान को मनाने के लिए उनके वकील रहे कपिल सिब्बल को अपने समर्थन से प्रत्याशी बनाया, सिब्बल जैसे कद्दावर नेता से कांग्रेस को अलविदा कहलवाकर झटका दिया और जयंत चौधरी को उम्मीदवार बनाकर यह संदेश देने की कोशिश की कि हमारा दोस्ताना 2024 तक जारी रहेगा।
पश्चिम उत्तर प्रदेश की राजनीति में वैसे तो विधानसभा चुनाव के दौरान सपा-रालोद गठबंधन का शोर सीटों में नहीं बदला। मेरठ, मुजफ्फरनगर और शामली जिले में ही गठबंधन प्रभावी दिखा। वेस्ट यूपी के 14 जिलों में भाजपा ने 70 सीटों में से 40 सीटों पर जीत दर्ज की। अब सपा ने रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी को राज्यसभा भेजने का फैसला कर 2024 को लेकर पासा फेंका है। हालांकि यह कहना बहुत मुश्किल है कि 2024 तक यह गठबंधन कितना कारगर रहेगा।
कपिल सिब्बल फैक्टर
राजनीतिक जानकारों की मानें तो कपिल सिब्बल के पीछे आजम खान फैक्टर माना जा रहा है। आजम खां की कानूनी लड़ाई कपिल सिब्बल ने लड़ी। उसमें सफलता पाई लेकिन आजम खां से सपा की तल्खी अभी तक बनी है। कपिल को राज्यसभा का उम्मीदवार बनाकर शायद आजम खान से नाराजगी दूर हो जाए। दूसरे, कांग्रेस को आगामी लोकसभा चुनाव से पहले उसको दबाव की भी राजनीति हो सकती है।
अल्पसंख्यक समुदाय को भी साधा
विधानसभा चुनाव में जिस तरह अल्पसंख्यक समुदाय ने एकतरफा सपा का साथ दिया उससे यह तय माना जा रहा था कि राज्यसभा चुनाव में सपा किसी मुस्लिम चेहरे को मौका देंगे। उम्मीद के मुताबिक जावेद खान को सपा ने राज्यसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार बनाया है।
सपा-रालोद के बीच विश्वास की डोर मजबूत हुई
सपा का यह दांव 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में कितना असर दिखाएगा, यह तो आने वाला समय बताएगा, लेकिन इससे दोनों दलों के बीच विश्वास की डोर काफी मजबूत हुई है। सपा की तरफ से जयंत को साझा प्रत्याशी बनाए जाने का ट्वीट सामने आते ही जयंत ने ट्वीट करके अपने भविष्य का सियासी संदेश साफ कर दिया। उन्होंने ट्वीट करके कहा-‘विश्वास के साथ आगे बढ़ेंगे, नौजवान, कमेरा, किसान के सम्मान में।’ इससे पहले रालोद के राष्ट्रीय सचिव अनिल दुबे और टीम आरएलडी के राष्ट्रीय संयोजक अनुपम मिश्र सपा के फैसले पर अपनी खुशी जता चुके थे।