रायपुर
कन्फेडरेशन आॅफ आॅल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने आज केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्री पीयूष गोयल को भेजे गए एक पत्र में ई-कॉमर्स के लिए एक नियामक प्राधिकरण के गठन की अपनी पिछली मांग को दृढ़ता से उठाया है और सुझाव दिया है कि उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय को यह जिम्मेदारी दी जाए। कैट ने कहा है की मार्च, 2021 में जारी उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के अनुसार अप्रैल 2020 से फरवरी 2021 के दौरान, ई-कॉमर्स से संबंधित शिकायतें 22 प्रतिशत हैं, जो बैंकिंग, दूरसंचार, इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों और कंस्यूमर ड्युरेबल्स सहित पांच वर्गों में सबसे थी। कैट ने कहा कि दुनिया भर में ई-कॉमर्स बाजार भारत को छोड़कर एक मजबूत नियामक तंत्र द्वारा शासित है। नियामक प्राधिकरण के बिना ई-कॉमर्स नियम और विनियम ई-कॉमर्स में एक अधूरा सुधार होगा। इसलिए उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए ई-कॉमर्स के लिए एक नियामक प्राधिकरण का गठन किया जाना चाहिए और व्यापारियों के लिए निर्बाध तरीके से अपनाने के लिए ई-कॉमर्स को सुलभ बनाना चाहिए।
कैट ने पिछले दिनों केंद्रीय मंत्री पियूष गोयल से एक मुलाकात में उपभोक्ता कानून के अंतर्गत ई कॉमर्स नियमों पर सभी संबंधित वर्गों के साथ एक बार दोबारा राय शुमारी करने का आग्रह किया था जिसे स्वीकार करते हुए गोयल ने उपभोक्ता मंत्रालय को सलाह का एक और दौर पूरा करने का निर्देश दिया जिसको लेकर मंत्रालय ने ई-कॉमर्स नियमों पर हितधारकों के साथ परामर्श का एक और दौर शुरू कर दिया है। कैट ने कहा कि इस तरह की कवायद निश्चित रूप से भारत में ई-बाजारों के मुक्त, निष्पक्ष और पारदर्शी संचालन को सुनिश्चित करने के लिए मजबूत नियमों का मसौदा तैयार करने का एक और मौका देगी ताकि उपभोक्ताओं के सर्वोत्तम उत्पाद प्राप्त करने के अधिकारों की रक्षा की जा सके। कैट के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अमर पारवानी और प्रदेश अध्यक्ष जितेन्द्र दोशी ने कहा कि पीयूष गोयल, श्रीमती स्मृति ईरानी और हरदीप पुरी के नेतृत्व वाले मंत्रालय ही नियमित आधार पर सभी संबंधित वर्गों के साथ परामर्श करते हैं जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सहभागी शासन की अवधारणा को पूरा करते हैं। हितधारकों के परामर्श के सिद्धांत का पालन करने के लिए व्यापारिक समुदाय अभी तक अन्य संबंधित मंत्रालयों की प्रतीक्षा कर रहा है।
श्री पारवानी और दोशी ने कहा कि भारत में ई-कॉमर्स व्यापार तेजी से बढ़ रहा है और 2024 तक 100 अरब अमेरिकी डॉलर और 2026 तक 200 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। ई-कॉमर्स व्यापार मुख्य रूप से किराना, एफएमसीजी सामान, परिधान, उपभोक्ता सामान और इलेक्ट्रॉनिक्स, लगातार बढ़ते मोबाइल फोन और इंटरनेट की पहुंच, घडि?ां, उपहार आइटम, खिलौने, होम डेकोर, कंप्यूटर आदि अन्य अनेक वर्टिकल में तेजी से बड़ रहा हैं और हजारों अन्य वस्तुओं की एक बड़ी गुंजाइश ई कॉमर्स में बाकी है। लोगों को खाद्य पदार्थों की डिलीवरी, टिकटिंग, कैब सेवाओं, आॅनलाइन मनोरंजन आदि के मामले में बड़ी संख्या में सेवाएं ई-कॉमर्स के जरिये प्रदान की जा रही हैं। कोविड-19 महामारी के काल में ई-कॉमर्स तेजी से बढ़ा है और देश के नागरिकों को आवश्यक तथा अन्य चीजें उपलब्ध कराने में अग्रणी हो रहा है।
श्री पारवानी एवं दोशी ने कहा की उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2020-फरवरी 21 की अवधि के दौरान, उपभोक्ताओं ने ई-कॉमर्स लेनदेन से संबंधित 1,88,262 शिकायतें दर्ज की वहीं अप्रैल 2017 और फरवरी 2021 के बीच ई-कॉमर्स से संबंधित 5,23 823 शिकायतें मंत्रालय को मिलीं। ये आंकड़े चिंताजनक हैं क्योंकि भारत में ई-कॉमर्स व्यवसाय अपने शुरूआती चरण में है और इतनी बड़ी संख्या में शिकायतें भारतीय ई-कॉमर्स परिदृश्य के लचर पचर होने का साक्षात सबूत हैं। पारवानी और दोशी ने आगे कहा कि देश में भी अर्थव्यवस्था के अन्य सभी क्षेत्रों जैसे दूरसंचार, बैंकिंग, शेयर बाजार, बीमा आदि में एक मजबूत निगरानी तंत्र है जबकि ई-कॉमर्स क्षेत्र में कोई नियामक प्राधिकरण नहीं है। विक्रेता या पोर्टल की कोई जवाबदेही नहीं है, जिसके कारण कई हालिया उदाहरण हैं जहां गांजा, जहर, बम बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले कच्चे माल को ई-कॉमर्स पोर्टल के माध्यम से प्राप्त किया गया और इन सभी मामलों को विभिन्न सरकारी एजेंसियों ने रंगे हाथों पकड़ा है। इसी प्रकार ई-कॉमर्स पोर्टलों पर कई अन्य गैरकानूनी गतिविधियां भी चलाई जा रहीं हो तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।
दोनों व्यापारी नेताओं ने कहा कि यह सामान्य ज्ञान की बात है कि नियामक ढांचे के अभाव में भारत में तेजी से बढ़ रहा ई-कॉमर्स व्यवसाय विदेशी कंपनियों के हाथों बंधक बन गया है, जो उपभोक्ताओं और व्यापारियों दोनों की बाहों को मरोड़ते हुए लगातार नियमों और विनियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। इन सभी बातों को देखते हुए कैट ने गोयल से आग्रह किया है की तुरंत उपभोक्ता मंत्रालय को दूरसंचार नियामक प्राधिकरण की तर्ज पर एक रेगुलेटरी अथॉरिटी के रूप में भी काम करने का भी अधिकार दिया जाए।