रायपुर
कन्फेडरेशन आॅफ आॅल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने केंद्रीय वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण को भेजे एक पत्र में विभिन्न बैंकों के खिलाफ अमेजॅन और फ्लिपकार्ट सहित कई विदेशी वित्त पोषित ई-कॉमर्स कंपनियों के साथ मिलकर एक अपवित्र कार्टेल बनाने का गंभीर एवं बड़ा आरोप लगाया है जिससे देश भर के व्यापारियों का व्यापार बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।
कैट ने कहा है कि देश के विभिन्न सरकारी एवं प्राइवेट बैंक अमेज? एवं फ्लिपकार्ट सहित अन्य अनेक ई-कॉमर्स पोर्टल पर सामान खरीदने पर भुगतान हेतु क्रेडिट और डेबिट कार्ड का उपयोग करते हैं को बैंक 10 प्रतिशत कैश बैक तथा अन्य सुविधाएँ देता हैं जो आॅफलाइन बाजार से माल खरीदने पर ग्राहकों को नहीं मिलता जिससे असमान स्तर का व्यापारिक वातावरण का निर्माण होता है और यह बैंकों और ई-कॉमर्स कंपनियों का मिला जुला खेल है। कैट ने इसे बैंकों की एक अनुचित प्रथा के कारण गंभीर बैंकिंग अनियमितताएं और समानता के अधिकार, एफडीआई नीति और प्रतिस्पर्धा कानून का घोर उल्लंघन करार दिया। कैट ने देश के आॅफलाइन व्यापार को बर्बाद कर रहे इस सबसे गंभीर मामले की तत्काल समयबद्ध जांच की मांग की है।
कैट के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अमर पारवानी एवं प्रदेश अध्यक्ष जितेन्द्र दोशी ने इसे अमेजॅन और फ्लिपकार्ट जैसे ई-कॉमर्स दिग्गजों के साथ बैंकों की मिलीभगत को देश के बैंकिंग सिस्टम की एक बड़ी चूक बताते हुए कहा की इस षड्यंत्र में स्टेट बैंक आॅफ इंडिया, एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, सिटी बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक, एचएसबीसी, बैंक आॅफ बड़ौदा, आरबीएल बैंक, एक्सिस बैंक आदि खुले रूप से शामिल हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह के अनुचित व्यवहार से लोगों को विशेष रूप से ई-कॉमर्स पोर्टल से सामान खरीदने के लिए खरीदारी का लाभ मिलता है लेकिन उन लोगों को नहीं जो आॅफलाइन दुकानों से खरीदारी करते हैं। इस प्रकार देश के आॅनलाइन और आॅफलाइन बाजारों के बीच असमानता का परिदृश्य पैदा करना घोर नाजायज है। पारवानी एवं दोशी ने सवाल करते हुए कहा की आखिर बैंक इस तरह का भेदभाव कैसे कर सकते हैं ?
श्री पारवानी और दोशी ने कहा कि यह सबसे आश्चर्य की बात है कि ये बैंक जो दावा करते हैं कि वे ई-कॉमर्स पोर्टल पर भुगतान लेनदेन से लगभग 1 या 1.5 प्रतिशत कमाते हैं वो उपभोक्ताओं को 10 प्रतिशत कैशबैक और अन्य लाभ कैसे दे सकते हैं? उन्होंने सरकार से मांग की है की सरकार इस बात की जांच करें कि क्या बैंक अपने फंड से कैश बैक प्रदान कर रहे हैं या उन्हें इन कैश बैक और अन्य लाभों को प्रदान करने के लिए किसी के द्वारा धन दिया जाता है। सवाल यह है कि झ्क्या बैंकिंग नियमों के तहत बैंकों को अपने स्वयं के फंड से ऐसा कैशबैक प्रदान करने का अधिकार है जो नुकसान का प्रस्ताव है या क्या बैंक किसी बाहरी व्यक्ति से इस तरह के नुकसान की भरपाई के लिए धन प्राप्त करने के हकदार हैं। इन सवालों का स्पष्ट जवाब बैंकों को देना होगा।
कैट ने वित्त मंत्री के अलावा इसी तरह का पत्र केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल, वित्त राज्य मंत्री भागवत कराड, शक्तिकांता दास, गवर्नर, भारतीय रिजर्व बैंक, अशोक गुप्ता, अध्यक्ष, भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग, रोहित सिंह, सचिव, उपभोक्ता मामलों, अनुराग जैन, सचिव, डीपीआईआईटी, राजस्व और बैंकिंग सचिव आदि को भी भेजे हैं। कैट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि यदि सरकार द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की जाती है, तो कैट के पास न्याय की मांग के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा।
श्री पारवानी और दोशी ने कहा कि बैंकों का ऐसा कार्य स्पष्ट रूप से व्यापारियों के दो समूहों के बीच भेदभाव करता है और इस प्रकार भारत के संविधान की प्रस्तावना का उल्लंघन करता है जो समानता की गारंटी देता है। बैंकों का यह कृत्य उपभोक्ताओं को आॅफलाइन दुकानों से सामान खरीदने के लिए प्रतिबंधित करता है जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 और अनुच्छेद 301 का भी उल्लंघन करता है। भारत का संविधान जो देश में व्यापार और वाणिज्य की स्वतंत्रता की गारंटी देता है का भी यह घोर उल्लंघन है। प्रथम दृष्टया, यह देश की बैंकिंग प्रणाली में एक घोर अनियमितता है जिस पर सरकार को तत्काल ध्यान देने एवं जांच हेतु आवश्यक कदम उठाने चाहिये।