बिलासपुर
छत्तीसगढ उच्च न्यायालय ने मैटस और आईएसबीएम निजी विश्वविद्यालय द्वारा जारी की गई फर्जी डिग्रियों पर राज्य शासन और दोनों विश्वविद्यालय प्रबंधन सहित 6 पक्षकारों को नोटिस जारी करते हुए जवाब देने को कहा। न्यायालय ने पत्रकार व आरटीआई कार्यकर्ता द्वारा दायर की गई जनहित याचिका पर सुनवाई करते यह नोटिस जारी की।
उल्लेखनीय है कि रायपुर निवासी आरटीआई कार्यकर्ता संजय अग्रवाल और पत्रकार भूपेंद्र सिंह पटेल ने अपने वकील विवेक शर्मा और आयुषी अग्रवाल के जरिए उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की है। इसमें प्रदेश में उच्च शिक्षा के नाम पर निजी विश्वविद्यालय द्वारा की जा रही गड़बडि?ों को उजागर किया गया है। याचिका में मैटस और आईएसबीएम यूनिवर्सिटीज द्बारा बांटी गई फर्जी डिग्रियों की कॉपियां सलग्न की गई हैं, जिसे सूचना के अधिकार के तहत निकलवाई गई हैं। इसके अलावा दोनों यूनिवर्सिटीज से जारी डुब्लीकेट मार्कशीट की कॉपी भी लगाई गई है। याचिका में बताया गया है कि दोनों यूनिवर्सिटीज ने शासन से हर साल जितनी मार्कशीट की डिमांड की थी, उससे कई गुना अधिक मार्कशीट बांटी गई हैं। इससे इन यूनिवर्सिटीज से जारी सभी मार्कशीट संदेह के दायरे में आ गई हैं। याचिकाकतार्ओं ने हाईकोर्ट को बताया है कि ये दोनों संस्थान लंबे समय से उन लोगों को डिग्रियां बांट रहे हैं, जिन्होंने कभी भी इन संस्थानों में प्रवेश नहीं लिया है। सबूत के तौर पर मनेंद्रगढ़ विधायक डॉ. विनय जायसवाल के नाम से मैटस विश्वविद्यालय द्बारा जारी डीसीए का प्रमाण पत्र पेश किया गया है। याचिकाकतार्ओं के अनुसार एक समय उनके पास विधायक के नाम जारी डीसीए सर्टिफिकेट की फोटोकापी ही थी। इसके बाद मैटस विश्वविद्यालय में इस सर्टिफिकेट की डुब्लीकेट कॉपी जारी करने का आवेदन लगाया। कुछ दिनों के बाद मैटस विश्वविद्यालय ने विधिवत डुब्लीकेट प्रमाण पत्र जारी कर दिया। यह मामला जब मीडिया में आया तो विधायक डॉ.जायसवाल ने खुद ही बयान दिया था कि उन्होंने कभी भी मैटस विश्वविद्यालय में किसी भी कोर्स में प्रवेश नहीं लिया है। इससे साबित होता है कि उनके नाम पर फर्जी डिग्री जारी की गई है।
इसी तरह से याचिका में आईएसबीएम विश्वविद्यालय द्बारा बलराम साहू पिता चेतन साहू के नाम से जारी डीसीए का प्रमाण पत्र सामने लाया है। याचिकाकतार्ओं ने बताया है कि बलराम साहू 29 जनवरी 2004 से सेंट्रल जेल रायपुर में सजा काट रहा है। उसे जिला एवं सत्र न्यायालय, राजनांदगांव ने सजा सुनाई है। वह जेल में रहते हुए कैसे यूनिवर्सिटी में प्रवेश ले सकता है। कैदी बलराम साहू के नाम से जारी प्रमाण पत्र को जब सत्यापन के लिए आईएसबीएम विश्वविद्यालय भेजा गया तो ई-मेल द्बारा जानकारी दी गई कि यह प्रमाण पत्र उनके विश्वविद्यालय से ही जारी हुआ है।
याचिकाकतार्ओं ने हाईकोर्ट से पूरे मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो से कराने की मांग की है, वह भी हाईकोर्ट की निगरानी में। इस मामले में याचिकाकतार्ओं ने उच्च शिक्षा विभाग, भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद, छत्तीसगढ़ निजी विश्वविद्यालय नियामक आयोग, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, मैटस और आईएसबीएम यूनिवर्सिटी को पक्षकार बनाया गया है। मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट में सभी पक्षों को नोटिस जारी करते हुए जवाब प्रस्तुत करने के लिए कहा है।