
रायपुर
मध्यप्रदेश राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000 की धारा 49(6) को लेकर विगत 21 वर्षो से छत्तीसगढ़ को मध्यप्रदेश सरकार लगातार लूट रही है, राज्य विभाजन के बाद से अब तक छत्तीसगढ़ सरकार अरबों रुपये नुकसान उठा चुकी है । यह संज्ञान में आने के बाद अब व्यूरोक्रेटस बहानेबाजी में सरकार को उलझा कर इस नियम की गलत व्याख्या कर मामले को लटकाए रखना चाहती है।
इस मामले पर छत्तीसगढ़ राज्य संयुक्त पेन्शनर फेडरेशन के प्रदेश अध्यक्ष वीरेन्द्र नामदेव ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को ट्वीट करके व्यूरोक्रेट की बाजीगरी से बचने की सलाह देते हुए मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्य के बीच विगत 21 वर्षो से मध्यप्रदेश राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000 की धारा 49 (6) के नाम पर लंबित आर्थिक दायित्वों की बटवारे को खुद समीक्षा कर प्रदेश के हित मे तत्काल निर्णय लेने और छत्तीसगढ़ राज्य की खजाने की रक्षा करने जरूरी कार्यवाही करने का आग्रह किया है। उन्होंने बताया है कि छत्तीसगढ़ सरकार धारा 49 को मजबूरी मानकर पिछले 21 वर्षों से राज्य के पेंशनरों के आर्थिक भुगतानों में मध्यप्रदेश सरकार से सहमति लेते आ रही है और दोनों राज्य आपसी सहमति होने पर ही पेंशनरों को महंगाई राहत आदि का भुगतान 74:26 अनुपात करते आ रही है अर्थात मध्यप्रदेश के लगभग 5 लाख तथा छत्तीसगढ़ के 1 लाख पेन्शनर इसतरह कुल 6 लाख पेंशनर को 100 रुपये मिलने पर मध्यप्रदेश 74 रुपये और छत्तीसगढ़ 26 रुपये धारा 49(6) में दिये प्रावधानों के तहत भुगतान करने बाध्य हैं। इस बाध्यता में छत्तीसगढ़ सरकार को 100 रुपये में से 6 लाख पेंशनर्स को 26 रुपये देने से 56 लाख का नुकसान होगा।
नामदेव के इस दावे पर की धारा49 में आपसी सहमति लेने का कोई उल्लेख नही हैं फिर इस धारा का ही उल्लेख कर क्यों सहमति ली जाती हैं, इस पर वित्त सचिव अमेर मंगई डी ने चर्चा स्वीकार किया कि यह सही है कि धारा 49 में कोई उल्लेख नहीं है परन्तु कुछ संवैधानिक बाध्यता चलते सहमति लेना जरूरी मजबूरी है।