बीच सफर में साथी बदल नया ट्रेंड ला रहे नीतीश? जानिए अब तक कितनी बार हुआ ऐसा

 नई दिल्ली
 
पिछले कुछ समय में भारतीय राजनीति में एक नया ट्रेंड देखने को मिल रहा है। बीच सफर में सियासत का साथी बदल लेना। बिहार में नीतीश कुमार ने एक बार फिर से इसे अंजाम दिया है। एनडीए का साथ छोड़कर वह महागठबंधन के पास वापस लौट गए हैं। लगातार गठबंधन बदलने की अपनी इस आदत के चलते नीतीश कुमार को ‘पलटूराम’ का उपनाम भी मिल चुका है। हालांकि बिहार तो इसका तात्कालिक उदाहरण है। हाल-फिलहाल कई अन्य राज्यों में भी ऐस हो चुका है। इसके साथ ही ऐसा लगने लगा है कि केवल चुनाव जीतना ही पांच साल के लिए स्थायी सरकार की गारंटी नहीं है।  

बिहार में दोहराया जा रहा इतिहास
पिछले पांच साल में बिहार में ऐसा दूसरी बार हुआ है। खास बात यह है कि दोनों ही बार यहां पर मुख्य भूमिका में नीतीश कुमार ही रहे हैं। साल 2013 में नीतीश ने भाजपा को छोड़कर आरजेडी और कांग्रेस का हाथ थामा था। इस गठबंधन ने साल 2015 में विधानसभा चुनाव जीता था। इसके बाद 2017 में नीतीश ने आरजेडी और कांग्रेस का साथ छोड़ दिया और फिर से भाजपा के पास वापस लौट गए। उन्होंने सरकार बनाई और 2020 के विधानसभा चुनाव भी उन्होंने भगवा दल के साथ लड़ा। हालांकि इस चुनाव में उनका जनाधार काफी कम रहा। अब एक बार फिर से उन्होंने भाजपा का साथ छोड़कर सात अन्य दलों के साथ गठबंधन कर लिया है।
 
महाराष्ट्र का हाल
महाराष्ट्र में साल 2019 में भाजपा और शिवसेना के गठबंधन ने चुनाव जीता था। लेकिन सरकार बनाने के वक्त मुख्यमंत्री के फॉर्मूले को लेकर बात बिगड़ गई। इसके बाद शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर महाविकास अघाड़ी गठबंधन बनाया था। हालांकि ढाई साल के बाद ही महाविकास अघाड़ी गठबंधन तब खतरे में आ गई जब शिवसेना में बगावत हो गई। शिवसेना के विधायक और उद्धव सरकार में मंत्री रहे एकनाथ शिंदे ने अपने साथ कई विधायकों को लेकर यह बगावत की थी। इसके बाद भाजपा के साथ मिलकर शिवसेना के बागी गुट ने नई सरकार बना ली।

कर्नाटक में गई थी जेडीएस-कांग्रेस सरकार
कुछ ऐसा ही हाल कर्नाटक में भी हुआ था। यहां पर जनता दल-एस और कांग्रेस की सरकार थी। मुख्यमंत्री थे एचडी कुमारस्वामी। लेकिन 2019 में उनकी सरकार तब चली गई जब सत्ता पक्ष के 17 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया। बाद में इन विधायकों ने भाजपा से हाथ मिला लिया। इसके बाद येदियुरप्पा की राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर वापसी हुई थी। इससे पहले 2018 के विधानसभा चुनावों में सबसे बड़ा दल होने के बावजूद भाजपा को सत्ता से दूर रहना पड़ा था क्योंकि कांग्रेस और जेडीएस ने हाथ मिला लिया था।

मध्य प्रदेश में कमलनाथ ने धोया था सत्ता से हाथ
मध्य प्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस ने सत्ता हासिल की थी। हालांकि कुछ ही दिनों के बाद उन्हें तब सत्ता से हाथ धोना पड़ा था जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कुछ अन्य विधायकों के साथ पार्टी छोड़कर भाजपा से हाथ मिला लिया। इसके बाद शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में एक बार फिर से मध्य प्रदेश में भाजपा सरकार की वापसी हुई थी। बाद में सिंधिया ने अपने समर्थकों के साथ भाजपा ज्वॉइन कर ली थी। फिलहाल सिंधिया केंद्र में मंत्री हैं।