टी.बी. मरीजों की पहचान के लिए डोर-टू-डोर कैंपेन

रायपुर
वर्ष 2025 तक प्रदेश को टी.बी. (क्षय रोग) मुक्त करने के लिए राज्य शासन के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा अनेक कदम उठाए जा रहे हैं। टी.बी. एक संक्रामक बीमारी है, जो शरीर के हर अंग को प्रभावित करती है। खासतौर पर यह फेफड़ों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है। टी.बी. माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस नामक बैक्टीरिया से फैलता है। यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलने वाली बीमारी है। यह उन व्यक्तियों को जल्दी अपनी चपेट में ले लेता है जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है। समय पर इसके लक्षणों की पहचान और उपचार कराकर इस रोग से बचा जा सकता है।

क्षय नियंत्रण कार्यक्रम के राज्य नोडल अधिकारी डॉ. वाई.के. शर्मा ने बताया की प्रदेश में टी.बी. रोगियों की पहचान के लिए व्यापक डोर-टू-डोर कैंपेन चलाया जा रहा है। इसके तहत दो करोड़ 63 लाख से अधिक लोगों की स्क्रीनिंग की गई है, जिनमें से 2300 लोग इससे संक्रमित पाए गए हैं। उन्होंने बताया कि रोगियों को निर्धारित श्रेणी के अनुसार ट्रीटमेंट सपोर्टर की देखरेख में दवाई खिलाई जाती है। टी.बी. का इलाज कम से कम छह महीने का होता है। कुछ विशेष अवस्थाओं में डॉक्टर की सलाह पर टी.बी. का इलाज छह महीने से अधिक तक चलाया जा सकता है। टी.बी. के उपचार के दौरान कई मरीज कुछ स्वस्थ होने के बाद दवाई का सेवन बंद कर देते हैं, जिससे यह रोग और विकराल रूप ले सकता है।

प्रदेश के सभी शासकीय स्वास्थ्य केंद्रों में टी.बी. के इलाज के लिए अच्छी गुणवत्ता की दवाईयाँ उपलब्ध है। सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और जिला अस्पतालों में इसकी नि:शुल्क जांच, इलाज और दवाई उपलब्ध है। प्रदेश में टी.बी. के सभी पंजीकृत मरीजों को क्षय पोषण योजना के तहत इलाज के दौरान पोषण आहार के लिए प्रति माह 500 रूपए की राशि दी जाती है। डॉट सेंटर्स या डॉट प्रोवाइडर्स के माध्यम से टी.बी. से पीड़ित मरीजों को घर के पास या घर पर ही दवाई उपलब्ध कराई जा रही है।