कानपुर
जब टमटम ने कानपुर की ट्रैफिक व्यवस्था बिगाड़ी तो अभी से 114 साल पहले ट्राम आई। जब ऑटो और ई-रिक्शा मुसीबत बन गए तो अब मेट्रो आई है। ट्राम भी कानपुर वासियों के दिल को छू गई थी और मेट्रो भी अभी से लोगों के दिल में समाने लगी है। यह तय है कि आईआईटी से मोतीझील के बीच यातायात का दबाव कम होगा। लोग सुगम सफर का आनंद ले सकेंगे।
जानिए ट्राम का इतिहास और रूट
ब्रिटिश शासनकाल में वर्ष 1907 में पहली बार ट्राम चली थी। पुराना रेलवे स्टेशन से सरसैया घाट तक डबल ट्रैक बनाया गया था। इंटीग्रेटेड ट्रांसपोर्ट सिस्टम की हकीकत में शुरुआत ट्राम से ही हुई थी। यह पुराना रेलवे स्टेशन से घंटाघर, हालसी रोड, बादशाहीनाका, नई सड़क, अस्पताल रोड, कोतवाली और बड़ा चौराहा होते हुए सरसैया घाट तक जाती थी। तब भी लोगों ने ट्राम से सफर करके खूब आनंद उठाया था।
आज से मेट्रो बदलेगी लाइफ स्टाइल
मेट्रो ने दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और लखनऊ की लाइफ स्टाइल बदली और कानपुर की भी बदल जाएगी। जो लोग जाम की वजह से आईआईटी से मोतीझील तक आने में सोचा करते थे वह अब आराम से मेट्रो से पहुंच जाएंगे। न धूल धूसरित होने का संकट होगा और न ही कानों में गूंजेगी गाड़ियों की पें-पें।