
भागलपुर
कोसी, सीमांचल और पूर्वी बिहार के निबंधन कार्यालयों में डेढ़ लाख से अधिक जमीन के ऐसे दस्तावेज या केवाला (सेल डीड) हैं, जिनका अभी तक कोई दावेदार सामने नहीं आया है। इनमें से अधिकतर दस्तावेज वर्ष 2014 से 2019 के बीच के हैं। हालांकि, कई दस्तावेज 20 साल से अधिक पुराने भी है। आशंका यह भी है कि इन दस्तावेजों में कई के तार बेनामी संपत्ति से भी जुड़ सकते हैं, जो जांच का विषय है। कई कार्यालयों में अब ये सड़ने के कगार पर हैं। हालांकि, विभाग ऐसे केवालदारों को दस्तावेज ले जाने के लिए नोटिस भी कर रहा है। विभाग ने ऐसे दस्तावेजों की सूची बनाकर नोटिस बोर्ड पर चस्पाया है। नहीं ले जाने पर विभाग उसे नष्ट कर देगा।
मधेपुरा में संख्या बहुत ही कम
सुपौल जिले में वर्ष 1993 से 2018 के बीच चारों निबंधन कार्यालयों में 31729 दस्तावेज के दावेदार नहीं मिल रहे हैं। सदर अंचल में 14267, गणपतगंज में 8747 , त्रिवेणीगंज में 8315 और निर्मली अंचल के 400 के दस्तावेज शामिल हैं। वहीं मधेपुरा में 13 दस्तावेजों का कोई दावेदार नहीं है। सहरसा में 1 जनवरी 2014 से 31 दिसंबर 2019 तक बिना दावेदार वाले करीब 237 दस्तावेज हैं।
अररिया में सड़ने की स्थिति में
कटिहार जिले में वर्ष 1990 से लेकर वर्ष 2000 तक 82603 दस्तावेज के दावेदार नहीं रहने के कारण निबंधन विभाग ने विनष्टीकरण का आदेश दिया है। अवर निबंधक जय कुमार ने बताया कि यह ऐसे दस्तावेज हैं जिनका कई बार हस्तांतरण हो गया है। लोग नकल लेकर दूसरे को रजिस्ट्री कर चुके हैं। वर्तमान में 1,000 से अधिक फाइन के डर से नहीं ले जा रहे हैं। विभाग द्वारा विनिष्टीकरण आदेश के बाद अब तक डेढ़ दर्जन से अधिक दस्तावेज लोगों ने प्राप्त किया है। शीघ्र ही बिना दावेदार के दस्तावेज को भी नष्ट कर दिया जाएगा। अररिया में ऐसे दस्तावेजों की संख्या 42 हजार के करीब है। अब यह सड़ने लगा है। पूर्णिया में ऐसे दस्तावेजों की संख्या 164 है।
विलंब पर अतिरिक्त शुल्क के डर से भी दस्तावेज छोड़ देते हैं लोग
बांका जिले में 2008 से 2018 तक 892 दस्तावेज के दावेदार नहीं मिले हैं। इसकी सूची बना ली गयी है। खगड़िया जिले में भी 315 केवाला के दावेदार सामने नहीं आए हैं। जिसमें खगड़िया रजिस्ट्री ऑफिस के 60 व गोगरी रजिस्ट्री ऑफिस के 255 केवलदारों को नोटिस भी भेजा गया है। खगड़िया रजिस्ट्रार डॉ यशपाल ने बताया कि नोटिस के बाद भी नहीं ले जाने पर विनष्टिकरण की प्रक्रिया अपनायी जाएगी। हर दो साल पर विनष्टिकरण की प्रक्रिया अपनायी जाती है। जमुई में ऐसे दस्तावेज की संख्या करीब 465 है। लखीसराय में भी 8 अक्टूबर 2014 से 29 अगस्त 2019 तक 78 भूमि के दस्तावेज ऐसे है जिसका कोई दावेदार सामने नहीं आया है।
लखीसराय के जिला निबंधन पदाधिकारी विनय कुमार प्रसाद बताते हैं कि रजिस्ट्री के दौरान रसीद ले कर लोग चले जाते हैं। ऑरिजिनल दस्तावेज लेने को लेकर कम लोगों में ही रुचि रहती है। या रसीद उनसे खो गया या किसी तरह नष्ट हो गया तो ऐसे लोग ध्यान नहीं देते हैं। केवाला लेने में विलंब होने पर इस पर अतिरिक्त शुल्क भी देय है। इस कारण भी केवाला लोग छोड़ देते हैं। ऐसे में 2 वर्ष के इंतजार के उपरांत इसे विधि सम्मत प्रक्रिया अपनाकर नष्ट कर दी जाती है। मुंगेर में अभी विभाग की ओर से सूची तैयार ही की जा रही है। जमुई के अवर निबंधक अनवार आलम बताते हैं निबंधन के पश्चात तीन वर्षों तक दस्तावेज नहीं लेने की स्थिति में उसके विनष्टिकरण की प्रक्रिया पूरी की जाती है। इसके तहत सामान्य सूचना प्रकाशन के पश्चात वैसे दस्तावेजों को विनष्ट कर दिया जाता है, जिसके कोई दावेदार सामने नहीं आते।