लखनऊ।
समाजवादी पार्टी की स्थापना (अक्टूबर 1982) से लेकर जनवरी 2017 तक पार्टी मुलायम सिंह यादव की थी। उन्होंने इसे बनाया और अपने परिवार और पारिवारिक संबंधों को समाजवादी पार्टी का मूल बनाया। मुलायम सिंह यादव ने 2017 में विधानसभा चुनावों से पहले अखिलेश यादव के विद्रोह के सामने हार मान ली। इसके बाद समाजवादी पार्टी औपचारिक रूप से एक वंशवादी पार्टी बन गई।
हालांकि, 2022 के उत्तर प्रदेश के चुनाव में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव अपनी आगामी सियासी सफर के लिए वंशवाद को खारिज करने की कोशिश कर रहे हैं। अखिलेश यादव जिस तरह से प्रचार कर रहे हैं और जिस तरह से वह परिवार को तस्वीर से दूर रख रहे हैं, यह उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के लिए अद्वितीय है। रिपोर्ट्स में कहा गया है कि अखिलेश यादव ने परिवार के नेताओं को स्पष्ट कर दिया है कि उन्हें यूपी विधानसभा चुनाव में पार्टी का टिकट नहीं मिलेगा।
राजवंश को खारिज कर रहे अखिलेश
मुलायम सिंह यादव की पत्नी साधना गुप्ता के बहनोई प्रमोद गुप्ता ने पार्टी छोड़ दी। इसके बाद बहू अपर्णा यादव भी भाजपा में शामिल हो गईं। प्रमोद गुप्ता पूर्व विधायक हैं। अपर्णा यादव ने 2017 का विधानसभा चुनाव सपा के टिकट पर भाजपा की रीता बहुगुणा जोशी के खिलाफ चुनाव मैदन में थी। अपर्णा के जाने के बाद अखिलेश यादव ने कहा कि मुलायम सिंह यादव ने उन्हें मनाने की कोशिश की। भाजपा पर तंज कसते हुए उन्होंने कहा कि सत्ताधारी पार्टी उन (रिश्तेदारों) को टिकट दे रही है जिन्हें वह उत्तर प्रदेश के चुनावी मैदान में नहीं उतार पाए।
लापता यादव वंश
अखिलेश यादव के चुनाव प्रचार में मुलायम सिंह यादव खराब स्वास्थ्य के चलते नदारद हैं। हालांकि, यादव परिवार का कोई अन्य सदस्य भी चुनाव प्रचार के दौरान नहीं दिखता है। अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव, चाचा राम गोपाल यादव और शिवपाल यादव, चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव और अक्षय यादव और उनके दिवंगत चाचा रतन सिंह यादव के पोते तेज प्रताप सिंह यादव जैसे नेता फिलहाल सीन से गायब हैं। वे पिछले चुनावों में चुनाव प्रचार के दौरान अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव के साथ मंच साझा करते थे।
2017 में साथ-साथ दिखीं डिंपल
कन्नौज से पूर्व लोकसभा सांसद डिंपल यादव 2017 के चुनावी अभियान में अखिलेश यादव की लगातार साथी हुआ करती थीं। इसी चुनाव में अखिलेश यादव ने अपने पिता को समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष पद से हटा दिया था और शिवपाल यादव को पार्टी से इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया था। शिवपाल यादव ने अपनी खुद की पार्टी प्रगतिशील समाज पार्टी बनाई।