13 जून को बगावती चपातियां सीहोर आईं थीं –
भारत में बाहरी सत्ता के विरुद्ध मई 1857 में जो सशस्त्र बगावत हुई थी उसने उत्तर भारत को भी चपेट ले लिया था। बगावत की चिंगारी मालवा व ग्वालियर में पहुंची थी। मालवा क्षेत्र में संगठित बगावत शुरू होने के लगभग 6 माह पूर्व से ही सीहोर भोपाल रियासत में बगावत की तैयारी होने लगी थी। 13 जून 1857 के आसपास सीहोर के कुछ देहाती क्षेत्रों में भी बगावती चपातियां पहुंची थीं। इस क्षेत्र में ये चपातियां एक गांव से दूसरे गांव भेजी जाती थी, जो इस बात की परिचायक समझी जाती थीं कि इन देहातों के रहने वाले बगावत से सहमत हैं। सीहोर के देहाती क्षेत्रों में इन चपातियों के पहुंचने से ये नतीजा निकलता है कि यहां रहने वाले बहुत पहले से अंग्रेजी राज को समाप्त करने की तैयारी में जुटे थे। (स्त्रोत हयाते सिकन्दरी नवाब सुल्तान जहां बेगम)
सीहोर में बंटे बगावती पर्चे-
1 मई 1857 को भोपाल में एक बागय़िाना पोस्टर की पाँच सौ कापियाँ भोपाल सैना में वितरित की गईं थीं। इस पोस्टर में अन्य बातों के साथ लिखा था कि बरतानवी हुकूमत हिन्दुस्तानियों के धार्मिक मामलों में भी मदाखलत कर रही है इसलिये इस सरकार को खत्म कर देना चाहिये। इसे पढकऱ फौजियों में बांगियाना जज्बात पैदा हो गये और कुछ सिपाहियों ने तय कर लिया था कि देहली जाकर गदर आंदोलन में साथ देंगे। भोपाल सैना का एक व्यक्ति श्मामा कहार खाँ्य रियासत भोपाल के पहले आदमी थे जिन्होने अपना वेतन और नौकरी दोनो को छोड़कर देहली जाने का फैसला कर लिया। उनकी देखा-देखी सिपाहियों ने वेतन लेने से इंकार कर दिया। इस पर सिकन्दर बेगम भोपाल ने मामा कहार खाँ को मनाने के प्रयास किये लेकिन वह राजी नहीं हुए। इस पर उस पोस्टर का एक जबावी पोस्टर 4 जून 1857 को सिकन्दर प्रेस में छपवाया जाकर सिपाहियों में वितरित किया गया। बगावती पोस्टर बाहर से छपकर आये थे जिन्हे यहाँ शिवलाल सूबेदार ने बंटवाये थे।
जब सुअर-गाय की चर्बी के कारतूस नष्ट करना पड़े-
महावीर कोठ और रमजूलाल को बाहर निकालने से डर गई बेगम सिकंदर….
सीहोर के बागियों से प्रभावित होकर भोपाल रियासत के फौजी भी उनके साथ होने लगे थे। सिकन्दर बेगम ने इनकी रोकथाम के लिये कड़े निर्देश जारी किये थे। अतरू बख्शी मुरव्वत मोहम्मद खाँ ने सीहोर में एक आर्मी कमेटी स्थापित की थी जिसमें उच्च अधिकारी नियुक्त किये गये। फौज में सभी सिपाहियों को निर्देशित किया गया था कि वह प्रतिदिन इस कमेटी के समक्ष उपस्थित रहें। यह भी आदेश जारी किया गया कि जिन फौजियों ने सैनिक अनुशासन का उल्लंघन किया उनके प्रकरणों की जांच भी इसी कमेटी द्वारा की जायेगी। इस कमेटी ने सिपाहियों द्वारा आदेशों का पालन न करने, लापरवाही और देर से उपस्थिति आदि के कई प्रकरण पंजीबद्ध किये और अपने सिपाहियों के विरुद्ध निलंबन, निष्कासन और जबरी त्यागपत्र के आदेश जारी कर दिये। अंत में सिपाहियों की छोटी-छोटी गलती के प्रकरणों को भी इस कमेटी के सुपुर्द किया जाने लगा। सिपाहियों को इस कमेटी से चिढ होने लगी थी और वो ऐसा समझने लगे थे कि कमेटी उनको नौकरी से निकालने के लिये बनाई गई है। इससे फौज में और अधिक रोष व्याप्त हो गया। इस कमेटी ने फौज के उन चौदस सिपाहियों को भी नौकरी से निकालने का आदेश दे दिया था जो इन्दौर से बिना अनुमति डयूटी छोड़कर सीहोर आ गये थे। इन चौदह फौजियों में महावीर कोठ हवलदार और रमजूलाल सूबेदार के नाम भी सम्मिलित थे। सीहोर की फौज में ये दोनों बहुत लोकप्रिय थे। इसलिए इनको सेवा से हटाने से फौज में बगावत फैलने की संभावना थी। इस कारण बख्शी साहब ने इन दोनों के अतिरिक्त बाकी बारह फौजियों को सेवा से पृथक कर दिया। जिन सिपाहियों को नौकरी से निकाला गया उन्हें सीहोर की सीमा से बाहर जाने का भी आदेश दिया गया। इस आदेश में यह भी लिखा था कि जो भी व्यक्ति इन लोगों को शरण देगा उसे भी सजा दी जाएगी।
बैरसिया हुआ आजाद पर सीहोर की फौज ने वहां जाकर बागियों से युद्ध करने का मना कर दिया-
जब सीहोर फौज से दो तोप चोरी हो गईं-
फाजिल मोहम्मद खाँ और आदिल मोहम्मद खाँ रियासत भोपाल के मोंजागढ़ी जिला रायसेन के दो विख्यात जागीरदार थे। ये दोनो भाई वैयक्तिक शासन और अधूरे राज के घोर विरोधी थे। इन दोनो भाईयों ने अपनी व्यक्तिगत फौज बना ली थी और वह लगातार इस फौज की ताकत बढ़ा रहे थे। इन भाईयों ने बगावत के दौर में रियासत भोपाल के विभिन्न जिलों का कई बार चक्कर लगाया था। इसी प्रकार ये भाई रियासत भोपाल के आसपास के राजा नवाबों से भी संबंध बनाए हुए थे। भोपाल, सीहोर, बैरसिया आदि और रियासत के विभिन्न स्थानों पर आगे चलकर जो बगावतें हुई उनको संगठित करने में इन दोनो भाईयों का भी विशेष योगदान रहा। भोपाल सैना और सीहोर फौज के विलायती अफगान सिपाही इन भाईयों के विशेष हमदर्द थे। इन भाईयों के राष्ट्रवादी प्रयासों और बहादुरी से प्रभावित होकर रियासत के बहुत से सिपाहियों ने नौकरी छोड़कर इन भाईयों की फौज में नौकरी कर ली थी। 10 जुलाई 1857 को रियासत की फौज के बख्शी साहब के पास अचानक यह सूचना आई कि सीहोर से दो तोपों को किसी ने चुरा लिया है। बख्शी साहब ने फौरन इस चोरी की जांच शुरु कर दी जांच में पता चला कि ये तोपें फाजिल मोहम्मद खाँ के इशारे पर चुराई गई थीं। एक तोप फौज के एक सिपाही से बरामद हुई जिसे उसी समय गिरफ्तार कर लिया गया। उसकी गिरफ्तारी के बाद जो आगे छानबीन हुई तो उससे पता चला कि फाजिल मोहम्मद खाँ बहुत पहले से सीहोर और भोपाल में बगावत की तैयारियाँ कर रहे थे। सिकंदर बेगम को ये रिपोर्ट दी गई कि फाजिल मोहम्मद खाँ भोपाल आर्मी के कमाण्डर इन चीफ, डिप्टी कमाण्डर और कई वफादार फौजी अफसरों को कत्ल करने की योजना बना रहे थे। इसमें शिवलाल, चंदूलाल और फरजंद अली जैसे वफादार के नाम भी सम्मिलित थे।
चुन्नीलाल और भीकाजी जैसे जासूसों से कराई जाती थी बागियों की जासूसी
घी और शक्कर में मिलावट की शिकायत पर सीहोर के कोतवाल भागे
11 जुलाई 1857 को सीहोर के कुछ सिपाहियों ने ये शिकायत की थी कि बाजार में जो घी और शक्कर बेची जा रही है और जो यहॉ फौज को भी सप्लाई की जा रही है उसमें मिलावट की जा रही है। खाद्य सामग्री में मिलावट की यह शिकायत सीहोर में नई बात थी। इस अफवाह की वजह से सभी फौजियों में गुस्से की लहर फैल गई। कुछ जोशीले और भडक़ीले सिपाहियों ने दुकानदारों तक को सबक सिखा दिया था। सिपाही मिलावट के लिये सरकार को दोषी मान रहे हैं। उस समय इन अफवाहों से सीहोर के अन्दर इतनी बैचेनी फैल गई थी कि यहॉ के कोतवाल लाला रामदीन को ये अंदेशा हो गया था कि बांगी कहीं उन पर भी हमला न कर दें। इस बदहवासी की हालत में वो अपनी जान बचाने के लिये सीहोर से भाग खड़े हुए। सरकार ने उनकी जगह पर इमदाद अली को तैनात किया परन्तु वह भी घबराहट में डयूटी ज्वाईन करने के बाद छुप गये। अंततरू मिलावट की जांच 6 अगस्त 1857 को सीहोर के रामलीला मैदान में हुई। जांच में शकर में मिलावट पाई गई। जांच के निष्कर्ष सामने आते ही सिपाही भड़क गये, वह अंग्रेजों के खिलाफ भड़क गये।
और बनाई सिपाही बहादुर सरकार
अंग्रेजों से भड़के और मिलावट से गुस्साये सिपाहियों ने इसी दिन एक सभा की, जिसमें क्रांतिकारी भाषण देते हुए वली शाह ने अंग्रेजों के खिलाफ तो बोला ही साथ ही उत्तेजित स्वर में बोले श्फौज के अधिकारी अच्छी तरह कान खोलकर सुन लें कि अगर उन्होने हमारे मेहबूब लीडर महावीर को गिरफ्तार कर लिया तो हम फौज की इमारत की ईंट से ईंट बजाकर रख देंगे और हम सभी बड़े अधिकारियों को भेड़-बकरियों की तरह काटकर फेंक देंगे। इसी दिन स्पष्ट कर दिया गया जो अंग्रेजों की गुलामी पसंद करते हैं वह चले जाएं और देश की आजादी पसंद करने वाले सिपाही क्रांतिकारियों का साथ दें। इसी दिन 6 अगस्त को सिपाही बहादुर सरकार की स्थापना की गई और बागियों की सरकार दर्शाने के लिए दो झंडे निशाने मोहम्मदी और निशाने महावीरी लगाए गए।
14 जनवरी को हुआ कत्लेआम-
8 जनवरी 1858 को जनरल रोज की विशाल फौज मुम्बई के रास्ते सीहोर पहुँची। जनरल रोज की सैना ने यहाँ क्रांतिकारियों को पकड़कर गिरफ्तार कर लिया। उनसे माफी मांगने को कहा गया, लेकिन क्रांतिकारियों ने माफी मांगने से इंकार कर दिया। अंततरू 14 जनवरी 1858 को सैकड़ो क्रांतिकारियों को सैकड़ाखेड़ी स्थित चॉदमारी के मैदान पर एकत्र कर गोलियों से भून दिया गया। अनेक किताबों और भोपाल स्टेट गजेटियर के पृष्ठ क्रमांक 122 के अनुसार इन शहीदों की संख्या 356 से अधिक थी।