वॉशिंगटन/मॉस्को
यूक्रेन युद्ध में अमेरिका ने रूस को सिर्फ प्रतिबंधों से ही नहीं जकड़ा है, बल्कि अब अमेरिका ने रूस की डिफेंस इंडस्ट्री को ही बर्बाद करने का फैसला कर लिया है और इसके लिए अमेरिका ने रूस के टॉप डिफेंस वैज्ञानिकों को काफी आकर्षित करने वाले ऑफर्स दिए हैं और अगर रूसी वैज्ञानिक अमेरिका के ऑफर्स के झांसे में आते हैं, तो यकीनन रूस के डिफेंस इंडस्ट्री पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा।
बाइडेन प्रशासन का अभियान
रूस के साइंस और टेक्रोलॉजिकल बेस को बर्बाद करने के लिए बाइडेन प्रशासन ने रूसी वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को अमेरिका में आकर्षित करने के लिए एक अभियान चलाने की योजना बना रहा है। अमेरिका सीईआरएन परमाणु प्रयोगशाला में रूसी भौतिकविदों को से काम करना जारी रखने में मदद करने की भी योजना बना रहा है, ताकि अगर रूसी वैज्ञानिकों का वीजा खत्म भी हो जाए, तो उन्हें वापस रूस लौटने की जरूरत ना हो। राष्ट्रपति बाइडेन की इस योजना का पहली बार खुलासा ब्लूमबर्ग ने 29 अप्रैल को किया था और दावा किया गया है कि, इस योजना के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति ने 33 अरब डॉलर के सप्लीमेंटी बिल को मंजूरी दे दी है।
रूसी वैज्ञानिकों को लुभाने की कोशिश
रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने 28 अप्रैल को इस बिल को अमेरिकी संसद कांग्रेस में भएजा था और अधिकारियों का कहना है कि, इस कानून में ऐसी भाषा शामिल है, जो तकनीकी रूप से योग्य रूसियों को कई क्षेत्रों में मास्टर्स और डॉक्टर्स की डिग्री के लिए सामान्य वीज़ा आवश्यकता के बिना अमेरिका में प्रवास करने की अनुमति देती है और ऐसे रूसी वैज्ञानिकों और रिसचर्स के लिए अमेरिका की सरकार एडवांस में ही नौकरी की व्यवस्था कर देगी, ताकि उन्हें घर लौटने की जरूरत ना हो और रूस की टेक्नोलॉजी का विकास ना हो पाए। हालांकि, इसके लिए सिर्फ एक शर्त ये रखा गया है, कि उन्हें पहले अमेरिकी सिक्योरिटी बैकग्राउंट टेस्ट पास करनी होगी।
जी-7 देशों से अमेरिका की बातचीत
अमेरिका को इस बात का डर है, कि जो रूसी वैज्ञानिक अमेरिका और अलग अलग यूरोपीय देशों में महत्वपूर्ण जगहों पर काम कर रहे हैं, अगर वो वापस लौटे, तो अमेरिका के लिए ही मुसीबत पैदा कर सकते हैं। लिहाजा, अमेरिका अब जिनेवा के पास दुनिया की प्रमुख उच्च-ऊर्जा भौतिकी प्रयोगशाला CERN में काम करने वाले रूसियों के लिए अमेरिका और अन्य G7 देशों के परामर्श से उन्हें वहां काम करने में मदद करने की योजना बना रहा है, जिसमें अमेरिकी वैज्ञानिक संगठन में उन्हें सीधे काम पर रखने की संभावना भी शामिल है। हालांकि, फिलहाल यह स्पष्ट नहीं हो पाया है, कि क्या इसी तरह के प्रावधान अन्य प्रमुख पश्चिमी प्रयोगशालाओं में काम करने वाले रूसियों पर लागू होंगे या नहीं?
क्या है ‘ऑपरेशन पेपरक्लिप’?
दरअसल, दुनियाभर के वैज्ञानिक अलग अलग देशों में रिसर्च करने के लिए जाते हैं और रूस के भी दर्जनों वैज्ञानिक अमेरिका और अन्य यूरोपीय देशों में रिसर्च कर रहे हैं। लिहाजा, यह पहल व्हाइट हाउस द्वारा वैज्ञानिक और तकनीकी प्रतिभाओं को अमेरिका में ही रखने और रूस की टेक्नोलॉजी को कमजोर करने के लिए पहला बड़ा कदम है। अमेरिका के एक अधिकारी ने इसकी तुलना 1945 से 1959 तक एक तत्कालीन गुप्त अमेरिकी कार्यक्रम ऑपरेशन पेपरक्लिप से की है, जिसने अमेरिकी प्रयोगशालाओं में रोजगार के लिए 1,600 से अधिक नाजी-युग के जर्मन वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को अमेरिका पहुंचाया था। उनमें प्रसिद्ध रॉकेट इंजीनियर वर्नर वॉन ब्रौन और कर्ट डेबस भी शामिल थे, जो बाद में कैनेडी स्पेस सेंटर के पहले निदेशक बने थे। इस प्रयास ने शीत युद्ध को बढ़ावा देने में मदद की थी, क्योंकि रूस के पास भी एक समान जर्मन प्रतिभा कार्यक्रम था।
कई क्षेत्रों में शामिल किए जाएंगे रूसी वैज्ञानिक
हालांकि, यह अभी तक स्पष्ट नहीं है, कि कितने रूसी शोधकर्ता और इंजीनियर, बाइडेन प्रशासन के इस प्लान में शामिल हो सकते हैंष हालांकि माना जा रहा हैस कि कई सौ रूसी इंडीनियर पहले ही अमेरिका छोड़ चुके हैं। वहीं, अमेरिकी वैज्ञानिक संगठन वर्तमान में कार्यक्रम के लिए योजनाएं विकसित कर रहे हैं। इस कार्यक्रम में कई विषयों को शामिल किया गया है, जिसमें अर्धचालक, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, साइबर सुरक्षा, उन्नत विनिर्माण और कंप्यूटिंग, परमाणु इंजीनियरिंग, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मिसाइल प्रणोदन शामिल हैं। रूस की सैन्य क्षमता को कमजोर करने के प्रयास में अब तक, अमेरिका ने रूस को उच्च तकनीक वाले उपकरणों या जानकारी के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने पर युद्ध के वैज्ञानिक और तकनीकी पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया है।
रूस को कमजोर करना चाहता है अमेरिका
25 अप्रैल को अमेरिकी रक्षा सचिव लॉयड ऑस्टिन ने यह कहकर हलचल मचा दी थी, कि हम रूस को इस हद तक कमजोर देखना चाहते हैं, कि वह भविष्य में किसी और देश पर हमला कर सके। वहीं, पिछले पिछले कुछ दशकों में रूस का टेक्नोलॉजिकल कार्यक्रम काफी कमजोर हुआ है, क्योंकि रूस के पास फंड्स की कमी हो चुकी है। वहीं, व्हाइट हाउस ने रूस के लिए जो नया वीजा कार्यक्रम बनाया है, उसमें साफ तौर पर वैज्ञानिक प्रतिभा का उल्लेख किया गया है।