कच्चे घरों में रहने वाले अधिकतर गरीब सांप का बनते हैं शिकार: डब्ल्यूएचओ

जिनेवा । विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि दुनिया में कच्चे घरों में रहने वाले अधिकतर गरीब सांपों का शिकार बनते हैं। डब्ल्यूएचओ ने 2030 तक मौतों का आंकड़ा आधा करने का लक्ष्य रखा है। उष्ण-कटिबंधीय (tropical) इलाके में खेतों में काम करने के दौरान भी कई लोग इन सांपों का शिकार बन जाते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन का लक्ष्य दुनिया में सांप काटने से होने वाली मौजूदा मौतों की संख्या को आधा करना है। भारत में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने भी सांप काटने से मौतों को रोकने का एक प्लान बनाया है। इसके लिए महाराष्ट्र और ओडिशा में एक रिसर्च स्टजी शुरू की गई है। दुनिया में हर साल सांप काटने से औसतन 81 हजार 410 से 1 लाख 37 हजार 880 मौतें होती हैं। सांप काटने से अधिकतर मौतें ग्रामीण इलाकों में घरों पर हुईं हैं। स्नेकबाइट एनवेनोमिंग उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों  में से एक है, जिसके कारण बड़ी संख्या में मौतें होती हैं। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च 2030 तक सर्पदंश से होने वाली मौतों को आधा करने के विश्व स्वास्थ्य संगठन के लक्ष्य को हासिल करने की योजना तैयार कर चुका है। इसके लिए पोस्टर, कार्टून संदेश, सांप के काटने से बचाव और सांप के काटने के बाद प्राथमिक चिकित्सा पर वीडियो संदेश बनाया गया है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने सांप काटने से होने वाली मौतों को रोकने के लिए सामुदायिक सशक्तिकरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में क्षमता निर्माण के उद्देश्य से राष्ट्रीय सर्पदंश परियोजना प्रोटोकॉल प्रकाशित किया है। इसके साथ ही आईसीएमआर के नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन रिप्रोडक्टिव एंड चाइल्ड हेल्थ ने महाराष्ट्र और ओडिशा में एक अध्ययन शुरू किया है। स्नेकबाइट एनवेनोमिंग उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों में से एक है। ताजा राष्ट्रीय मृत्यु दर सर्वेक्षण के मुताबिक भारत में 2000 से 2019 तक सर्पदंश से 12 लाख मौतें (सालाना औसतन 58 हजार) हुईं हैं. जो पहले के अनुमानित सर्वेक्षण (2001-2003) की तुलना में सालना लगभग 8,000 मामलों की वृद्धि दिखाता है। इनमें से ज्यादातर मौतें ग्रामीण इलाकों में घर पर हुईं। जिनमें से आधी मौतें 30-69 वर्ष की आयु के बीच हुईं। भारत के केवल 8 राज्यों मध्य प्रदेश, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, राजस्थान, गुजरात और तेलंगाना सहित आंध्र प्रदेश में 2001 से 2014 तक सर्पदंश से होने वाली मौतों का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा पाया गया है।