पाकिस्तान: अपहरण और जबरन गायब होने के मामलों पर रोक लगाने में नाकाम रहीं अदालतें

इस्लामाबाद
पाकिस्तान में कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और यहां तक ​​कि छात्रों के अपहरण और जबरन गायब होने के मामले आम हो गए हैं। लेकिन अदालतों ने मामलों की बढ़ती संख्या को रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। हाल ही में, इस्लामाबाद उच्च न्यायालय ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को लापता व्यक्तियों को खोजने में राज्य की विफलता के लिए व्यक्तिगत रूप से अदालत में आने का आदेश दिया, लेकिन सेना से कोई सवाल नहीं पूछा। अंतरराष्ट्रीय दबाव के बीच इस्लामाबाद सरकार ने एक दशक पहले COIED (Commission Of Inquiry On Enforced Disappearance) की नियुक्ति की थी। इसे चौंका देने वाले 8,463 मामले मिले। हालांकि कार्यकर्ताओं ने दावा किया कि वास्तविक संख्या बहुत अधिक है। आयोग अब तक इनमें से एक तिहाई मामलों का पता नहीं लगा सका है।

COIED के चेयरपर्सन को लोगों ने की पद से हटाने की मांग
जबरन लापता होने के कई पीड़ितों ने कहा कि पुलिस ने प्राथमिकी में सैन्य एजेंसियों या कर्मियों का नाम लेने से इनकार कर दिया। अगर वे नाम लेते भी हैं तो कोई भी आरोपी सैन्यकर्मी अदालतों के सामने पेश नहीं होता है। अब इस्लामाबाद कोर्ट की टिप्पणी के बाद COIED के चेयरपर्सन जस्टिस (सेवानिवृत्त) जावेद इकबाल को पद से हटाने की मांग की जा रही है।

बिना किसी आरोप और कानून के होती है गिरफ्तारी
संयुक्त राष्ट्र को सौंपे गए गैर-सरकारी संगठन, मैट फार पीस, डेवलपमेंट एंड ह्यूमन राइट्स एसोसिएशन के बयान के अनुसार, पाकिस्तानी सेना द्वारा सभी गिरफ्तारियां बिना किसी आरोप के और कानून के बाहर भी की जाती हैं, इसलिए उन्हें 'जबरदस्ती गायब होना' कहा जाता है।