कोलंबो
श्रीलंका एक बार फिर से नाजुक स्थिति में फंस गया है और अगर श्रीलंका की लीडरशिप ने देश को बहुत सावधानी से नहीं संभाला, तो भारत का ये पड़ोसी देश एक बार फिर से गृहयुद्ध में दहल सकता है। श्रीलंका की जनता अपने नेताओं के खिलाफ खड़ी हो चुकी है और देश के सत्तापक्ष के सांसद हों या नेता, उनके घरों को जला रही है। एक दिन पहले तक श्रीलंका के प्रधानमंत्री रहे महिंदा राजपक्षे की पुश्तैनी घर को भी प्रदर्शनकारियों ने जला दिया है। ऐसे में सवाल ये उठ रहे हैं, कि आखिर जिस नेता को श्रीलंका की जनता आंखों में बसाकर रखती थी, वो अचानक लोगों की आंखों के किरकिरी कैसे बन गये?
सभी मौसमों के नेता थे महिंदा
शक्तिशाली राजपक्षे कबीले के 76 वर्षीय पितामह महिंदा राजपक्षे को कभी सभी मौसमों के लिए श्रीलंका के असली नेता के रूप में जाना जाता था, लेकिन द्वीप राष्ट्र की अभूतपूर्व आर्थिक उथल-पुथल से शुरू हुआ अभूतपूर्व सरकार विरोधी विरोध एक सुनामी बन चुका है। महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा और उनके खिलाफ गुस्से की लहर फैली हुई है देश की जनता कह रही है, कि उन्होंने देश को कैसे डूबोया है, इसका हिसाब उन्हें देना पड़ेगा। 1948 में ब्रिटेन से अपनी स्वतंत्रता के बाद से श्रीलंका सबसे खराब आर्थिक संकट से गुजर रहा है और श्रीलंक के पास विदेशी मुद्रा भंडार सिर्फ 50 मिलियन डॉलर बचा है, और स्थिति ये है, कि अब श्रीलंका मुख्य खाद्य पदार्थों के साथ साथ ईंधन के आयात के लिए भुगतान नहीं कर सकता है, लिहाजा देश में खाद्य पदार्थों के साथ साथ ईंधन की कीमतें हद से ज्यादा बढ़ चुकी हैं और ज्यादातर क्षेत्रों में गैस सप्लाई बंद हो चुकी है, लिहाजा लोगों को जंगलों से लकड़ी काटकर लाना पड़ रहा है, ताकि चूल्हा जल सके।
खत्म होता राजपक्षे परिवार का वर्चस्व!
श्रीलंका की सत्ता पर पिछले कई सालों से गोटाबाया परिवार का ही वर्चस्व रहा है और इस वक्त भी गोटाबाया राजपक्षे श्रीलंका के राष्ट्रपति बने हुए हैं और पिछले महीने 9 अप्रैल से पूरे श्रीलंका में हजारों प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतरे हुए हैं और राजपक्षे परिवार से सत्ता छोड़ने की मांग कर रहे हैं। बढ़ते दबाव में के बीच राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने अप्रैल के मध्य में अपने बड़े भाई चमल राजपक्षे और सबसे बड़े भतीजे नमल राजपक्षे को मंत्रिमंडल से हटा दिया। हालांकि, प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे इस्तीफा देने के लिए तैयार नहीं हुए थे, और बात यहां तक पहुंच गई, कि कर्ज में डूबे देश को चलाने में दोनों भाइयों के बीच अनबन की खबरें भी सामने आने लगीं।
महिंदा राजपक्षे का इस्तीफा
महिंदा राजपक्षे बिल्कुल भी इस्तीफा नहीं देना चाह रहे थे, लेकिन पार्टी के अंदर ही उनका विरोध किया जाने लगा और अंत में छोटे भाई और राष्ट्रपति गोतबया राजपक्षे के कहने पर उहोंने इस्तीफा दे दिया। लेकिन, उनके इस्तीफे के बाद उनके समर्थकों ने राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के कार्यालय के बाहर सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों पर हमला कर दिया, जिससे दर्जनों प्रदर्शनकारी घायल हो गए और अधिकारियों को राष्ट्रव्यापी कर्फ्यू लगाने और राष्ट्रीय राजधानी में सेना के जवानों को तैनात करने के लिए मजबूर होना पड़ा। रिपोर्ट के मुताबिक, करीब 1,000 ट्रेड यूनियन, राज्य सेवा, स्वास्थ्य, बंदरगाहों, बिजली, शिक्षा और डाक सहित कई क्षेत्रों से लेकर अलग अलग विभागों के सरकारी कर्मचारी भी सरकार विरोधी प्रदर्शन में शामिल हो गये, जिससे आंदोलन को काफी ज्यादा बढ़ावा मिलने लगा और रूरे श्रीलंका में सरकार विरोधी विरोध प्रदर्शन तेज हो गए। शक्तिशाली राजपक्षे परिवार पर खतरा मंडराने लगा और राष्ट्रपति गोटाबाया और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे की कुर्सी डोलने लगी। आखिरकार महिंदा राजपक्षे को इस्तीफा देना ही पड़ा।
श्रीलंका के लोगों के थे लाडले
यही राजनीति है… जिस महिंदा राजपक्षे को आज देश की जनता एक सेकंड के लिए भी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बर्दाश्त नहीं कर पा रही है, वो कुछ समय पहले तक लोगों के लाडले हुआ करते थे और यही वजह है, कि दो बार श्रीलंका के राष्ट्रपति रह चुके हैं। हालांकि, साल 2015 में महिंदा राजपक्षे को चुनाव में हार मिली थी, लेकिन साल 2020 में घातक ईस्टर आतंकी हमलों के बाद वो वापस सत्ता में लौट आए, जिसमें 11 भारतीयों सहित 270 लोग मारे गए थे, और देश की सुरक्षा के बारे में कई श्रीलंकाई लोगों के मन में डर पैदा हो गया था और श्रीलंका ने उस वक्त महिंदा राजपक्षे में एक बार फिर से भरोसा जताया, जो एक कड़े प्रशासक माने जाते हैं और जिन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान बौद्ध बनाम मुस्लिम की राजनीति को स्थापित कर दिया।
नई पार्टी बनाकर जीते चुनाव
श्रीलंका में महिंदा राजपक्षे के नाम पर वोट पड़ता था और ऐसा कहा जाता था, कि हर सीट से महिंदा राजपक्षे ही चुनाव लड़ने उतरते हैं। उनकी नवगठित श्रीलंका पीपुल्स पार्टी (एसएलपीपी) ने द्वीप राष्ट्र के राजनीतिक इतिहास में पूर्ण सत्ता हासिल करने के लिए सबसे कम जीवन काल वाली राजनीतिक पार्टी बनकर इतिहास रचा दिया।