वॉशिंगटन। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन लगातार रूस को लेकर भारत को धमकियां दिलवा रहे हैं। पहले अमेरिकी उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने और अब बाइडन के शीर्ष आर्थिक सलाहकार ने भारत को खुलेआम धमकी दी है। यही नहीं वाइट हाउस ने भी खुलकर भारत के रूस से सस्ते तेल को खरीदने आपत्ति जताई है। विशेषज्ञों का मानना है कि बाइडन प्रशासन यूक्रेन पर हमला करने वाले रूस को सबक सीखाने के लिए नहीं बल्कि अपने आर्थिक फायदे के लिए भारत को रूस से सस्ता तेल खरीदने से रोक रहे हैं। यही नहीं बाइडन के इस तेल के खेल से जहां भारत के खजाने को चोट पहुंच रही है, वहीं हमारे धुर विरोधी चीन की बल्ले-बल्ले हो रही है। आइए समझते हैं अमेरिका का यह पूरा तेल का खेल…..
भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी तेल आयात करता है। भारत खाड़ी देशों सऊदी अरब, ईरान, रूस और अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों से तेल का आयात करता है। भारत के इस तेल आयात पर अमेरिका की नजर है जो खुद तेल का निर्यातक देश है। चर्चित रक्षा विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी कहते हैं कि जिस तरह से अमेरिका ने ईरान के सस्ते तेल को नहीं खरीदने के लिए भारत को बाध्य कर दिया था। साथ भारत को अमेरिका का सबसे बड़ा ऊर्जा आयातक देश बना दिया था, ठीक उसी तरह से अब वह रूस के मामले में भी करना चाह रहा है।
रूस के सस्ते तेल की जगह पर महंगे तेल को बेचना चाहता है अमेरिका
चेलानी ने कहा कि वाइट हाउस अब रूस के सस्ते तेल की जगह पर अमेरिका के महंगे तेल को देना चाहता है। इस तरह से जहां भारत को ईरान और रूस से सस्ता तेल नहीं खरीदकर दोहरा नुकसान होगा। वहीं अमेरिका को भारतीय कदम से दोहरा फायदा होने जा रहा है। उन्होंने कहा कि भारत को अमेरिका के ईरान के खिलाफ लगाए प्रतिबंधों को तभी मानना चाहिए जब चीन उसे माने। जहां भारत का तेल आयात बिल अरबों डॉलर बढ़ गया, वहीं चीन बिना अमेरिकी प्रतिशोध का सामना किए ईरान के बहुत ही सस्ते तेल का फायदा उठा रहा है। अब रूस के मामले में अमेरिकी प्रतिबंध भारत के लिए नई चुनौती साबित होंगे।
रक्षा विशेषज्ञ चेलानी के इस तर्क में काफी दम है। यू्क्रेन संकट के बीच जहां रूस प्रतिबंधों की वजह से तेल नहीं बेच पा रहा है, वहीं भारत का अमेरिका से तेल आयात करीब 11 फीसदी बढ़ने जा रहा है। उधर, रूस के सस्ते तेल के ऑफर पर भारत के विचार करने से अमेरिका और पश्चिमी देश भड़के हुए हैं। भारत अपनी तेल जरूरत को खाड़ी देशों से पूरा करता है लेकिन अमेरिका चौथा सबसे बड़ा तेल आपूर्ति देश बनकर उभरा है। इस साल अमेरिकी सप्लाइ और ज्यादा बढ़ने जा रही है। भारत की जरूरत का 23 फीसदी तेल इराक देता है, वहीं सऊदी अरब 18 फीसदी तेल की आपूर्ति करता है। इसके बाद यूएई का नंबर होता है जो 11 प्रतिशत तेल की जरूरत को पूरा करता है।
ईरान से तेल का आयात बंद, भारत अमेरिका का सबसे बड़ा बाजार बना
भारतीय तेल बाजार में अमेरिका के कुल तेल निर्यात का हिस्सा 8 फीसदी तक होने जा रहा है। अमेरिका के लिए भारत सबसे बड़ा तेल निर्यात बाजार बन गया है। यही वजह है कि अमेरिका लगातार भारत पर रूस से तेल न लेने के लिए दबाव बना रहा है। इससे पहले साल 2016 तक ईरान और वेनेजुएला भारत के कुल तेल आयात में 21.8 फीसदी हिस्से का योगदान देते थे। वे क्रमश: तीसरे और चौथे नंबर पर आते थे लेकिन अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद ये दोनों देश टॉप फाइव से गायब हो गए हैं। हालत यह है कि ईरान के साथ भारत का तेल आयात जहां लगभग शून्य पर पहुंच गया है, चीन ने बड़े पैमान पर ईरान से तेल बहुत कम दरों पर खरीद रहा है।
अमेरिका भारत पर रूस से तेल नहीं लेने का यह दबाव तब बना रहा है जब नई दिल्ली ने साल 2010 से लेकर 2020 के बीच अपनी जरूरत का केवल 0.5 हिस्सा तेल ही रूस से लिया है। अमेरिका ने रूस पर जो प्रतिबंध लगाए हैं, उसका अप्रत्यक्ष असर है कि तेल के दाम 140 प्रति बैरल तक पहुंच गए। अब भारत की जनता को महंगाई की मार से बचाने के लिए मोदी सरकार लगातार रूस से सस्ता तेल खरीद रही है। वहीं अमेरिका अपना महंगा तेल खरीदने के लिए दबाव बना रहा है। इस तरह से अमेरिकी प्रतिबंधों से रूस बेहाल है, वहीं भारत को महंगा तेल बेचकर बाइडन प्रशासन डॉलर कमा रहा है। यही नहीं अमेरिका के नाटो सहयोगी देश जैसे जर्मनी ने अभी भी रूस से गैस खरीदना जारी रखा हुआ है। बाइडन नाटो देशों पर कोई रोक नहीं लगा पा रहे हैं।