सबका कल्याण करते हैं भगवान शिव

( लक्ष्मीनारायण त्रिकार )
देवाधिदेव महादेव के विविध नाम हैं। वे विविध नाम , विविध स्वरूप के साथ देश , विदेश में प्रतिष्ठित है। उनका एक लोकप्रिय नाम शिव भी है।
 शिव अर्थात शुभ, भला। शंकर अर्थात कल्याण करने वाला। निश्चित रूप से शिव को प्रसन्न करने के लिए मनुष्य को उनके अनुरूप  ही बनना पड़ता है।
  एक सूत्र है  " शिवो भूत्वा शिवम यजेत " अर्थात, शिव बंन कर शिव की पूजा करें, तभी उनकी कृपा प्राप्त हो सकती है।

 यह भाव साधकों के ह्रदय प्रांगण में स्थापित हो। शिवजी के प्रति जनसाधारण में बहुत आकर्षण है। जैसा कि कहा गया है शुभ और कल्याणकारी चिंतन, चरित्र एवं आकांक्षाएं बनाना ही शिव आराधना की तैयारी अथवा शिव सानिध्य का लाभ है। शिवलिंग का अर्थ होता है, शुभ प्रतीक चिन्ह-बीज। शिव की स्थापना लिंग रूप में की जाती है, फिर वही क्रमशः विकसित होता हुआ सारे जीवन को आव्रत कर लेता है। शिवरात्रि पर साधक व्रत उपवास करके यही प्रयास करते हैं, शिव अपने लिए कठोर दूसरों के लिए उदार हैं।

स्वयं न्यूनतम साधनों से काम चलाते हुए, दूसरों को बहुमूल्य उपहार देना, स्वयं न्यूनतम में भी मस्त रहना, शिवत्व का प्रामाणिक सूत्र है।
भगवान शिव को नशीली वस्तुएं आदि चढ़ाने की परिपाटी है। मादक पदार्थ सेवन मानव जीवन के लिए कल्याणकारी  नहीं है, किंतु उनमें औषधीय गुण भी हैं। शिव को चढ़ाने का अर्थ हुआ, उनके शिव शुभ उपयोग को ही स्वीकार करना, अशुभ व्यसन का त्याग करना।
ऐसी अगणित प्रेरणा शिव विग्रह के साथ जुड़ी है।

त्रिनेत्र विवेक से काम दहन, मस्तक पर चंद्रमा मानसिक संतुलन। गंगा ज्ञान प्रवाह, भूत आदि पिछड़े वर्गों को स्नेह देना आदि।
शिव का परिवार आदर्श परिवार है सभी अपने अपने व्यक्तित्व के धनी तथा स्वतंत्र रूप से उपयोगी है।
उनके वाहन भी हमें प्रेरणादाई संदेश देते हैं, आपस में जातीय बैर भाव होते हुए भी कैसे सामंजस्य स्थापित करके जीते हैं। शिव शंकर का वाहन है।(बेल )नंदी मां दुर्गा पार्वती का वाहन है शेर।

कार्तिकेय का मयूर और गणेश का वाहन है चूहा।द्वेष, बेर भाव को त्याग किस प्रकार आपस में परिवार के साथ मैत्री भाव से रहना चाहिए।
शिव के आराधक को शिव परिवार जैसे श्रेष्ठ संस्कार युक्त परिवार निर्माण के लिए तत्पर होना चाहिए।
शिव जी के गण उनके कार्य के लिए समर्पित व्यक्तित्व है।उनमें भूत पिशाच भी हैं और देव वर्ग के भी गण है वीरभद्र।
 वीरता अभद्र ना हो, भद्रता डरपोक ना हो, तभी शिवत्व की स्थापना होगी ।भले काम के लिए देव  पिशाच सभी एकजुट हो जाए, यही प्रेरणा शिव जी के गणों से प्राप्त होती है।
हमें शिव जी के कृपापात्र  बनने के लिए योग्य प्रवृत्तियों का प्रवाह हमारे अंतर्मन में उमड़ना चाहिए।
वेद पुराण के अनुसार  महाशिवरात्रि, शिव -पार्वती के विवाह की रात मानी जाती है। इस दिन शिव ने वैराग्य जीवन से गृहस्थ जीवन की ओर कदम रखा था इस दिन रात्रि जागरण ,भजन, पूजन  की जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन की गई विशेष आराधना से भक्तों पर प्रभु की  विशेष कृपा होती है । मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
आइए  हम सब शिव भक्त महाशिवरात्रि पर्व पर इस भाव से पूजन आराधना कर इस पर्व की महत्ता को सार्थक कर जीवन को आनंदित  और धन्य करें ।
      इस उत्कृष्ट भावनाओं के साथ इस पावन पर्व महाशिवरात्रि की सभी को बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं । सबका मंगल हो।
( लेखक मध्यप्रदेश के सारंगपुर शहर में रहते हैं । धर्म, समाज , संस्कृति की गतिविधियों के विस्तार में सक्रिय हैं। )

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