विधानसभा चुनाव में दलबदल वाली 30 सीटें बनेंगी निर्णायक

भोपाल । उपचुनाव की जिन विधानसभा सीटों ने 2020 में भाजपा को सत्ता के लिए जादुई आंकड़ा दिया था, वही अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में कड़े मुकाबले के संकेत दे रहे हैं। यानी लगभग 30 ऐसी सीटों पर भाजपा और कांग्रेस में कड़े मुकाबले के आसार हैं, जहां उपचुनाव हो चुके हैं। इनमें ऐसी 25 सीटें हैं, जहां कांग्रेस के विधायकों ने इस्तीफा दिया और उपचुनाव में भाजपा के विधायक बनकर विधानसभा पहुंच गए। दरअसल, 2018 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद से अब तक 34 विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव हुए हैं। इनमें से 25 सीटें ऐसी हैं, जहां कांग्रेस के विधायकों ने इस्तीफा दिया और फिर भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा। यही सीटें अब भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए चुनौती बन गई हैं।
कांग्रेस जहां इन सीटों को छीनने के लिए अभी से जी तोड़ कोशिश में जुट गई है, वहीं भाजपा के सामने संकट है कि उसके नए-पुराने कार्यकर्ताओं में अब तक दिली मेल-मिलाप नहीं हो पाया है। दोनों के बीच दूरी से संगठन भी परेशान है। इधर, मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमल नाथ ने इन क्षेत्रों में अपने दौरे भी शुरू कर दिए हैं, जबकि भाजपा कार्यकर्ताओं के मनमुटाव को सुलझाने में जुटी है। पुराने चेहरे को मौका या फिर नए पर ही दांव-वर्ष 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ उनके समर्थक विधायक भी भाजपा में आए थे, उन सभी चेहरों को पार्टी ने उनकी विधानसभा सीटों पर उपचुनाव में मौका दिया। ऐसे में स्थानीय स्तर पर भाजपा के पुराने चेहरे चुनावी परिदृश्य से बाहर हो गए। माना जा रहा था कि पार्टी ने पुराने चेहरों को 2023 में मौका देने या समायोजित करने का आश्वासन दिया होगा। ऐसे में बड़ी चुनौती है कि जीत की संभावनाओं के आधार पर किसे मौका दिया जाए? इसका प्रभाव स्थानीय से लेकर प्रदेश स्तर तक महसूस किया जाएगा।

नए और पुराने कार्यकर्ताओं के बीच सामंजस्य नहीं
भाजपा की बड़ी चुनौती नए और पुराने कार्यकर्ताओं के बीच सामंजस्य की भी है। यदि मौजूदा विधायक को मौका दिया जाता है, तो पुराने चेहरे मायूस होंगे। पुराने चेहरों को फिर से मौका दिया, तो सिंधिया समर्थकों साथ तालमेल बिगडऩे का जोखिम बढ़ सकता है। इन समीकरणों पर कांग्रेस की पैनी नजर है।

नए चेहरे तैयार करने की चुनौती, भाजपा पर नजर
ऐसी सीटों पर कांग्रेस को नए सिरे से मजबूत चेहरे तैयार करने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। अपने विधायक जाने से कांग्रेस के पास कार्यकर्ताओं की भी संख्या भी घटी है। कार्यकर्ता से लेकर नेता स्तर तक नई जमावट बेहद चुनौतीपूर्ण है। हालांकि कांग्रेस भाजपा पर भी नजर लगाए हुए है, जहां समीकरण को देखते हुए भाजपा के खिलाफ उसी की रणनीति का अनुसरण करते हुए वह दलबदल के माध्यम से लड़ाई को कठिन बना सकती है।