जबलपुर
माध्यमिक शिक्षा मंडल व स्कूल के बीच के गतिरोध के कारण एक छात्रा का साल खराब होने के हालात पैदा हो गए थे। लिहाजा, वह इंसाफ के लिए हाई कोर्ट चली आई। हाई कोर्ट में उसके वकील ने दलीलें देकर उसे परीक्षा में बैठाए जाने की व्यवस्था मांगी। हाई कोर्ट ने पूरा मामला संवेदनशीलता से समझने के बाद उसके हक में राहतकारी आदेश पारित कर दिया। इस तरह उसका एक साल खराब होने से बच गया। हाई कोर्ट का आदेश सामने आया ताे माशिमं को आनन-फानन में पालन सुनिश्चित करना पड़ा।
जबलपुर के अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने बताया कि हाई कोर्ट ने बारहवीं कक्षा की छात्रा को परीक्षा में बैठने की अनुमति देने का आदेश सुनाया। इस अंतरिम राहत के साथ ही माध्यमिक शिक्षा मंडल, भोपाल को नोटिस जारी कर जवाब-तलब कर लिया गया है। न्यायमूर्ति विशाल मिश्रा की एकलपीठ ने हाई कोर्ट की अनुमति के बिना रिजल्ट घोषित न किए जाने की भी अंतरिम व्यवस्था दी है। याचिकाकर्ता जबलपुर निवासी जिया साहू की ओर से अधिवक्ता उपाध्याय ने दलील दी कि याचिकाकर्ता जेके कांवेंट स्कूल, जबलपुर की नियमित छात्रा है। उसका परीक्षा फार्म स्कूल की ओर से आनलाइन जमा किया गया था। उस समय कोई आपत्ति दर्ज नहीं की गई। लेकिन बाद में प्रवेश पत्र रोक लिया गया। इस वजह से छात्रा 12 वीं बोर्ड परीक्षा में बैठने से वंचित होने की कगार पर पहुंच गई है। इस पर माशिमं की तरफ से तरह-तरह की बहानेबाजी की गई। इसीलिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई। छात्रा के भविष्य का सवाल है। हाई कोर्ट ने मामले की गंभीरता को समझते हुए अंतरिम राहत दे दी। बहस के दौरान माशिमं की ओर से वकील ने कई तर्क रखे। लेकिन हाई कोर्ट की नजर में वे सब बेमानी साबित हुए। कोर्ट ने साफ किया कि इस तरह अपनी तकनीकी त्रुटि के लिए किसी के भविष्य से खिलवाड़ ठीक बात नहीं है। इसलिए अवलिंब आदेश का पालन किया जाए।