निजी विश्वविद्यालयों की चल रही मनमर्जी, नुकसान झेल रहे छात्र

ग्वालियर
मप्र निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग की ढिलाई के चलते तमाम निजी विश्वविद्यालयों की मनमर्जी चल रही है। आलम यह है कि शैक्षणिक सत्र 2021-22 खत्म होने जा है,मगर अभी तक निजी विश्वविद्यालयों के कोर्सेज की फीस निर्धारित नहीं हो सकी है।
विनियामक आयोग की फीस निर्धारण संबंधी आदेशों को निजी विश्वविद्यालय गंभीरता से नहीं ले रहे। छात्रों के मनमानी फीस वसूल रहे,इसलिए फीस तय कराने के लिए प्रस्ताव नहीं भेज रहे। आयोग कई बार रिमांडर भेज चुका है,जिसका निजी विश्वविद्यालयों पर कोई असर नहीं हो रहा। फीस तय नहीं होने का खामियाजा छात्रों को भुगतना पड़ रहा।

मध्य प्रदेश में निजी विश्वविद्यालयों (पाठ्यक्रम) की फीस तय करने और उन पर नजर रखने के लिए 'मध्य प्रदेश निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग है। मगर आयोग सख्ती नहीं दिखा रहा। यही बजह है कि आयोग 10 महीने में प्रदेश के सभी 39 निजी विश्वविद्यालयों से फीस निर्धारण संबंधी प्रस्ताव तक नहीं मंगा पाया। इन विश्वविद्यालयों में सवा लाख से ज्यादा विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। समय से फीस तय न होने का खामियाजा बाद में विद्यार्थियों को भुगतना पड़ रहा।  विश्वविद्यालय की सुविधा को देखकर आयोग कम फीस तय करता है, तब भी विद्यार्थी को उतनी ही फीस चुकाना होगी, जिनती प्रवेश से पहले विश्वविद्यालय मैनेजमेंट से तय हुई है। विश्वविद्यालयों से प्रस्ताव मंगाने के आयोग के सारे प्रयास नाकाफी साबित हुए। मार्च 2022 में यह शैक्षणिक सत्र समाप्त हो रहा है और 15 विश्वविद्यालयों के प्रस्ताव अब भी नहीं आए हैं। इसलिए संबंधित विश्वविद्यालयों की फीस भी तय नहीं हो पा रही है।

बार-बार स्मरण कराने बाद भी प्रस्ताव नहीं भेज रहीं यूनिवर्सिटी
बता दें कि विनियामक आयोग ने 12 मार्च 2021 को शैक्षणिक कैलेंडर 2021-22 घोषित किया था और 15 अप्रैल तक सभी निजी विश्वविद्यालयों से पाठ्यक्रम अनुसार फीस के लिए प्रस्ताव मांगे थे। ताज्जुब की बात यह है कि 30 अप्रैल तक एक भी निजी विश्वविद्यालय ने प्रस्ताव नहीं दिया।  कोरोना संक्रमण के कारण कामकाज ठप होने का तर्क दिया। इस तर्क के बाद आयोग ने 31 जुलाई 2021 तक का समय दे दिया। इस अवधि में भी 11 निजी विश्वविद्यालयों ने ही प्रस्ताव दिया। फिर अक्टूबर 2021 तक अन्य तीन के प्रस्ताव आए, लेकिन परीक्षण में तीन विश्वविद्यालयों के प्रस्ताव ठीक पाए गए। जबकि 11 के प्रस्तावों में कमी पाई गई। जिससे उन्हें वापस लौटा दिया गया। इस मामले में विश्वविद्यालयों ने आयोग की भी एक नहीं सुनी। बार-बार स्मरण कराने के बाद भी नवंबर एवं दिसंबर 2021 तक 10 और विश्वविद्यालयों ने ही प्रस्ताव भेजे। ऐसे में पूरा सत्र बीत गया और आयोग पाठ्यक्रमों की फीस तय करना तो दूर विश्वविद्यालयों से प्रस्ताव तक नहीं मंगा पाया।