जैविक खेती ने जोड़ा जीवन में समृद्धि का नया अध्याय

भोपाल

सफलता की कहानी

प्रदेश के शहडोल जिले की श्रीमती द्रोपती सिंह, बैतूल जिले के आशाराम यादव, जीवतु इवने, स्वदेश चौधरी, उज्जैन जिले के गोपाल डोडिया… ये नाम उन कुछ किसानों के हैं जिन्होंने जैविक खेती का रास्ता अपनाकर अपने खेतों की फसल उत्पादकता बढ़ाकर आर्थिक समृद्धि हासिल की है। इतना ही नहीं उन्होंने जैविक खेती के जरिए मानव स्वास्थ्य, मिट्टी, फसलों और पर्यावरण पर रासायनिक खादों के दुष्परिणामों की रोकथाम में अपना महत्वपूर्ण योगदान भी दिया है। यह संभव हुआ है इन सभी किसानों को कृषि विभाग की आत्मा परियोजना के तहत संबंधित अधिकारियों द्वारा दिये गये प्रशिक्षण और सलाह से।

शहडोल जिले के विकासखण्ड सोहागपुर के ग्राम खेतौली की आदिवासी महिला किसान श्रीमती द्रोपती सिंह के पास 1.400 हेक्टेयर जमीन है। उन्हें गोबर, गोमूत्र, बेसन और मिट्टी से बनी मटका खाद तथा विभिन्न पेड़ों की पत्तियों को पीसकर गोमूत्र और गोबर मिलाकर जैविक कीटनाशी बनाना सिखाया गया। द्रोपती ने विधि से धान की फसल लगाई और इस जैविक मटका खाद और जैविक कीटनाशी का उपयोग किया। उन्हें उपलब्ध कराई गई जैविक आदान सामग्री और एस.आर.आई. तकनीक के प्रयोग से पूर्व वर्ष की तुलना में इस वर्ष 20 से 30 प्रतिशत अधिक उत्पादन मिला। जैविक फसल होने के कारण उन्हें बाजार में अपनी फसल का अच्छा दाम प्राप्त हुआ है।

बैतूल जिले के विकासखण्ड मंडई खुर्द के ग्राम खापरखेड़ा के किसान आशाराम यादव वर्ष 2018-19 से अपनी 12 एकड़ जमीन पर जैविक खेती कर रहे हैं। उन्हें जैविक गेहूँ के उत्पादन से वर्ष में 8 लाख रुपये की आमदनी हो रही है। जैविक खेती के साथ उन्होंने आम का बगीचा भी लगाया है, जिससे उन्हें निकट भविष्य में अतिरिक्त आय होगी। बैतूल जिले के ही जीवतु इवने 5 एकड़ जमीन पर सोयाबीन और लोकवन गेहूँ की फसल ले रहे थे। लगातार गिरते उत्पादन से उनकी माली हालात बिगड़ती जा रही थी। इसी दौरान जीवतु को आत्मा परियोजना में जैविक खेती का मार्ग चुना। बायोगैस संयंत्र और वर्मी कम्पोस्ट पिट का निर्माण करवाया। अच्छे किस्म की वर्मी कम्पोस्ट खाद मिलने से अब उनकी सालाना आमदनी में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है।

ऐसी ही कुछ कहानी है बैतूल जिले के स्वदेश चौधरी की जिनकी 5 एकड़ जमीन जैविक प्रमाणीकरण संस्था भेापाल से पंजीकृत है। उन्हें अपने जैविक उत्पादों का भी वाजिब दाम भी नहीं मिल पा रहा था। जिले के कलेक्टर और कृषि विभाग के अधिकारियों ने जैविक उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए बैतूल के शिवाजी ऑडिटोरियम में जैविक हाट बाजार शुरू किया। इस पहल से स्वदेश के जैविक उत्पादों जैसे गुड़, गेहूँ, अरहर, कच्ची घानी, मूँगफली तेल, धनिया, मैथी, लहसुन और चावल की अच्छी कीमत मिलने लगी। अब वे आन्ध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में भी अपने जैविक उत्पादनों का विक्रय कर रहे हैं। लगभग 8 लाख रुपये की सालाना शुद्ध आय से उनके जीवन में समृद्धि का एक नया अध्याय जुड़ गया है।

यदि कृषि विभाग से जानकारी, सलाह और प्रशिक्षण का सहारा नहीं मिलता तो उज्जैन जिले के विकासखण्ड बड़नगर के ग्राम विसाहेड़ा के किसान गोपाल डोडिया अपनी वो साख नहीं बना पाते जिसके कारण उनके खेतों की जैविक फसलों के उत्पाद लोग इनके निवास से ही ऊँचे दाम पर हाथों-हाथ खरीद कर ले जाते हैं। केवल प्राथमिक स्कूल तक पढ़े गोपाल डोडिया के लिए यह विश्वसनीयता हासिल करना ही उनके जीवन की बड़ी उपलब्धि है।

गोपाल डोडिया अपने दो हेक्टेयर जमीन पर किसी भी रासायनिक खाद का नहीं बल्कि स्वयं के बनाये हुए गोबर, गोमूत्र, कम्पोस्ट खाद, जीवामृत, घन जीवामृत, बीजामृत के साथ ही पौध संरक्षण की औषधि, निमास्त्र, भ्रमास्त्र यह दसपार्णिका अर्क, छांछ का उपयोग करते हैं। वे नरवाई भी नहीं जलाते है। गहरी जुताई और मेढ़ नाली पद्धति से बुआई कर लगातार उत्पादन बढ़ाने में सफल हो रहे हैं। कृषि विभाग ने उन्हें दो गोबर गैस और अन्य कृषि संयंत्र उपलब्ध कराये हैं जो उनकी सफलता में बहुत सहायक साबित हुए हैं। गोपाल ने एक नर्सरी भी तैयार की है जो उनके लिए अतिरिक्त आमदनी का जरिया बन गई है।