भोपाल । देश में पिछले कुछ वर्षों के दौरान न लोकसभा, न राज्यसभा और न ही विधानसभाओं का सत्र पूरी अवधि तक चल पा रहा है। मंगलवार को विपक्ष की नारेबाजी के बाद राज्यसभा और लोकसभा की कार्यवाही 23 मार्च तक स्थगित के लिए स्थगित कर दी गई। वहीं मध्यप्रदेश विधानसभा की कार्यवाही मंगलवार को अनिश्चितकाल तक के लिए स्थगित कर दी गई। इसके साथ ही बजट सत्र का तय अवधि से 6 दिन पहले ही समापन हो गया है। अगर देखा जाए तो पिछले साल में विधानसभा का कोई भी सत्र पूरे दिन नहीं चला है।
मप्र विधानसभा का बजट सत्र 29 दिन का था। लेकिन यह सत्र 6 दिन पहले ही समाप्त हो गया। पिछले 4 साल के दौरान विधानसभा का कोई भी सत्र पूरी अवधि तक नहीं चला है। इसको लेकर सत्तापक्ष और विपक्ष एक-दूसरे पर आरोप लगाते हैं पर जनहित से जुड़े मुद्दे पीछे छूट जाते हैं। गौरतलब है कि 2022 में लोकसभा वर्ष में 100 दिन, बड़ी विधानसभा 90 से 75 दिन और छोटी विधानसभा में सदन की कार्यवाही 60 दिन चलाने की बात कही गई थी। संसद हो या विधानसभा, जनता के मुद्दों पर चर्चा, सवाल-जवाब और फिर निर्णय पर पहुंचना ही आदर्श संसदीय व्यवस्था है, लेकिन अब स्थितियां बदलती जा रही हैं। विधानसभा सत्रों में चर्चा के नाम पर हंगामा, विरोध और फिर कार्यवाही का स्थगन। बीते कई वर्षों में यही चिंताजनक ट्रेंड मप्र विधानसभा में दिखाई दिया। मप्र में 15वीं विधानसभा के चार साल से अधिक समय पूरे हो चुके हैं। लेकिन विडंबना यह देखिए कि इन दिनों में विधानसभा का सत्र 73 दिन भी नहीं चला। 15वीं विधानसभा में इस बजट सत्र को मिलाकार 120 दिन बैठकें तय की गई थीं, लेकिन 73 दिन ही हुईं। यह आंकड़ा बता रहा है कि चर्चा का समय लगातार घट रहा है। लोकतंत्र के लिए इसे कतई अच्छा नहीं माना जा सकता। 15वीं विधानसभा में तीन सत्रों को छोड़कर 4 साल में अन्य कोई भी सत्र (बजट, मानसून और शीतकालीन) अपनी निर्धारित अवधि पूरी नहीं कर सका। यहां तक कि बजट सत्र की बैठकें भी समय से पहले ही समाप्त हो गईं। जबकि यह सबसे लंबा होने की परंपरा रही है।
सत्र चलाने में किसी की रूचि नहीं
दरअसल, सत्तापक्ष हो या विपक्ष किसी की भी रूचि अब अधिक अवधि तक सत्र चलाने में नहीं रह गई है। सरकार का जोर इस बात पर रहता है कि विधायी कार्य पूरे हो जाएं। वहीं, विपक्ष शुरुआत से ही हंगामा करना प्रारंभ कर देता है। स्थिति अब तो यह बनने लगी है कि प्रश्नकाल तक पूरा नहीं हो पाता और अध्यक्ष को सदन की कार्यवाही बार-बार स्थगित करनी पड़ती है। पिछले मानसून सत्र में यही स्थिति बनी। इससे अध्यक्ष व्यथित भी नजर आए पर सदन के सुचारू संचालन में पक्ष और विपक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। जाहिर है दोनों पक्ष इसके लिए एक-दूसरे को ही जिम्मेदार बताते हैं। नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह का आरोप है कि सरकार सदन में चर्चा कराने से भागती है। विपक्ष लोक महत्व के विषयों पर चर्चा करना चाहता है पर सत्तापक्ष हंगामा करने लगता है। संसदीय कार्य मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा कहते हैं कि कांग्रेस कभी जनहित के मुद्दों पर चर्चा नहीं करती। हंगामा करना ही इनका मकसद रहता है। जबकि, सदन का मंच हमें जनहित पर चर्चा करने के लिए दिया है और सबकी प्रक्रिया निर्धारित है। बड़ी तैयारी के साथ विधायक विधानसभा सत्र के लिए प्रश्न लगाते हैं। एक घंटे के प्रश्नकाल में 25 प्रश्नों का चयन लॉटरी के माध्यम से होता है। जिन सदस्यों के प्रश्न इसमें शामिल होते हैं वे सदन में सरकार का उत्तर चाहते हैं और पूरक प्रश्न भी करते हैं पर हंगामे के कारण प्रश्नकाल ही पूूरा नहीं हो पा रहा है। इससे विधायकों के प्रश्न पूछने के अधिकार का हनन भी हो रहा है। अपनी बात रखने का उन्हें मौका भी कम मिल रहा है। इसे लेकर विधायक आपत्ति भी दर्ज करा चुके हैं। विधेयकों को लेकर भी स्थिति अलग नहीं है। इस दौरान अधिकतर विधेेयक हंगामे के बीच ध्वनिमत से चंद मिनटों में पारित हो जाते हैं।
स्पीकर के खिलाफ कांग्रेस का अविश्वास प्रस्ताव खारिज
सदन में बजट भी पारित हो गया। इससे पहले स्पीकर गिरीश गौतम के खिलाफ विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव पर बहस हुई। लंच ब्रेक से पहले स्पीकर ने अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के लिए 27 मार्च की तारीख दी। संसदीय कार्यमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने इसे नियम विरुद्ध बताते हुए आपत्ति जताई। सदन की कार्यवाही दोबारा शुरू होने पर मंत्री नरोत्तम मिश्रा स्पीकर से सहमत नहीं दिखे। कहा- अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास नहीं आ सकता। मैं बीजेपी की ओर से प्रस्ताव कर रहा हूं कि इस अविश्वास प्रस्ताव को अस्वीकृत किया जाए। पूर्व अध्यक्ष सीताशरण शर्मा ने भी कहा कि संकल्प नियमों के विपरीत हो, तो उस पर कोई चर्चा नहीं हो सकती। पहले दिन और अंतिम दिन चर्चा नहीं हो सकती। ऐसे में स्पीकर ने बीजेपी के प्रस्ताव पर पक्ष और विपक्ष के सदस्यों से हां/न कराई। बीजेपी का प्रस्ताव स्वीकृत हो गया। बजट भी पारित हुआ। कांग्रेस विधायक सदन से वॉकआउट कर गए।
नारेबाजी के बीच 25 मिनट ही चली लोकसभा
विपक्ष की नारेबाजी के बाद राज्यसभा और लोकसभा की कार्यवाही मंगलवार को लगातार 7वें दिन स्थगित कर दी गई। दोनों सदनों की कार्यवाही दोपहर 2 बजे दोबारा शुरू हुई थी। राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खडग़े जैसे ही बोलने के लिए खड़े हुए सत्ता पक्ष के सांसदों ने राहुल गांधी की माफी की मांग करते हुए नारेबाजी शुरू कर दी। इसके बाद सभापति जगदीप धनखड़ ने 23 मार्च तक के लिए राज्यसभा को स्थगित कर दिया। इसके पहले जगदीप धनखड़ ने अपने चेम्बर में सदन के कामकाज को सुनिश्चित करने के लिए ऑल पार्टी मीटिंग बुलाई थी। जिसमें बीजेपी, वाईएसआरसीपी और टीडीपी को छोड़कर अन्य राजनीतिक दलों के नेता नहीं आए। इधर, लोकसभा की कार्यवाही भी 25 मिनट तक चली, लेकिन विपक्ष की नारेबाजी के बीच 23 मार्च सुबह 11 बजे तक स्थगित कर दिया गया।
सुबह कार्यवाही रुकने बाद विपक्ष ने किया प्रदर्शन
कार्यवाही स्थगित होने के बाद सभी विपक्षी दलों ने संसद की पहली मंजिल पर प्रदर्शन किया। सभी सांसदों के हाथ में बैनर-पोस्टर था। वे अडाणी-हिंडनबर्ग रिपोर्ट पर संसद की जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी की मांग को लेकर नारेबाजी कर रहे थे। इधर, ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी के सांसदों ने कांग्रेस से अलग प्रदर्शन किया। वे अडाणी मुद्दे पर पीएम से चुप्पी तोडऩे की मांग कर रहे थे।