भोपाल
कर्नाटक संगीत की ख्यातिनाम गायिका सुश्री सुधा रघुरामन ने संगीत मोहक गायन से अलग ही रंगत बिखेरी। गान महृषि तानसेन को उन्होंने हिदुस्तानी शास्त्रीय संगीत अर्थात कर्नाटक शैली की मिसुरी भरी राग-रागनियों से स्वरांजलि अर्पित की।
तानसेन समारोह में प्रस्तुति देने दिल्ली से पधारीं सुश्री रघुरामन ने कर्नाटक शैली के राग "अमृत वर्षिणी" में अपने गायन का आगाज़ किया। अपनी खनकदार आवाज से सुंदर स्वरावली का उपयोग करते हुए उन्होंने दक्षिण भारत के प्रसिद्ध संगीतज्ञ संत मुत्थु स्वामी की रचना का सुमधुर गायन किया। इसके बाद उन्होंने राग "वासंती" और आदि ताल में मराठी अभंग की मनोहारी प्रस्तुति दी। संत नामदेव द्वारा रचित इस अभंग के बोल थे "पाण्डुरंगे अनाथाच्चा दीनाचा दयाड़ा"। सुश्री रघुरामन ने राग "शुद्ध सारंग" में जयदेव रचित अष्टपदी "सखीए येशी मदन.." की कर्णप्रिय प्रस्तुति देकर बड़ी संख्या में मौजूद संगीत रसिकों को तालियाँ बजाने के लिए मजबूर कर दिया। यह प्रस्तुति मिश्र चप्पू ताल में निबद्ध थी, जिसे उत्तर भारत में रूपक कहा जाता है। उन्होंने राग "वृंदावनी सारंग" में दक्षिण भारतीय "तिल्लाना" पेश कर अपने गायन को विराम दिया।
आपके साथ बाँसुरी पर श्री जी रघुरामन, मृदंगम पर श्री एम व्ही चन्द्रशेखर और तबले पर श्री शम्भूनाथ भट्टाचार्य ने कमाल की संगत कर गायन को नई ऊँचाइयाँ प्रदान कीं।
सुधा रघुरामन कर्नाटक शैली में अब तक ढाई सौ से अधिक गीत रिकॉर्ड करा चुकीं हैं। वे देश के प्रसिद्ध संगीत समारोहों के साथ ऑस्ट्रेलिया व अमेरिका सहित दुनियाँ के कई देशों के प्रतिष्ठित मंचों पर भी हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की प्रस्तुति दे चुकीं हैं।