भोपाल
जनसम्पर्क संचालनालय की फीचर सेवा
किसानों की मेहनत और मध्यप्रदेश सरकार की सुचिंतित कोशिशों का ही सुफल है कि कृषि के क्षेत्र में प्रदेश नये कीर्तिमान कायम कर रहा है। मध्यप्रदेश को कृषि उत्पादन और योजना संचालन में बेहतर प्रदर्शन के लिए 7 बार कृषि कर्मण पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया है। प्रदेश तिलहन, दलहन, सोयाबीन, उड़द के क्षेत्र एवं उत्पादन में प्रदेश, देश में प्रथम स्थान पर है। गेहूँ, मसूर, मक्का एवं तिल फसल के क्षेत्र एवं उत्पादन में मध्यप्रदेश देश में दूसरे स्थान पर है।
भारतीय जन-जीवन की समृद्धि का मुख्य आधार है- खेती-किसानी। मध्यप्रदेश सरकार इस तथ्य से अच्छी तरह वाक़िफ है। इसीलिए खेत और किसान प्रदेश सरकार की प्राथमिकताओं की सूची में शीर्ष पर है। राज्य सरकार पूरी गंभीरता से किसानों की समृद्धि और भरपूर फसल उत्पादन की दिशा में अपनी कोशिशें जारी रखे हुए हैं। इसका ही नतीजा है कि प्रदेश की कृषि का कैनवास ज्यादा हरा-भरा नजर आने लगा है। खेती अब घाटे का सौदा नहीं बल्कि दोगुनी आय का जरिया बनने की ओर अग्रसर हो रही है। प्रदेश के चप्पे-चप्पे पर खेत-खलिहान खुशहाली और समृद्धि की यह कहानी कह रहे हैं।
कृषि पद्धतियों की सुसंगत योजना
प्रदेश के 89 आदिवासी विकासखण्डों में 50 प्रतिशत उत्पादकता वृद्धि के लिए उन्नत बीज वितरण, उन्नत कृषि आदानों और बेहतर कृषि पद्धतियों की योजना तैयार की गई हैं। प्रदेश के सभी ग्रामों के मिट्टी परीक्षण के डाटा के आधार पर, उर्वरकता मानचित्र तैयार कर जी.आई.एस. पोर्टल से जोड़ा जा रहा है। इससे किसान खेतों में उर्वरकों का संतुलित उपयोग कर फसलों की अच्छी पैदावार ले सकेंगे। जलवायु में बदलावों को देखते हुए प्रदेश में कम अवधि वाली फसलों के उत्पादन की नीति तैयार की जा रही है।
बीजों की पर्याप्त उपलब्धता
प्रदेश में उन्नत बीजों की उपलब्धता बढ़ाने के लिए बीज रोलिंग प्लान को अद्यतन किया गया है। तीन हजार नये बीज ग्राम विकसित किये जा रहे हैं। किसानों की भागीदारी से संकर बीजों का उत्पादन कर प्रदेश को हाईब्रिड बीज उत्पादन हब बनाया जा रहा है।
नई योजनाएँ- नई पहल
प्रदेश के राज्य कृषि विस्तार एवं प्रशिक्षण संस्थान, बरखेड़ी कलां, भोपाल को "राज्य-स्तरीय कौशल उन्नयन केन्द्र'' के रूप में विकसित किया जा रहा है।
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में प्रदेश के सभी ग्रामों का समग्र कृषि विकास प्लान तैयार किया जा रहा है। योजना में अनुसूचित जनजाति क्षेत्रों के किसानों के लिए मोटे अनाजों (मिलेट्स) के मूल्य संवर्धन की एक विशेष योजना तैयार की गई है। इसके लिए करीब 13 करोड़ 74 लाख रुपये का प्रावधान किया गया है। इसी योजना में खेतों में सिंचाई के लिए इस वित्त वर्ष में कुल 44 करोड़ 25 लाख रुपये के परकोलेशन टैंक, माईनर इरीगेशन टैंक और फार्मगेट शेड के नये प्रोजेक्ट मंजूर किये गये हैं।
मौसम की अनिश्चित परिस्थितियों से निपटने और मौसम की सटीक जानकारी के लिए प्रदेश के 313 विकासखंडों में स्वचलित मौसम केन्द्रों की स्थापना की जा रही है।
चिन्नौर धान को मिला जी.आई. टैग
बालाघाट जिले की "चिन्नौर धान'' को जी.आई. टैग मिला है। प्रदेश के शरबती गेहूँ, लाल ग्राम (चना), पिपरिया की तुअर, काली मूंछ चावल, जीराशंकर चावल और इंडीजिनस फसलों को भी जी.आई. टैग दिलाने के लिए प्रभावी कार्यवाही की जा रही है।
एग्रीकल्चर इन्फ्रांस्ट्रक्चर फंड स्कीम
कृषि अधोसंरचना में सुधार को प्रोत्साहन और वित्तीय सहायता देने के लिए शुरू की गई कृषि अवसंरचना निधि के उपयोग में प्रदेश देश में अग्रणी है। योजना से किसान, कृषि से जुड़े उद्यमी, एफपीओ, स्टार्टअप, स्वयं सहायता समूह, प्राथमिक कृषि सहकारी समितियाँ और कृषि से जुड़े अन्य लोग लाभान्वित हो रहे हैं। अब तक प्रदेश में एआईएफ पोर्टल पर 3 हजार 357 आवेदन दर्ज कराए जा चुके हैं। दर्ज प्रकरणों में से 2,129 आवेदनों पर 1558 करोड़ रुपये की राशि बैंकों ने स्वीकृत की है। इसमें से 1107 करोड़ का ऋण वितरण हितग्राहियों के खाते में कर दिया गया है।
किसान उत्पादक संगठन
प्रदेश में भारत सरकार की केन्द्र पोषित "किसान उत्पादक संगठनों (एफ.पी.ओ.) का गठन एवं संवर्धन'' योजना में 140 एफ.पी.ओ. का गठन किया जा चुका है। शेष 126 संगठन के गठन की कार्यवाही प्रगति पर है।
तीसरी फसल को प्रोत्साहन
किसानों की आय दुगनी करने के लिए तीसरी, ग्रीष्मकालीन मूँग और उड़द, फसल को लगाने के लिए प्रदेश के कृषकों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसी का परिणाम है कि प्रदेश में मूँग फसल का क्षेत्र एक ही वर्ष में 4 लाख 19 हजार से बढ़कर 8 लाख 35 हजार हेक्टेयर हो गया है। इस वर्ष ग्रीष्मकालीन मूँग का 12 लाख 12 हजार मीट्रिक टन रिकार्ड उत्पादन हुआ है।
भारत सरकार की "प्राईस सपोर्ट स्कीम एवं मूल्य स्थिरीकरण कोष योजना'' में करीब 4 लाख 44 हजार 732 मीट्रिक टन मूँग और उड़द के लिए 1 करोड़ 86 लाख 511 किसानों को 3170 करोड़ 36 लाख रुपये की राशि का भुगतान किया गया है। प्रदेश में 2 लाख 47 हजार मीट्रिक टन मूँग उपार्जन के लक्ष्य के अतिरिक्त 1 हजार 390 करोड़ रुपये की 1 लाख 93 हजार मीट्रिक टन मूँग की खरीदी राज्य के मद से की गई है। पिछले वर्ष किसानों ने 5 हजार रुपये क्विंटल की मंडी मॉडल दर से 2196 रुपये ज्यादा की दर पर मूंग बेची। इस प्रकार 4 लाख 40 हजार मीट्रिक टन मूँग बेचने से किसानों को 966 करोड़ रुपये से अधिक की अतिरिक्त राशि मिली।
कृषि-यंत्रों की आसान उपलब्धता
ढाई लाख किसानों को सिंचाई तथा अन्य कृषि यंत्रों के लिए विभिन्न विभागीय योजनाओं में उपलब्ध अनुदानों की राशि ई-कृषि यंत्र अनुदान पोर्टल से भुगतान की जा रही है।
फसल-बीमा योजना
खरीफ रबी 2018-19 की प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का राज्य अंश प्रीमियम पूर्व राज्य सरकार द्वारा जमा नहीं करने के कारण खरीफ 2018 और 2019 एवं रबी 2018-19 की बीमा दावा राशि कृषकों को नहीं मिल सकी थी। वर्तमान प्रदेश सरकार ने मार्च 2020 में राज्य अंश की 2200 करोड़ रुपये की बीमा राशि बीमा कंपनी को तत्काल भुगतान की। वर्ष 2019-20 रबी तक 73 लाख 69 हजार 614 किसानों को 16 हजार 750 करोड़ 87 लाख रूपये की दावा राशि का वितरण किया गया है जो कुल दावा राशि का 93.41 प्रतिशत है।
आत्मा योजना
"आत्मा" योजना में 313 विकासखण्डों में 1,565 फॉर्म स्कूलों का आयोजन कर सालाना 40 हजार 690 कृषकों को कृषि, मत्स्य, उद्यानिकी, पशुपालन, रेशम पालन की उच्च तकनीकों में पारंगत किया जा रहा है। प्रगतिशील कृषकों को प्रोत्साहित किये जाने के उद्देश्य से उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए कृषकों एवं कृषक समूहों को राज्य, जिला एवं विकासखंड स्तर पर पुरस्कृत किया जा रहा है।
प्रदेश में लगभग 530 किसान उत्पादक संगठन कार्यरत है, जिनके साथ किसान संगठित रूप से कार्य कर रहे हैं।
सूचना-प्रौद्योगिकी से सूचनाओं का प्रवाह
सूचना प्रौद्योगिकी से कृषकों को उनकी भूमि तथा कृषि संबंधी विभिन्न जानकारियाँ और सेवाएँ एक ही समन्वित मोबाइल प्लेटफार्म पर उपलब्ध करायी जा रही है। कृषक उन्मुखी सेवाओं के लिए भू-अभिलेख डाटा के साथ समन्वित कर "एम.पी. किसान एप'' विकसित किया गया है। एप पर मण्डी भाव, विभागीय योजनाओं की कृषक उन्मुखी जानकारियाँ (स्टेटिक इन्फॉरमेशन), मौसम की स्थिति और पाक्षिक कृषि सलाह उपलब्ध कराई जा रही है। "ईज ऑफ डूइंग" में बीज, उर्वरक, कीटनाशकों के विक्रय लायसेंस की प्रक्रिया को कहीं से भी आवेदन करने, ऑनलाइन फीस भरने तथा समय-सीमा में सेवा प्रदाय करने के लिए पूरी तरह ऑनलाइन कर दिया गया हैं।
जी.आई.एस. रिमोट सेंसिंग तकनीकियों का उपयोग कर, भूमि उपयोग एवं वाटरशेड से संबंधित आंकड़ों के आधार पर फसलों का निर्धारण, जल प्रबंधन आदि के डॉटा बेस्ड नियोजन एवं क्रियान्वयन के लिए एनालेटिक्स एवं डी.एस.एस. मॉडल भी विकसित किया जा रहा है।