शांति और समन्वय से रहने वाले गांव को मिलेगा विशेष विकास पैकेज

भोपाल
ग्रामों के विकास के लिए शिवराज सरकार समरस गांव के नाम से एक नई योजना ला रही है। इस योजना में गांव वालों की भागीदारी सबसे महत्वपूर्ण है। सरकार ऐसे गांवों को विकास के विशेष पैकेज देगी लेकिन शर्त यह होगी कि गांव के लोगों की ओर से आपसी विवाद की कोई भी रिपोर्ट तीन साल तक थाने में दर्ज नहीं होनी चाहिए। विकास के पैकेज में शिक्षा, स्वास्थ्य, भौतिक सुविधाओं से जुड़े मामले शामिल रहेंगे। सरकार की ओर से समरस गांव के लिए अभियान चलाया जाएगा।  

पंचायत और ग्रामीण विकास विभाग की इस योजना के बारे में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पिछले दिनों खुद ही ऐलान किया है कि सरकार इस पर फोकस कर रही है। सीएम चौहान के अनुसार समरस गांव का मतलब उस गांव में लड़ाई-झगडेÞ न हों। होता यह है कि गांव में आपसी विवाद में थाने और कोर्ट का चक्कर शुरू हुआ तो कई बार आधी उम्र कोर्ट-कचहरी में ही गुजर जाती है। पुलिस में रिपोर्ट करते रहते हैं। इसलिए सरकार ने योजना बनाई है कि अगर कोई छोटे विवाद गांव में हों तो गांव के लोग उसे गांव में ही सुलझा लें। इसके लिए गांव के लोगों को एकजुट होकर ऐसे मामलों के निराकरण के लिए आपसी सहमति दिखानी होगी।

चौहान के मुताबिक जिन गांव में तीन साल तक कोई रिपोर्ट थाने में नहीं होगी, उसे समरस गांव का दर्जा दिया जाएगा और विकास का विशेष पैकेज सरकार की ओर से दिया जाएगा। इसके माध्यम से गांव में अच्छी आंगनबाड़ी, स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र समेत अन्य योजनाओं के क्रियान्वयन के मामले में विशेष ध्यान रखा जाएगा।

हर ग्राम पंचायत में ग्राम मित्र भी बनेंगे
उधर सरकार ने यह भी तय किया है कि हर ग्राम पंचायत में सरकार की योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन में योगदान देने के लिए ग्राम मित्र बनाए जाएंगे। यह ग्राम मित्र हर गांव में पांच होंगे जो ग्राम को समर्थ बनाने में सरकार की नीतियों में स्थानीय स्तर पर सहयोग करेंगे। इससे ग्रामीण जीवन स्तर में सुधार आएगा।

ग्राम न्यायालय व्यवस्था भी हो चुकी है प्रभावी
इसके अलावा राज्य सरकार मध्यप्रदेश भू राजस्व संहिता के कुछ मामलों में पंचायत राज और स्वराज अभियान के अंतर्गत ग्राम न्यायालयों पर भी काम करने का निर्णय ले चुकी है। प्रदेश में ग्राम न्यायालय अधिनियम 1996 में बना था जिसमें ग्रामीण क्षेत्र में सरल मामलों का निराकरण करना था। 26 जनवरी 2001 को इसी कड़ी में पहले ग्राम न्यायालय का गठन नीमच जिले के झांतला गांव में हुआ था। इसमें उच्च न्यायालय के परामर्श से न्यायाधिकारी की नियुक्ति की बात कही गई थी। बाद में केंद्र सरकार ने भी वर्ष 2008 में इससे संबंधित कानून का प्रावधान कर दिया लेकिन यह कागजों में ही चल रहा है।

विवाद विहीन ग्राम योजना आई थी बीस साल पहले
राज्य सरकार की विवाद विहीन ग्राम योजना बीस साल पहले 2000 में आई थी। इसमें विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 की धारा 7 की उपधारा 2 के खंड क और ग की शक्तियों का प्रयोग करते हुए योजना लागू की गई थी। इसमें भी कहा गया था कि ऐसे ग्राम जिसमें निवास कर रहे समस्त व व्यक्तियों में कोई विवाद न हो और यदि हो तो विवाद को आपसी सूझ-बूझ  और समझौते द्वारा न्यायालय जाने के पूर्व ही उसे निपाटा लिया जाए। अगर कोर्ट में मामला चला भी गया हो और विचाराधीन हो तो लोक अदालत या न्यायालय के माध्यम से जल्द निपटा लिया जाए और विवाद की स्थिति न रहे तो उसे विवाद विहीन ग्राम के दायरे में लाया जाएगा। इसमें पंचायत पदाधिकारी, विधिय स्वयंसेवी सेवादल के सदस्यों को पुरस्कार, प्रमाण पत्र देकर सम्मानित करने का भी प्रावधान किया गया था। अभी भी इस योजना पर काम हो रहा है और जिलों में ऐसे गांव चिन्हित करने का सिलसिला जारी है।