
सीहोर। जिला मुख्यालय के करीब सात किलोमीटर दूर स्थित काला पहाड़ की दरगाह हजारों श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र बनी हुई है। शनिवार को सुबह से दोपहर तक 20 हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने यहां पर पहुंचकर इबादत की। इस मौके पर यह स्थान हिन्दू और मुस्लिमों के लिए सद्भावना की मिसाल बना हुआ है। काला पहाड़ वैसे ही हमेशा अपने घने जंगल के लिए आकर्षण का केन्द्र रहा है। इसके आकर्षण के चलते भोपाल सहित बड़ी संख्या में हर रोज श्रद्धालु आते है।
इस संबंध में जानकारी देते हुए काला पहाड़ दरगाह कमेटी के अध्यक्ष नईम नवाब ने बताया कि मुस्लिम समुदाय द्वारा मोहर्रम के अवसर पर सवारियां दरगाह पर आई थी, जिनकी आवाजों से पूरा क्षेत्र गूंजता रहा। इस दौरान मुस्लिम समाज के युवाओं द्वारा या हुसैन के नारे भी लगाए गए। मुस्लिम समुदाय के लोगो के द्वारा मोहर्रम की सात तारिख को दरगाह पर सवारियां के आने का सिलसिला शुरू होता है। उन्होंने कहा कि मोर्हरम में अल्लाह की इबादत का महत्व अधिक है। इस्लामी वर्ष यानी हिजरी वर्ष का पहला महीना है। हिजरी वर्ष का आरंभ इसी महीने से होता है। इस माह को इस्लाम के चार पवित्र महीनों में शुमार किया जाता है। अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने इस मास को अल्लाह का महीना कहा है। साथ ही इस मास में रोजा रखने की खास अहमियत बयान की है। मुख्तलिफ हदीसों, यानी हजरत मुहम्मद (सल्ल.) के कौल (कथन) व अमल (कर्म) से मुहर्रम की पवित्रता व इसकी अहमियत का पता चलता है। ऐसे ही हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने एक बार मुहर्रम का जिक्र करते हुए इसे अल्लाह का महीना कहा। इसे जिन चार पवित्र महीनों में रखा गया है, उनमें से दो महीने मुहर्रम से पहले आते हैं। यह दो मास हैं जीकादा व जिलहिज्ज। एक हदीस के अनुसार अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने कहा कि रमजान के अलावा सबसे उत्तम रोजे वे हैं, जो अल्लाह के महीने यानी मुहर्रम में रखे जाते हैं। यह कहते समय नबी-ए-करीम हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने एक बात और जोड़ी कि जिस तरह अनिवार्य नमाजों के बाद सबसे अहम नमाज तहज्जुद की है, उसी तरह रमजान के रोजों के बाद सबसे उत्तम रोजे मुहर्रम के हैं। आगामी दिनों में शहर में ताजिए निकाले जाऐंगे। उन्होंने कहा कि मोर्हरम का पर्व आपसी भाईचारे का संदेश देता है, हम सब मिलकर शांति के साथ पर्व मनाए।